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पाणिनि और उनका अष्टाध्यायी

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अष्टाध्यायी  (अष्टाध्यायी = आठ अध्यायों वाली) महर्षि  पाणिनि  द्वारा रचित  संस्कृत   व्याकरण  का एक अत्यंत प्राचीन ग्रंथ (7०० ई पू) है। इसमें आठ अध्याय हैं; प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं; प्रत्येक पाद में 38 से 220 तक  सूत्र  हैं। इस प्रकार अष्टाध्यायी में आठ अध्याय, बत्तीस पाद और सब मिलाकर लगभग 4000  सूत्र  हैं। अष्टाध्यायी पर महामुनि  कात्यायन  का विस्तृत वार्तिक ग्रन्थ है और सूत्र तथा वार्तिकों पर भगवान  पतंजलि  का विशद विवरणात्मक ग्रन्थ  महाभाष्य  है। संक्षेप में सूत्र, वार्तिक एवं महाभाष्य तीनों सम्मिलित रूप में ' पाणिनीय व्याकरण'  कहलाता है और सूत्रकार पाणिनी, वार्तिककार कात्यायन एवं भाष्यकार पतंजलि - तीनों व्याकरण के ' त्रिमुनि'  कहलाते हैं।   अष्टाध्यायी में   आठ अध्याय   हैं और प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं। पहले दूसरे अध्यायों में संज्ञा और परिभाषा संबंधी सूत्र हैं एवं वाक्य में आए हुए क्रिया और संज्ञा शब्दों के पारस्परिक संबंध के नियामक प्रकरण भी हैं, जैसे क्रिया के लिए आत्मनेपद-परस्मैपद-प्रकरण, एवं संज्ञाओं के लिए विभक्ति, समास आदि। तीसरे, चौथे और पाँचवे