सिंहवाहिनी
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।।
नारियों को अब कहाँ कुछ अधिकार है प्राप्त।
उनके लिए तो कोशिशें भी होती नहीं पर्याप्त।।
भारत को माँ कहने वाले क्या यही तेरा पुरूषार्थ
नारियों का सम्मान भी ए जब हुआ यहाँ समाप्त।।
अब कहाँ कौन किसका देता है साथ ?
आधी आबादी रह गई अब यहाँ अनाथ।।
नारियों का होता सरे आम अपमान
मुस्कुराते खुले घूमते अब यहाँ शैतान।
लूटते हैं रोज इज्जत हर तरफ हैवान।
नहीं अब अवतरित होते स्वर्ग से भगवान।।
राह चलती लड़कियों संग होते अब रेप।
मेरा भारत महान सुन जाते हम झेंप।।
नारियों को मिले इज्जत चीखते हैं वे
भेड़ियों सी चाल उनकी लूटते हैं वे।
रात के सन्नाटे को छोड़ मेरे भाई !
दिन के उजाले में घसीटते हैं वे।।
हर तरफ हर शहर हर डगर हर गली।
कृष्ण की खलती कमी सिसकती फिर द्रौपदी।।
दुःशासन कल एक था आज तो दुःखद शासन
धृतराष्ट्र बन अन्धा खड़ी सर्वत्र ही प्रशासन।।
कैसी यह विषम स्थिति कराहती फिर मानवता।
अपहरण करता है रावण छटपटाती देवी सीता।।
राम और लक्ष्मण कहीं नजर नही आते।
दैत्य दानव दस्यु ही हर तरफ घूमते।।
मत अश्रु बहा अब तू हे अबले !
उठा खड्ग सिंहवाहिनी अम्बे !
दे आहुति नर पिशाच की
जय जय जय हो हे जगदम्बे।।
🌹🌹
डॉ0 धनंजय कुमार मिश्र
अध्यक्ष संस्कृत विभाग सह अभिषद् सदस्य
सिदो.कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय
दुमका ;झारखण्ड
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