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Showing posts from November, 2020

महर्षि दधीचि पुत्र पिप्पलाद की प्रेरक कथा

 श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।   एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा- नारद- बालक तुम कौन हो ? बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ । नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ? बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।    तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि  हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गय

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

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 संस्कृत भाषा के आदिकाव्य रामायण में आजकल एक प्रसिद्ध श्लोक नहीं मिलता है जिससे पाठकों व जिज्ञासुओं को लगने लगता है कि यह श्लोक रामायण का नहीं है । कुछ लोगों की धारणा बदलने लगती है। कुछ अन्य किसी कवि की रचना मान लेते हैं । आध्यात्म रामायण, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, महावीरचरितम्,उत्तररामचरितम् आदि ग्रन्थों का नाम लेने लगते हैं पर यह प्रसिद्ध श्लोक आर्षकाव्य रामायण का ही है। वाल्मीकि ही इसके रचयिता हैं । दो रूप में यह श्लोक है। *"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"*, एक प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक का अन्तिम आधा भाग है। यह नेपाल का राष्ट्रीय ध्येयवाक्य भी है। यह श्लोक वाल्मीकि रामायण के कुछ पाण्डुलिपियों में मिलता है, और दो रूपों में मिलता है।प्रथम रूप : निम्नलिखित श्लोक 'हिन्दी प्रचार सभा मद्रास' द्वारा १९३० में सम्पादित संस्करण में आया है। इसमें भारद्वाज, राम को सम्बोधित करते हुए कहते हैं- मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव । जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥ हिन्दी अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का

पवित्र पौराणिक पर्व धनतेरस

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 *पवित्र पौराणिक पर्व धनतेरस*  प्रस्तुति: डॉ धनंजय कुमार मिश्र,अभिषद् सदस्य,  सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका झारखण्ड  ----- धनतेरस  पांच दिन तक चलने वाले दीपावली  पर्व का पहला दिन है। इसे धनत्रयोदशी , धनवन्तरि त्रयोदशी  या धन्वन्तरि जयंती  भी कहा जाता है.  पौराणिक मान्‍यता है कि क्षीर सागर के मंथन के दौरान धनतेरस के दिन ही माता लक्ष्‍मी और भगवान् कुबेर  प्रकट हुए थे। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वन्तरि का जन्‍म हुआ था। यही कारण है कि इस दिन माता लक्ष्‍मी, भगवान् कुबेर और भगवान् धन्‍वन्तरि की पूजा का विधान है. भगवान् धन्‍वन्तरि के जन्‍मदिन को भारत सरकार का आयुर्वेद मंत्रालय 'राष्‍ट्रीय आयुर्वेद दिवस' (National Ayurveda Day) के नाम से मनाता है। इसके अलावा धनतेरस के दिन सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस दीपावली के प्रारंभ  का प्रतीक भी है. इसके बाद छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी  उसके बाद बड़ी या मुख्‍य दीपावली फिर गोवर्द्धन पूजा और अंत में भाई दूज या भैया दूज  का उत्सव  मनाया जाता है।  धनतेरस कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष क