दशानन दशमुख

              

                            प्रतुति : डॉ धनंजय कुमार मिश्र *

दिल्ली का रामलीला मैदान!
एकत्रित जन-समूह, विजयादशमी की शाम,
उत्साहित, प्रफुल्लित स्मरण करते श्रीराम!

पुतला था जो खड़ा, अविचल !
मन ही मन मुस्कुराया। मैं रावण हूँ !
यों ही यहाँ जलने नहीं आया।

तुम पुतले को जलाकर
खुश होते, छोड़ते पटाखे।
रावण दहन का स्वांग भरते।

घास-फूस को जलते देख मुस्कुराते,
भारत को रावणमुक्त समझते।

पर, मैं नहीं मरने वाला, हूँ अमर!
पाँव पसारता हर गली हर शहर,
अखिल भारत अब मेरा ही घर।
भारत में भ्रष्टाचार के रूप में रहता हूँ,
प्रतिदिन सीता का हरण करता हूँ।

प्रशासन और लोकतन्त्र का करता परिहास,
बेइमानी और गैरकानूनी व्यवहार,
यही मेरे जीवन का शृंगार।
पद और सत्ता का दुरूपयोग,
रिश्वत, फिरौती, घपला, पक्षपात।
इस रूप में जीवित हूँ, भारत में।

नेता, अफसर, औद्यौगिक प्रतिष्ठान
मेरी आसुरी शक्ति के केन्द्र हैं आज।
मेरी शक्ति से परिचित तुम्हारा समाज।।

मेरा मेघनाद है कालाधन,
कुम्भकरण है अपराधीकरण ।
निवेश में बाधा, मानवाधिकार का उल्लंघन
आर्थिक विकास में बाधक, अविश्वास सरकार के प्रति,
क्या ये नहीं कहते कि मैं जीवित हूँ !
अपने समस्त कुटुम्ब जनों के संग।
मैं दशानन दशमुख रावण।।

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*अध्यक्ष संस्कृत विभाग सह अभिषद् सदस्य सि.का.मु.विश्वविद्यालय दुमका 
झारखण्ड 

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