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Showing posts from February, 2023

महाशिवरात्रि

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  डाॅ.धनंजय कुमार मिश्र  अध्यक्ष, स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग  सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका dkmishraspcd@gmail.com ----------- भारतीय पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव हैं । ब्रह्मा सृष्टि के उत्पत्तिकर्त्ता, विष्णु जगत् के पालनकर्त्ता और शिवशंकर महेश संसार के संहारकर्त्ता महाकाल हैं । उत्पत्ति, पालन और लय यही संसार की गति है। त्रिदेवों में भगवान शंकर को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भगवान् ब्रह्मा जहाँ  स्रष्टा हैं , भगवान विष्णु संरक्षक तो भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं। त्रिदेव मिलकर प्रकृति के नियम का संकेत देते हैं कि जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है। कई पुराणों का मानना है कि भगवान् ब्रह्मा और भगवान् विष्णु साक्षात् शिव से उत्पन्न हुए हैं । कभी-कभी  शिवभक्तों के मन में सवाल उठता है कि भगवान् शिव ने कैसे जन्म लिया था? अर्थात् शिव की उत्पत्ति कैसे हुई? इसके उत्तर में शिव पुराण कहता है कि भगवान् शिव स्वयंभू हैं। अर्थात्  वह किसी शरीर से पैदा नहीं हुए हैं। जब कुछ नहीं था तो भगवान् शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्ति

वायु और प्राण प्राचीन भारतीय दृष्टि एक अध्ययन

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  उत्तर तथा पश्चिम दिशा के मध्य कोण को वायव्य कहते है।इस दिशा का स्वामी या देवता वायुदेव है।वायु पञ्च होते है :- प्राण, अपान, समान, व्यान, और उदान।  हर एक मनुष्य के जीवन के लिए पाँचों वायु परम आवश्यकत होता है। पांचो का शरीर में रहने का स्थान अलग-अलग जगह पर होता है। हमारा शरीर जिस तत्व के कारण जीवित है, उसका नाम ‘प्राण’ है। शरीर में हाथ-पाँव आदि कर्मेन्द्रियां, नेत्र-श्रोत्र आदि ज्ञानेंद्रियाँ तथा अन्य सब अवयव-अंग इस प्राण से ही शक्ति पाकर समस्त कार्यों को करते है।  प्राण से ही भोजन का पाचन, रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य, रज, ओज आदि सभी धातुओं का निर्माण होता है तथा व्यर्थ पदार्थों का शरीर से बाहर निकलना, उठना, बैठना, चलना, बोलना, चिंतन-मनन-स्मरण-ध्यान आदि समस्त स्थूल व सूक्ष्म क्रियाएँ होती है।   प्राण की न्यूनता-निर्बलता होने पर शरीर के अवयव शिथिल व मृतप्राय हो जाते है। प्राण के बलवान होने पर समस्त शरीर के अवयवों में बल, पराक्रम आते है और पुरुषार्थ, साहस, उत्साह, धैर्य, आशा, प्रसन्नता, तप, क्षमा, आदि की प्रवृत्ति होती है।शरीर के बलवान व निरोग होने पर ही भौतिक व आध्यात्मिक ल

प्रदोष व्रत शिव की उपासना

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  *डाॅ.धनंजय कुमार मिश्र* हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव की विशेष उपासना का विधान है। शास्त्रों में इस दिन के लिए कई नियम और पूजा विधि बताए गए हैं। जिन्हें करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है। सनातन धर्म में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन नियम और पूजा विधि को ध्यान में रखते हुए महादेव की आराधना करता है, उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि प्रदोष व्रत से जुड़े नियमों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। साथ ही इस व्रत से जुड़े नियमों का उल्लेख स्कंद पुराण में विस्तार से किया गया है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत से जुड़े नियम, पूजा विधि और मंत्र। शास्त्रों में बताया गया है कि प्रदोष व्रत के दिन व्यक्ति को सुबह के समय स्नान-ध्यान कर के भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए। व्रत की अवधि में नमक का सेवन बिलकुल ना करें और इस दिन किसी से भी विवाद मोल लेने से बचें। साथ ही इस दिन ब्रह्मचर्