नीतिशतकम्


1. अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।
  ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि नरं न रञ्जयति।।                          
भाषानुवाद:- अज्ञानी व्यक्ति को सरलता से प्रसन्न हो जाता है, विद्वान् व्यक्ति और भी सरलता से प्रसन्न हो जाता है, किन्तु अल्प ज्ञान से उन्मत बने हुए व्यक्ति को ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते।

2. साहित्यसंगीतकलाविहीनः
 साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
  तृणं न खादन्नपि जीवमान
स्तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।।

भाषानुवाद:- साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात् पूँछ और सींगों से हीन पशु के जैसा ही है। घास न खाता हुआ भी वह जीवित है, यह पशुओं का परम सौभाग्य है।

3.येषां न विद्या न तपो न दानं
 ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
  ते मत्र्यलोके भुवि भारभूता  
     मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।

भाषानुवाद:- जिस व्यक्ति में न विद्या है, न दान देने की प्रवृत्ति है, न ज्ञान है, न उत्तम स्वभाव है, न उत्तम गुण है और न धर्म में विश्वास है ; वे मनुष्य इस मत्र्यलोक में भूमि पर भार स्वरूप हैं और मानो मनुष्यरूप में जानवर विचरण करते हैं।

4. जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं
                  मानोन्नतिं दिशति     पापमपाकरोति।
  चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं
                 सत्सङ्गति कथय किं न करोति पुंसाम्।।                            
भाषानुवाद:- सत्संगति बुद्धि की जड़ता को दूर करती है, वाणी में सत्य का प्रवेश कराती है, सम्मान बढ़ाती है, पाप को दूर भगाती है, मन को प्रसन्न करती है और यश को दिशाओं में फैलाती है। सचमुच कहा जाय, सत्संगति मनुष्यों का क्या कल्याण नहीं करती?

5. दाक्षिणं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने
    प्रीतिः साधुजने नयो नृपजने   विद्वज्जनेष्वार्जवम्।
  शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरूजने नारीजने धूत्र्तता
   ये चैवं पुरूषा कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः।।

भाषानुवाद:- स्वजन से उदारता, परजन से दया, दुर्जनों से सदैव दुष्टता, सज्जनों से प्रेम, राजा से नीति का व्यवहार, शत्रुओं से वीरता, विद्वानों से सरलता, शत्रुओं से वीरता, गुरूजनों के प्रति सहिष्णुता और स्त्रियों के प्रति धूत्र्तता की कला में निपुण व्यक्ति की हीं लोक में स्थिति है।


6.  परिवर्तिनि संसारे   मृतः को वा न जायते।।
    स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्।

भाषानुवाद:- इस संसार में उसी व्यक्ति का जन्म लेना सार्थक है जिसके जन्म लेने से वंश की समुन्नति होती है अन्यथा इस परिवर्तनशील संसार में कौन नहीं मरता और कौन पैदा नहीं लेता।

7.  आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
    नास्त्युद्यमसमो  बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
भाषानुवाद:- आलस्य मनुष्यों के शरीर में स्थित सबसे बड़ा शत्रु है। परिश्रम के समान कोई बन्धु नहीं, जिसे करने से मनुष्य दुःख नहीं पाता।

8. यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः
 स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः।
  स एव वक्ता स च दर्शनीयः 
  सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।।

भाषानुवाद:- इस संसार में जिस व्यक्ति के पास धन है वही उत्तम कुल वाला कहा जाता है, वही पण्डित माना जाता है, वही गुणवान् सुना जाता है, वही वक्ता और दर्शनीय समझा जाता है, सचमुच सारे गुण धन का आश्रय लेते हैं।

9. दानं भोगो नाशस्तिस्रो     गतयो भवन्ति वित्तस्य।
   यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति।।

भाषानुवाद:- धन की तीन हीं गति होती है - दान, भोग और नाश। जो व्यक्ति न दान देता है और न उपभोग हीं करता है उसके धन की तीसरी गति होती है अर्थात् धन का नाश होता है।

 10. कुसुमस्तबकस्येव    द्वयी वृत्तिर्मनस्विनः।
     मूर्ध्निवा सर्वलोकस्य शीर्येत वन एव वा।।

भाषानुवाद:- फूल के गुच्छे के समान स्वाभिमानियों की दो प्रकार की ही प्रवृति होती है - समस्त संसार के सिर पर आरूढ़ होना अथवा वन में हीं मुरझा जाना।

11. केयूराणि न भूषयन्ति पुरूषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला
                 न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजाः।
    वाण्येका समलङ्करोति पुरूषं या संस्कृता धार्यते
                 क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्।।
भाषानुवाद:- मनुष्य की शोभा न तो बाजूबन्ध से, न चन्द्रोज्ज्वल हार से, न स्नान से, न विलेपन (उबटन) से, न फूलों से और  न  हीं अलंकृत केशों से होती है। एक मात्र संस्कृत निष्ठ वाणी ही मनुष्य की शोभा बढ़ाती है क्योंकि समस्त आभूषण समय के साथ नष्ट हो जाते है, सिर्फ वाणी रूपी आभूषण हीं स्थायी होती है।




12. विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
                विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरूः।
    विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं
                विद्या राजसु पूजिता न तु धनं विद्याविहीनः पशुः।।
भाषानुवाद:- विद्या मनुष्य का सबसे सुन्दर स्वरूप है, छिपा हुआ धन है। विद्या भोग, कीर्ति एवं सुख देने वाली तथा गुरूओं की भी गुरू है। विद्या विदेश में भाई के समान है और परम भाग्य है। विद्या राजाओं में पूजित है न कि धन। विद्या से विहीन मनुष्य पशु के समान होता है।

 13. को लाभो गुणिसंगमः किमसुखं प्राज्ञैतरैः संगतिः
           का हानिः समयच्युतिर्निपुणता का धर्मतत्त्वे रतिः।
     कः शूरो विजितेन्द्रियः प्रियतमा कानुव्रता किं धनं
            विद्या किं सुखमप्रवासगमनं राज्यं किमाज्ञाफलम्।।
भाषानुवाद:-  इस संसार में लाभ क्या है? गुणियों की संगति। दुःख क्या है? मूर्खों से संगति। हानि क्या है ? समय का व्यर्थ नष्ट हो जाना। निपुणता क्या है? धर्मतत्त्व में में प्रेम। वीर कौन है? जिसने इन्द्रियों को जीत लिया है। सबसे प्रिया स्त्री कौन है? पति के अनुकूल आचरण करने वाली पतिव्रता स्त्री। धन क्या है? विद्या। सुख क्या है? अप्रवासगमन (परदेश नहीं जाना)। राज्य क्या है? आज्ञा का पालन होना।

14. कान्ताकटाक्षविशिखा न लुनन्ति यस्य,
                चित्तं न निर्दहति कोपकृशानुतापः।
    कर्षन्ति भूरि विषयाश्च न लोभपाशै-
                र्लोकत्रयं जयति कृत्स्नमिदं स धीरः।।
भाषानुवाद:-  रमणीय स्त्रियों के नेत्र-कटाक्षरूपी बाण जिस पुरूष के हृदय को वेध नहीं पाते, क्रोधरूपी प्रचण्ड अग्नि का सन्ताप जिसके हृदय को जला नहीं पाता तथा अनेक प्रकार के विषय जिसे लोभपाश से अपनी ओर खींच नहीं पाते, ऐसे धैर्यवान् मनुष्य तीनों लोकों को जीतने में समर्थ होते हैं। अर्थात् काम, क्रोध और लोभ पा विजय पाने वाला धैर्यवान् व्यक्ति जगत् जीत सकता है।

15. निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
        लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
    अद्यैव वा मरणमस्तु     युगान्तरे वा
        न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।।
भाषानुवाद:-  नीतिनिपुण व्यक्ति चाहे निन्दा करें या स्तुति, लक्ष्मी पास आए या दूर चली जाय, मौत आज हो या युगों बाद परन्तु धीर पुरूष न्याय के रास्ते से विचलित नहीं होते।

16. भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैः नवाम्बुभिर्भूमिविलम्बिनो घनाः।
    अनुद्धताः सत्पुरूषाः समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्।।
भाषानुवाद:-   फलों के लगने पर वृक्ष झुक जाते हैं, नए जल से भरा हुआ मेघ भूमि की ओर लटक जाते हैं, सज्जन पुरूष समृद्धि में स्वभावतः विनम्र हो जाते हैं। विनम्रता परोपकारियों का मौलिक स्वभाव है।
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*नीतिशतक  : महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर*

१. नीतिशतकम् के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर. भर्तृहरि
२. नीतिशतक किस श्रेणी का काव्य है ?
उत्तर. मुक्तक काव्य
३. नीतिशतक का वर्ण्य विषय क्या है ?
उत्तर. नीतिशास्त्र
४. चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार भर्तृहरि की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर. ६५२ ई.(652) 
५. वाक्यपदीयम् के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर. भर्तृहरि
६. संस्कृत साहित्य में कितने भर्तृहरि का उल्लेख मिलता है ?
उत्तर. चार । १. वाक्यपदीयम् के रचयिता भर्तृहरि २. मालवसम्राट भर्तृहरि ३. योगी भर्तृहरि ४. शतकत्रयकार भर्तृहरि
७. भर्तृहरि का समय क्या है ?
उत्तर. द्वितीय-तृतीय शताब्दी
८. भर्तृहरि के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर. गन्धर्वसेन ।
९. भर्तृहरि के सौतेले भाई कौन थे ?
उत्तर. विक्रम
१०. भर्तृहरि की पत्नी का क्या नाम था ? 
उत्तर. पिंगला ।
११. भर्तृहरि की कितनी रचनाएं हैं ? 
उत्तर. चार । १. नीतिशतक २. शृंगार शतक ३. वैराग्य शतक ४. वाक्यपदीयम् ।
१२. भर्तृहरि के गुरु कौन थे ?
उत्तर. गोरखनाथ ।
१३. मुक्तक काव्य का लक्षण क्या है ?
उत्तर. मुक्तक वह रचना है जो अर्थ की दृष्टि से  दूसरे पद्य पर आश्रित ना हो । 
१४. मुक्तक काव्य कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर. तीन प्रकार । 1. नीतिप्रधान 2. शृंगारप्रधान 3. वैराग्य प्रधान ।
१५. इत्सिंग के अनुसार भर्तृहरि किस धर्म को मानते थे ?
उत्तर . बौद्ध धर्म ।
१६. भर्तृहरि ने नीतिशतक में कितने छन्दों का प्रयोग किया है ?
उत्तर. चौदह ।
१७. नीतिशतक के मङ्गलाचरण में किसकी वन्दना की गई है ?
उत्तर. तेजोमय परब्रह्म ।
१८. नीतिशतक के मङ्गलाचरण में कौन सा छन्द है ?
उत्तर. अनुष्टुप् ।
१९. नीतिशतक में मङ्गलाचरण  का कौन सा प्रकार प्रयुक्त है ?
उत्तर. नमस्कारात्मक ।
२०. 'मूर्त्तये' में कौन सी विभक्ति है ?
उत्तर. चतुर्थी विभक्ति ।
२१. नीतिशतक के मङ्गलाचरण का श्लोक क्या है ?
उत्तर.  दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्त्तये ।
          स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ॥
२२. 'दिक्कालाः' में कौन सा समास है ?
उत्तर. इतरेतर द्वन्द्व समास(दिशश्च कालश्च दिक्कालाः)
२३. 'नमः' के योग में कौन सी विभक्ति होती है ?
उत्तर. चतुर्थी ।( नमः स्वस्ति स्वाहा स्वधा अलम् वषट् योगाच्च चतुर्थी ) ।
२४. 'चिन्मात्रः' में कौन सा समास है ?
उत्तर. बहुब्रीहि समास(चित् एव मात्रा यस्य) ।
२५. 'अनन्त' में कौन सा समास है ?
उत्तर. बहुब्रीहि समास ( न विद्यते अन्तो यस्य) ।
२६. मङ्गलाचरण कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर. तीन प्रकार । १. नमस्कारात्मक २. आशीर्वादात्मक ३. वस्तुनिर्देशात्मक ।

२७. कवियों के सुन्दर वचन कहाँ नष्ट हो रहे हैं ?
उत्तर. शरीर में ।( जीर्णमङ्गे सुभाषितम्) ।
२८. स्मय शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर. अहंकार ।
२९. बोद्धारः केन ग्रस्ताः ?
उत्तर. बोद्धारः मत्सरग्रस्ताः ।
३०. प्रभवः शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर. राजा या स्वामी ।
३१. अनुष्टुप् छन्द का लक्षण क्या है ?
उत्तर. श्लोके षष्ठं गुरुं ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।
         द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥ 
अर्थात् अनुष्टुप् के प्रत्येक पाद का पञ्चम वर्ण लघु और छठा गुरु होता है । दूसरे तथा चतुर्थ चरण का सप्तम वर्ण लघु होता है । प्रथम तथा तृतीय चरण का सप्तम वर्ण गुरु होता है ।
३२. अनुष्टुप् छन्द में कुल कितनी मात्राएँ होती हैं ?
उत्तर. बत्तीस(32) ।
३३. मत्सरग्रस्ताः में कौन सा समास है ?
उत्तर. तृतीया तत्पुरुष । ( मत्सरेण ग्रस्ताः) ।
३४. प्रभवः केन दूषिताः ?
उत्तर. प्रभवः स्मयदूषिताः ।
३५. सुखमाराध्यः कः ?
उत्तर. अज्ञः ।
३५. ब्रह्मा किसे प्रसन्न नहीं कर सकता है ?(ब्रह्मा कं नरं न रञ्जयति ?)
उत्तर. कुछ जानकर स्वयं को सर्वज्ञ समझने वाले को ।( ज्ञानलवदुर्विदग्धम् ।)
३६. सुखतरं कः आराध्यते ?
उत्तर. विशेषज्ञः ।
३७. अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः ।
        ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि च तं नरं न रञ्जयति ॥
                                  अस्मिन् श्लोके कः छन्दः ?
उत्तर. आर्या छन्द ।
३८. आर्या छन्द का लक्षण क्या है ?
उत्तर. यस्या पादे प्रथमे द्वादशमात्रास्तथा तृतीयेऽपि ।
          अष्टादश द्वितीये  चतुर्थके  पञ्चदश सा आर्या ॥ 
अर्थात् जिस छन्द के पहले और तीसरे चरण में बारह मात्राएँ, दूसरे चरण में अट्ठारह(18) मात्राएँ तथा चतुर्थ चरण में पन्द्रह(15) मात्राएँ होती हैं वहाँ आर्या छन्द होता है ।   
३९. किसे अनुकूल नहीं किया जा सकता है ?
उत्तर. दुराग्रही व्यक्ति के मन को ।
४०. कोपितम् में कौन सा प्रत्यय है ?
उत्तर. इतच् प्रत्यय । ( तदस्य संजातं तारकादिभ्यः इतच् सूत्र से ।)
४१. न तु प्रतिनिविष्ट मूर्खजनचित्तमाराधयेत् में कौन सा छन्द है ?
उत्तर. पृथ्वी छन्द ।
४२. पृथ्वी छन्द का लक्षण क्या है ?
उत्तर. जसौ जसयला वसुगृहयतिश्च पृथ्वी गुरुः ।
 जहाँ प्रत्येक पाद में जगण, सगण, जगण, सगण, यगण तथा लघु गुरु  के क्रम से सत्रह(17) वर्ण होते हैं वहाँ पृथ्वी छन्द होता है ।
४३. प्रसह्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्त्रदंष्ट्रान्तरात् में कौन सा अलंकार है ?
उत्तर. अतिशयोक्ति अलंकार ।
४४. ऊर्मि शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर. लहर या तरङ्ग ।
४५. क्षाराम्बुधिः में कौन सा समास है ?
उत्तर. कर्मधारय समास(क्षारश्चासौ अम्बुधिः क्षाराम्बुधिः) ।
४६. शार्दूलविक्रीडित छन्द का लक्षण क्या है ?
उत्तर. सूर्याश्वैर्मसजस्ततः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् । 
अर्थात् जहाँ प्रत्येक चरण में मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण तथा गुरु के क्रम से उन्नीस(19) वर्ण होते हैं, उसे शार्दूलविक्रीडित छन्द कहा जाता है ।
४७. अपण्डितों (मूर्खों) का आभूषण क्या है ?
उत्तर. मौन अर्थात् चुप रहना ।( विभूषणं मौनमपण्डितानाम् ) ।
४८. स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः । में कौन सा छन्द है ?
उत्तर. उपजाति छन्द ।
४९. सर्वज्ञता का अभिमान कब उतर जाता है ?
उत्तर. विद्वानों की सभा में जाने पर ।
५०. कदा ज्वर इव मदो मे व्यपगतः ?
उत्तर. बुधजनसकाशादवगतम् ।

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