’’ महामृत्युंजय सदाशिव सदैव कल्याणकारी ’’


                                                                                                                  डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र *

                 श्रावण मास भगवान शिव की अराधना, अर्चना, वन्दना, पूजा एवं भक्ति के लिये उत्तम माना गया है। भगवान भोलेनाथ सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। भगवान् भोलेनाथ के विभिन्न स्वरूप शास्त्रों में वर्णित हैं। कुछ प्रमुख स्वरूप इस प्रकार हैं- परमात्म प्रभु शिव, मंगलस्वरूप भगवान् शिव, भगवान् अर्धनारीश्वर, भगवान शंकर, गौरीपति भगवान शिव, महामहेश्वर, भगवान् सदाशिव, पंचमुख सदाशिव, अम्बिकेश्वर, पार्वतीनाथ भगवान् पंचानन, भगवान महाकाल, श्रीनीलकण्ठ, भगवान् पशुपति, भगवान् दक्षिणामूर्ति, महामृत्युंजय आदि।
                         
भोलेनाथ का विभिन्न स्वरूप उनके साकार रूप का प्रतीक है। भोलेनाथ भक्तों के कष्ट को दूर करने वाले हैं। भगवान् आशुतोष शीघ्र एवं तत्काल प्रसन्न होने वाले हैं। भक्त को चाहिये कि वह भगवान् के स्वरूप का चिन्तन एवं मनन करे और दर्शन की कामना करे।
             शास्त्र कहते हैं कि भगवान् के विभिन्न स्वरूपों में सदाशिव रूप अत्यन्त सूक्ष्म रूप में ईश्वरीय कण की भाॅंति कण-कण में विराजमान है। भगवान् सदाशिव रजोगुण का आश्रय लेकर संसार की सृष्टि करते हैं, सत्वगुण से सम्पन्न होकर सातों भुवनों का धारण एवं पोषण करते हैं, तमोगुण से युक्त होकर सबका संहार करते हैं अर्थात् रज-सत्व-तम गुण युक्त शिव सृष्टि के उत्पत्ति-पालन एवं संहार के कारण हैं। सदाशिव ही सृष्टि काल में ब्रह्मा, पालन के समय विष्णु और संहार काल में रूद्र नाम को धारण करते हैं। भगवान सदाशिव त्रिगुणमयी माया को लाँघकर अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित रहते हैं। सत्यानन्दस्वरूप, अनन्तबोधमय, निर्मल एवं पूर्ण ब्रह्म स्वरूप शिव का ध्यान भक्तों को सदैव करना चाहिए। सदैव सात्विक भाव को अपनाने से ही हमें शिव की भक्ति प्राप्त हो सकती है। भगवान शिव के इस सदाशिव सूक्ष्म रूप का ध्यान एवं स्तुति इस प्रकार की जाती है-
‘‘ यो धत्ते भुवनानि सप्त गुणवान् स्रष्टा रजः संश्रयः
संहर्ता तमसान्वितो गुणवतीं मायामतीत्य स्थितः।  सत्यानन्दमनन्तबोधममलं         ब्रह्मादिसंज्ञास्पदं
नित्यं सत्त्वमन्वयादधिगतं पूर्णं शिवं धीमहि।। ’’
भगवान सदाशिव के सूक्ष्म स्वरूप का चिन्तन करते हुए भक्त को शिव गायत्री का उच्चारण करते रहना चाहिए। शिव गायत्री का पाठ शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता है एवं सद्कर्म व स्वधर्म के लिए शिव प्रेरित करते हैं। शिव गायत्री इस प्रकार कहा गया है-
        ‘‘ऊँ तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
          तन्नो रूद्रः प्रचोदयात्।।’’
इस गायत्री का भाव है - परमेश्वर रूप अन्तर्यामी पुरूष (शिव) को हम जानें, उस महादेव का हम चिन्तन करें, वे भगवान् रुद्र हमें शुभ कर्मो एवं स्वधर्म के लिए प्रेरित करते रहें।
साथ ही सदाशिव के ‘महामृत्युंजय’ साकार रूप का भी चिन्तन फलप्रदायी है।   महामृत्युंजय त्र्यम्बकदेव अष्टभुज हैं। उनके एक हाथ में अक्षमाला और दूसरे में मृगमुद्रा है। दो हाथों से दो कलशों में अमृतरस लेकर उससे अपने मस्तक को आप्लावित कर रहे हैं और अन्य दो हाथों से उन्हीं कलशों को थामे हुए हैं। शेष दो हाथ उन्होंने  अपने अंक पर रख छोडे़ हैं और उनमें दो अमृतपूर्ण घट हैं। वे श्वेत कमल पर विराजमान हैं, मुकुट पर बालचन्द्र सुशोभित हैं, मुखमण्डल पर तीन नेत्र शोभायमान हैं। ऐसे देवाधिदेव कैलासपति श्रीशंकर की शरण ग्रहण करना हर भक्त का लक्ष्य होना चाहिए और महामृत्युंजय के इस महामन्त्र का पाठ करना चाहिए-
‘ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारूकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्।।’’
  दुःखों से छुटकारा देने वाले महामृत्युंजय शिव का पूजन, वन्दन, आराधन, दर्शन, मनन, चिन्तन, स्वरूप-कथन एवं श्रवण का श्रावण मास में अत्यधिक एवं शीघ्र फलप्रदायी है। भगवान् भोलेनाथ का विविध रूप विश्वकल्याणकारी हो, यही हमारी कामना है।
ऊँ नमः शिवायै। नमः शिवायै। नमः शिवायै।
ऊँ नमः शिवाय। नमः शिवाय। नमः शिवाय।
                          श्रीगौरीशंकराभ्याम् नमाम्यहम्।
                        ऊॅ शान्तिः। शान्तिः। शान्तिः।

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 *अभिषद् सदस्य सह विभागाध्यक्ष संस्कृत
 एस. पी. काॅलेज दुमका
 (सि.का. मु. विश्वविद्यालय, दुमका)

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