Posts

Showing posts from July, 2020

संस्कृत और भारतीय संस्कृति के अनन्य अनुरागी थे तिलक

*संस्कृत और भारतीय संस्कृति के अनन्य अनुरागी थे तिलक* डॉ धनंजय कुमार मिश्र  अध्यक्ष संस्कृत विभाग सह अभिषद् सदस्य सि.का.मु.विश्वविद्यालय, दुमका  --- बाल गंगाधर तिलक की आज सौवीं पुण्यतिथि है । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले तिलक को संस्कृत व भारतीय संस्कृति से अनन्य अनुराग था। बाल गंगाधर तिलक का सार्वजनिक जीवन 1880 में एक शिक्षक और शिक्षण संस्था के संस्थापक के रुप में आरम्भ हुआ। इसके बाद केसरी और मराठा के माध्यम से उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध तो किया ही, साथ ही भारतीयों को स्वाधीनता का पाठ भी पढ़ाया। वह एक निर्भीक सम्पादक थे, जिसके कारण उन्हें कई बार सरकारी कोप का भी सामना करना पड़ा। पारम्परिक सनातन धर्म व हिन्दू विचारधारा के प्रबल समर्थक तिलक का अध्ययन असीमित था। उनके द्वारा किये गए शोधों से उनके गहन गम्भीर अध्ययन का परिचय मिलता है। अपने धर्म में प्रगाढ़ आस्था होते हुए भी उनके व्यक्तित्व में संकीर्णता का लेशमात्र भी नहीं था। अस्पृश्यता के वह प्रबल विरोधी थे। इस विषय में एक बार उन्होंने स्वयं कहा था कि जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए वह कुछ भी करन

"समस्त प्राणियों के स्वामी पशुपति शिव’’

*‘‘समस्त प्राणियों के स्वामी पशुपति शिव’’* प्रस्तुति: डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र सिंडिकेट सदस्य, सि. का. मु. विश्वविद्यालय, दुमका सह अध्यक्ष संस्कृत विभाग, संताल परगना महाविद्यालय, दुमका ------                       भगवान् शिव की महिमा अपरम्पार है। भगवान शिव अनन्त हैं, असीम हैं। शिव रूपरहित हैं। सृष्टि के कण कण में शिव विराजते हैं। वेद-पुराण शिव का गान करते हैं। स्कन्द पुराण के माहेश्वर खण्ड में शिव की अनेक कथाएँ मिलती हैं। शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चन्द्रमा है जो अमृत का प्रतीक है तो दूसरी ओर गले में विषधर सर्प। शिव अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी और वीतरागी हैं। आशुतोष और सौम्य होते हुए भी भयंकर और रूद्र हैं। इनके आस पास भूत-प्रेत, नंदी-सिंह, मयूर-सर्प-मूषक का समभाव देखने को मिलता है। शिव स्वयं द्वन्द्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान् विचार के परिचायक हैं। शिवलिंग सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक है।  *पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्। जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं

गोस्वामी तुलसीदास आज भी प्रासंगिक

(जयन्ती विशेष) *गोस्वामी तुलसीदास आज भी प्रासंगिक* डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र अध्यक्ष स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग एस0 पी0 काॅलेज, दुमका ------ श्रावण शुक्ल सप्तमी। ऐतिहासिक दिन। आज ही के दिन युगप्रवर्तक अनन्य रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास का आविर्भाव इस धराधाम पर हुआ। साहित्य जगत् में  रामकाव्य धारा के प्रवर्तक और सगुणोपासक शाखा से सम्बन्धित कवि के रूप में गोस्वामी जी का नाम बड़े ही श्रद्धा और आदर से लिया जाता है परन्तु जनमानस में तो इनका एक व्यापक और विस्तृत स्वरूप है। संस्कृत के आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने अपने महान् ग्रन्थ रामायण में जिस नर राम की कथा का वर्णन किया है, तुलसी ने उसी नर राम की कथा को नारायण राम की कथा में परिवर्तित कर समाज को एक नई दिशा प्रदान की है। भारतवर्ष का तात्कालीन समाज धर्म से च्युत होने लगा था। विधर्मियों का बोलबाला सर्वत्र फैल रहा था। उस समय गोस्वामीजी ने  न केवल रामचरितमानस की रचना की अपितु उसे जन जन तक पहुँचा कर अपूर्व प्रतिभा का परिचय दिया।  तुलसी ने ही सर्वप्रथम राम-राज की अवधारणा इस संसार को दी। जो राज्य अपने में पूर्ण है वही रामराज्य है। तुलसी के ही शब्दों में - 

संस्कृत वाङ्मये वर्णित-चतुष्षष्टिकलानाम् उपयोगिता

संस्कृत वाङ्मये वर्णित-चतुष्षष्टिकलानाम् उपयोगिता (संस्कृतवाङ्मय में वर्णित चैंसठकलाओं की उपयोगिता) डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र अध्यक्ष स्नातकोŸार संस्कृत विभाग                     सह अभिषद् सदस्य (सरकार नामित) सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय,   दुमका (झारखण्ड) 814101 मो0:- 09939658233, 08709105465 म्उंपसरू काउपेीतंेचबक/हउंपसण्बवउ                     संस्कृत शब्द ‘सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘कृ’ धातु से ‘क्त’ प्रत्यय जोड़ने पर बना है जिसका अर्थ है - संस्कार की हुई, परिमार्जित, शुद्ध अथवा परिस्कृत। संस्कृत शब्द से आर्यो की साहित्यिक भाषा का बोध होता है। भाषा शब्द संस्कृत की ‘भाष्’ धातु  से निष्पन्न हुई है। भाष् धातु का अर्थ व्यक्त वाक् (व्यक्तायां वाचि) है। महर्षि पत×जलि के अनुसार - ‘‘व्यक्ता वाचि वर्णा येषा त इमे व्यक्त वाचः 1‘‘  अर्थात्- भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भांति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार स्वयं स्पष्ट रूप से समझ सकता है।     भाषा मानव की प्रगति में विशेष रूप से सहायता करती है। हमारे पूर्वपुरूषों के सारे अनुभव हमें भाषा के माध्यम से ही प्राप्त हुए ह

वेदः शिवः शिवो वेदः

Image
हर हर महादेव ! सावन की पावन मंगलकामनायें ! सावन माह बाबा भोले नाथ की अराधना का सर्वश्रेष्ठ मास है. वेदों में भोले नाथ को रूद्र कहा गया है. ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि वे  दैहिक, दैविक और भौतिक दुखों का नाश करते हैं।  वेद सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ माने जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, वेद: शिव: शिवो वेद: यानी वेद शिव हैं और शिव वेद हैं। अर्थात शिव वेदस्वरूप हैं। इसके साथ ही वेद को भगवान सदाशिव का नि:श्वास बताते हुए उनकी स्तुति में कहा गया है - यस्य नि:श्वसितं वेदायो वेदेभ्योखिलं जगत्. निर्ममे तमहं वंदे विद्यातीर्थमहेश्वरम्। अर्थात वेद जिनके नि:श्वास हैं, जिन्होंने वेदों के माध्यम से संपूर्ण सृष्टि की रचना की है और जो समस्त विद्याओं के तीर्थ हैं, ऐसे देवों के देव 'महादेव' की मैं वंदना करता हूं। सनातन संस्कृति में वेदों की तरह शिव जी को भी अनादि कहा गया है। वेदों में साम्ब सदाशिव को रुद्र नाम से पुकारा गया है। शिवजी को रुद्र इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये रुत अर्थात दुख को दूर कर देते हैं। जो दैहिक, दैविक और भौतिक दुखों का नाश करते हैं, वे रुद्र हैं। इसीलिए उन्होंने त्र