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Showing posts from March, 2021

मधुमास

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 पाटल पंकज जूही महुआ औ’ अमराई   फूले पलाश हैं जो वाे प्रीत की गहराई।।   मादकता मधुवन की चितवन है अलसाई  चकवे की चाहत में चकवी है बौराई।।  गंगा तट पर कितनी ये वात सुहानी है   मधुपति के स्वागत में मदहोस जवानी है।।   मधुमास के स्वागत में कलिका जो दीवानी है   फागुन का ये मौसम मदहोश जवानी है।।   कोई जाकर पूछो क्या हुक पुरानी है   उपवन में कोयल की जो कूक सुहानी है ।।  विरह विभावरी की ये बात बेमानी है  ऊषा और रजनी की ये प्रेम कहानी है।।   दरिया और सागर की क्या प्रीत पुरानी है   प्रियतम के नयनों में मौजों की रवानी है।।   फागुन का ये मौसम मदहोश जवानी है   फागुन का ये मौसम मदहोश जवानी है।। डॉ धनंजय कुमार मिश्र, दुमका   

बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली

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  जब  कोयल की कूक सुनाई देने लगे, गौरैया चहकने लगें, पेड़ों की शाखाओं पर बौर खिलने लगे, तापमान न ज्यादा ठंडा और न ज्यादा गर्म होने लगे, गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा चलने लगे, प्रकृति हरियाली चादर ओढ़ती दिखे, सुबह नशीली और रूमानी होने लगे, सरसों के पीले पीले फूल खिलने लगें, पाटल सुर्ख लाल हो जाए, पलाश अपनी पूरी जवानी पर हो.. तो यूं समझिए ऋतुराज वसंत का आगमन हो चुका है।  फाल्गुन मास में वसंत के आगमन के साथ होता है होली का आगाज। होली रंगों, प्रेम, मस्ती, सद्भावना और आपसी मेलजोल का उत्सव है। यह त्यौहार जाति, भाषा और धर्म की सभी बाधाओं को तोड़ता है। यह त्यौहार वसंत ऋतु का स्वागत करता है और सर्दियों को अलविदा कहता है. इसलिए इस पर्व को वसंतोत्सव और मदनोत्सव भी कहा जाता है। यह त्यौहार अच्छी फसलों का भी प्रतीक है क्योंकि इस वक्त किसानों की फसलें पूरी तरह से तैयार होकर खेतों में लहलहा रही होती हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला उत्सव होली आनंद व उल्लास  से भरा रंगों का पर्व  है । यह भारत भूमि पर प्राचीन समय से मनाया जाता है। त्यौहारों की ख़ास बात यह है की इसके मस्ती में लोग आपसी बैर तक भूल

प्रकृति और सृष्टि संतुलन का पर्व महाशिवरात्रि

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  डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र, अध्यक्ष स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग  एस पी कालेज परिसर, दुमका  _____            भारतवर्ष विविधताओं और विभिन्नताओं का देश है। विविध परम्परा और सुसंस्कृत संस्कृति भारतवर्ष की पहचान है। प्राचीन आर्ष ग्रन्थ वर्तमान का मार्गदर्शन और भविष्य का निर्धारण करने में महती भूमिका का निर्वहण करते हैं। इन आर्ष ग्रन्थों में वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत और पुराण अतीत से आज तक हमारे जीवन पथ को आलोकित कर रहे हैं। इन ग्रन्थ-रत्नों में कर्मों की प्रधानता के द्वारा जीवन जीने की प्रेरणा दी गई है। हमारे कर्म सात्विक, शुद्ध और सुन्दर हों जिससे समाज का  कल्याण और मानवता का उत्थान होता रहे। प्रकृति और पर्यावरण के बिना मानव समाज का अस्तित्व ही नहीं अतएव उनके संरक्षण का सूक्ष्म संदेश भी आर्षग्रन्थों में निहित है। किसी ने ठीक ही कहा है ‘‘समाजस्य हितम् शास्त्रेषु निहितम्’’- अर्थात् समाज का हित शास्त्रों में निहित है। शास्त्र हमारे ज्ञानचक्षु का उन्मीलन कर गुरू की भाँति  हितैषी हैं। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान शिव ,करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप मे