बाबा भोलेशिव को प्रिय है बेलपत्र
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भारतीय धार्मिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास देवों के देव महादेव भगवान् भोलेनाथ का परम प्रिय मास माना जाता है। पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं ब्रह्मा के पुत्र सनतकुमार आदि को बताया कि उन्हें श्रावण मास अति प्रिय है क्योंकि भगवती पार्वती ने इसी माह कठिन तपस्या करके उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था। कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।
अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से पर्वत राज हिमालय और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने शिव प्राप्ति के लिए सावन महीने में ही निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया।
स्कन्द पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। माता पार्वती का श्वेद ही बिल्ववृक्ष के उद्भव का कारण हुआ है। अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में , शाखाओं में दक्षिणायनी के रूप में और पत्तियों में पार्वती के रूप में निवास करती हैं।
बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। पेड़ की शाखा से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए। बेलपत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे। बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए। शिव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए अर्थात् बेलपत्र का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए। शिवलिंग पर दूसरे के द्वारा चढ़ाए बेलपत्र की कभी उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए।
माता पार्वती का प्रतिबिंब स्वरुप बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाने से बाबा प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
हर हर महादेव ।
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