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Showing posts from July, 2021

स्वयम्भू हैं आदिदेव महादेव

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  भारतीय पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव हैं । ब्रह्मा सृष्टि के उत्पत्तिकर्त्ता, विष्णु जगत् के पालनकर्त्ता और शिवशंकर महेश संसार के संहारकर्त्ता महाकाल हैं । उत्पत्ति, पालन और लय यही संसार की गति है। त्रिदेवों में भगवान शंकर को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भगवान् ब्रह्मा जहाँ  स्रष्टा हैं , भगवान विष्णु संरक्षक तो भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं। त्रिदेव मिलकर प्रकृति के नियम का संकेत देते हैं कि जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है। कई पुराणों का मानना है कि भगवान् ब्रह्मा और भगवान् विष्णु साक्षात् शिव से उत्पन्न हुए हैं । कभी-कभी  शिवभक्तों के मन में सवाल उठता है कि भगवान् शिव ने कैसे जन्म लिया था? अर्थात् शिव की उत्पत्ति कैसे हुई? इसके उत्तर में शिव पुराण कहता है कि भगवान् शिव स्वयंभू हैं। अर्थात्    वह किसी शरीर से पैदा नहीं हुए हैं। जब कुछ नहीं था तो भगवान् शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्तित्व रहेगा। भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है जिसका अर्थ  सर्वप्रथम देव  है। शिव देवों में प्रथम हैं। संहारक कहे जाने वाले भगवान् शि

बाबा भोलेशिव को प्रिय है बेलपत्र

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  ------ भारतीय धार्मिक  मान्यता के अनुसार श्रावण मास देवों के देव महादेव भगवान् भोलेनाथ  का परम प्रिय  मास माना जाता है। पौराणिक गाथा के अनुसार  भगवान शिव ने स्वयं  ब्रह्मा के पुत्र सनतकुमार आदि को बताया कि  उन्हें श्रावण मास अति प्रिय है क्योंकि भगवती पार्वती ने इसी माह कठिन तपस्या करके उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था। कथा के अनुसार  देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से पर्वत राज हिमालय और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने शिव प्राप्ति  के लिए  सावन महीने में  ही निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया। स्कन्द पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया।  माता पार्वती का श्वेद ही बिल्ववृक्ष के उद्भव का कारण हुआ  है। अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में मा

सावन में सोमवार शिव व्रत का महत्त्व

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  भारतीय प्राचीन ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सोमवार का दिन चन्द्रमा  का दिन होता है। चन्द्रमा का ही दूसरा नाम सोम है। चन्द्रमा के नियंत्रक भगवान शिव हैं। इस दिन पूजा करने से न केवल चन्द्रमा बल्कि भगवान शिव की कृपा भी मिल जाती है। कोई भी व्यक्ति जिसको स्वास्थ्य की समस्या हो, विवाह में  विलम्ब या बाधा हो,  दरिद्रता  हो उसे नियम पूर्वक  सावन माह के प्रत्येक सोमवार को आशुतोष  शिव की आराधना करनी चाहिए । भोलेनाथ की भक्ति  सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाती है।   पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सोमवार और शिव जी के सम्बन्ध के कारण ही भगवती पार्वती ने सोलह सोमवार का व्रत व उपवास रखा था। सावन का सोमवार अत्यधिक पवित्र तथा मनोकामना पूर्ण करने वाला होता है ।  सावन सोमवार को प्रातः काल या प्रदोष काल में स्नान करने के बाद शिव मंदिर जाना चाहिए ।  नंगे पाँव शिवालय जाकर शुद्ध मन से शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए । भगवान शिव  की स्तुति व  साष्टांग  नमन भावपूर्ण होना चाहिए । मंदिर प्रांगण में , शिव सानिध्य में  शिव मंत्र  " ऊँ नमः  शिवाय" का कम से कम 108 बार जप करने से मनोवान्छित फल अवश्य मिलता है। व्रती क