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Showing posts from May, 2020

सुभाषितानि

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*सुभाषितानि* सम्पादक: - डॉ धनंजय कुमार मिश्र:, संताल परगना महाविद्यालय दुमका (झारखण्ड)       (1) *बन्धाय विषयासङ्गः* *मुक्त्यै निर्विषयं मनः।* *मन एव मनुष्याणां* *कारणं बन्धमोक्षयोः॥*  अर्थात- बुराइयों में मन को लगाना ही बन्धन है और इनसे मन को हटा लेना ही मोक्ष का मार्ग दिखता है । इस प्रकार यह मन ही बन्धन या मोक्ष को देनेवाला है। (2) *शुन: पुच्छमिव  व्यर्थं,*                  *जीवितं विद्यया विना।* *न गुह्यगोपेन शक्तं,*                   *न च दंशनिवारणे॥* अर्थात- विद्या के बिना मनुष्य-जीवन कुत्ते की पूंछ के समान व्यर्थ है। जैसे कुत्ते की पूंछ से न तो उसके गुप्त अंग छिपते है न वह मच्छरों को काटने से रोक सकती है, वैसे ही विद्या के बिना जीवन व्यर्थ हैl (3) *सुभाषितमयैर्द्रव्यैः* *सङ्ग्रहं न करोति यः।* *सो$पि प्रस्तावयज्ञेषु* *कां प्रदास्यति दक्षिणाम्।।* अर्थात- सुन्दर वचनरूपी सम्पदा का जो संग्रह नहीं करता वह सत्संग एवम जीवनोपयोगी दिव्य चर्चारुपी  यज्ञ में भला क्या दक्षिणा देगा ? जीवन के लिये परम उपयोगी "सुभाषित" वार्तालाप में भाग लेना एक यज्ञ है और उस यज्ञ में अपनी बुद्धि के अनु

हर बच्चे में होती प्रतिभा निखारने की है जरूरत

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‘‘ भारतीय काव्यशास्त्रों के मंगलाचरण एक विहगावलोकन’’

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‘‘ भारतीय काव्यशास्त्रों के मंगलाचरण एक विहगावलोकन’’    प्रत्येक शुभकार्य के प्रारम्भ में भगवान् का स्मरण करना सभी आस्तिकों में समान रूप से पाया जाता है। इसलिए ग्रन्थ के आरम्भ में भी किसी न किसी रूप में अपने इष्टदेवता का स्मरण किये जाने की परम्परा सारे भारतीय साहित्य में पायी जाती है  इसको ‘मंगलाचरण’ नाम से कहा जाता है। इस ‘मंगलाचरण’ अथवा भगवान् के नाम का स्मरण करने से कार्य सिद्धि के मार्ग में आने वाली विघ्न बाधओं के ऊपर विजय प्राप्त करने की क्षमता होती है। इसलिए विघ्नविघात को भी ‘मंगलाचरण’ का एक मुख्य प्रयोजन माना जाता है। ग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति के लिए विधीयमान मंगलाचरण तीन प्रकार के होते हैं - नमस्कारात्मक, वस्तुनिर्देशात्मक एवम् आशीर्वादात्मक। भारतीय काव्यशास्त्र के प्रणेताओं ने अपने ग्रन्थों में मंगलाचरण की परम्परा का सम्यक् निर्वहण किया है। यहाँ हम प्रसिद्ध काव्यशास्त्रों के मंगलाचरण का विहगावलोकन करना चाहते हैं - 1.    भरतमुनिकृत नाट्यशास्त्र का मंगलाचरण - (नमस्कारात्मक)   ‘‘प्रणम्य शिरसा देवौ     पितामीमहेश्वरौ।   नाट्यशास्त्रं प्रवक्ष्यामि ब्रह्मणा यदुदाहृतम्।।’’ (अनुष्टु

जिन्दगी की तलाश में मौत के करीब आए प्रवासी झारखण्डियों को रोजगार उपलब्ध कराए राज्य सरकार

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धनंजय कुमार  दुमका  --- हर दिन नई खबर । विचलित करने वाली सूचना । हैरान परेशान करने वाले मामले ।कोरोना संकट में जारी लाॅक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक दास्ताँ । झारखण्ड सरकार को अब भी शायद यह नहीं मालूम कि कितने झारखण्डी मजदूर देश विदेश के कोने-कोने में फँसे पड़े हैं । घर लौटने की छटपटाहट, बेचैनी और घोर निराशा में  मजदूर हादसे में जान गँवा रहे हैं । औरैया की घटना सिर्फ़ एक बानगी भर है । ऐसी बात हर वक्त हो रही है । ज़ुल्म, जिल्लत, दर्द और भूख के नंगे नाच से इन मजदूरों को हर पल सामना करना पड़ रहा है । समय ने इन्हें  निरीह और लाचार बना दिया है । निश्चय ही धीरे-धीरे  कोरोना संकट टल जाएगा। पूरा विश्वास है जिन्दगी पटरी पर आएगी लेकिन अब सरकार को सबक लेनी चाहिए । जिस उपेक्षा, पिछड़ेपन और अनदेखी के मुद्दे पर बीस वर्ष पूर्व बिहार से अलग होकर झारखण्ड राज्य का गठन हुआ स्थिति अभी भी वैसी ही बनी हुई है। इन प्रवासी श्रमिकों की स्थिति देखने के बाद तो ऐसा ही लगता है कि सामान्य नागरिकों को भगवान् भरोसे छोड़ दिया गया है । विगत  बीस वर्षों में इन श्रमजीवियों के लिए ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गय

संकटग्रस्त विश्व को जरूरत है आपसी सहयोग और भाईचारे की

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                    डॉ धनंजय कुमार मिश्र                      अभिषद् सदस्य , दुमका  --- महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण मोहग्रस्त अर्जुन को समझाते हुए गीता का गंभीर ज्ञान दिया। द्वितीय अध्याय में भगवान् कहते हैं-    योगस्थ: कुरु कर्माणि संगं त्यक्तवा धनंजय।      सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।। अर्थात्  हे धनंजय (अर्जुन)। कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, यश-अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योग युक्त होकर, कर्म कर, (क्योंकि) समत्व को ही योग कहते हैं। वास्तव में धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य। धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं। हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है। भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए। इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा। मन में शांति होगी तो परमात्मा से आपका योग आसानी से होगा। आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नाप तौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पू

वोकल फाॅर लोकल अर्थात् - सादा जीवन उच्च विचार

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डॉ धनंजय कुमार मिश्र  दुमका  _____ जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई भूख  है। दुनिया के हर आदमी को भूख सताती है और आटे-दाल से ही वह भूख शांत होती है। इसीलिए हर कोई आटे-दाल के जुगाड़ के लिए फिक्रमंद रहता है।  अपना पेट भरने या भूख मिटाने के लिए आटे-दाल का जुगाड़ करने को जरूरी माना जाता है। इसके लिए अलग-अलग लोग अलग-अलग तरह के काम-धंधे और कारोबार करते हैं। लेकिन जब आटा-दाल जरूरत से ज्यादा लालच, लालसा और महत्वाकांक्षा की वजह बन जाता है और उसके नाम पर आदमी आदमियत को भूलकर, अपने सुख-चैन को मिटाकर एक अंधी दौड़ में शामिल हो जाता है तो समस्या पैदा होती है। यह लालच और लालसा ही आदमी से तमाम तरह के उलटे-सीधे और अनुचित काम करवाती है। तमाम तरह की धूर्तता, धोखाधड़ी और हिंसा का कारण बनती है। आदमी की इसी हवस को देखकर हम आहत होते हैं। लगता है कि आदमी के अन्दर संतोष और सब्र नाम की चीज नहीं रही। जरूरत भर का जुगाड़ तो जरूरी है पर भोग-लिप्सा की तो कोई सीमा नहीं। आज हमारा समाज उपभोक्तावाद की गिरफ्त में है। उसकी भोग-लिप्सा अंतहीन होती जा रही है। और अपनी इसी भोग-लिप्सा के लिए समकालीन मनुष्य प्रकृति और संबंधों का अधिकाधिक शोषण

भारतीय परम्परा व संस्कृति का अद्भुत पावन पर्व वैशाखी पूर्णिमा

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भारतीय परम्परा व संस्कृति का अद्भुत पावन पर्व वैशाखी पूर्णिमा प्रस्तुति: डॉ धनंजय कुमार मिश्र अध्यक्ष संस्कृत विभाग सह अभिषद् सदस्य सि.का.मु.विश्वविद्यालय,दुमका (झारखण्ड) -------- वैशाख मास की पूर्णिमा को वैशाखी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार वैशाख पूर्णिमा सभी में श्रेष्ठ मानी गई है। इसे बुद्ध पूर्णिमा (बुद्ध जयंती) के नाम से भी जाना जाता है। बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना गया है। वैशाख पूर्णिमा पर व्रत और पुण्य कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।  वैशाखी पूर्णिमा व्रत की विधि अन्य पूर्णिमा व्रत के सामान ही है लेकिन इस दिन किये जाने वाले कुछ धार्मिक विधान  इस प्रकार हैं। यथा -वैशाख पूर्णिमा के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, जलाशय, कुआं या बावड़ी में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन धर्मराज के निमित्त जल से भरा कलश और पकवान देने से गोदान के समान फल मिलता है। जरुरतमंद व्यक्तियों और ब्राह्म