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Showing posts from August, 2021

 भारत जनगणना 2021 विशेष

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डॉ धनञ्जय कुमार मिश्र  दुमका (झारखण्ड) dkmishraspcd@gmail.com ----- हाल ही में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने जनगणना 2021 का शुभंकर जारी किया है। ज्ञातव्य है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 दिसंबर, 2019 को भारत की जनगणना 2021 की प्रक्रिया शुरू करने एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) को अपडेट करने की मंज़ूरी दे दी थी। इसके तहत पूरे देश में जनगणना का कार्य दो चरणों में संपन्न किया जाएगा। सरकारी अनुमान के अनुसार, जनगणना 2021 की प्रक्रिया पूरी करने में 8,754 करोड़ 23 लाख रूपए का खर्च आएगा। इस प्रक्रिया में देश के विभिन्न राज्यों के अलग-अलग विभागों के 30 लाख कर्मचारी भाग लेंगे, जबकि NPR के लिये 3941 करोड़ 35 लाख रूपए का खर्च आएगा। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2011 की जनगणना में देश भर से लगभग 27 लाख कर्मचारियों ने अपना योगदान दिया था। किसी भी देश के विकास एवं उसके भविष्य की नीतियों के निर्धारण के लिये देश के नागरिकों की सही संख्या का पता होना बहुत ज़रूरी होता है। नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के प्रमाणिक आँकड़े सरकार की मदद करते हैं, अत: भारत में प्रत्येक 10 साल पर जनगणन

आनन्दवर्धन और उनका ध्वन्यालोक

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 आनन्दवर्धन, काव्यशास्त्र में ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं। काव्यशास्त्र के ऐतिहासिक पटल पर आचार्य रुद्रट के बाद आचार्य आनन्दवर्धन आते हैं और इनका ग्रंथ ‘ध्वन्यालोक’ काव्य शास्त्र के इतिहास में मील का पत्थर है। आचार्य आनन्दवर्धन कश्मीर के निवासी थे और ये तत्कालीन कश्मीर नरेश अवन्तिवर्मन के समकालीन थे। इस सम्बंध में महाकवि कल्हण ‘राजतरंगिणी’ में लिखते हैं: कश्मीर नरेश अवन्तिवर्मन का राज्यकाल 855 से 884 ई. है। अतएव आचार्य आनन्दवर्धन का काल भी नौवीं शताब्दी मानना चाहिए। इन्होंने पाँच ग्रंथों की रचना की है- विषमबाणलीला, अर्जुनचरित, देवीशतक, तत्वालोक और ध्वन्यालोक।  ध्वनि सिद्धान्त, भारतीय काव्यशास्त्र का एक सम्प्रदाय है। भारतीय काव्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों में यह सबसे प्रबल एवं महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। ध्वनि सिद्धान्त का आधार 'अर्थ ध्वनि' को माना गया है। इस सिद्धान्त की स्थापना का श्रेय 'आनंदवर्धन' को है किन्तु अन्य सम्प्रदायों की तरह ध्वनि सिद्धान्त का जन्म आनंदवर्धन से पूर्व हो चुका था। स्वयं आनन्दवर्धन ने अपने पूर्ववर्ती विद्वानों का मतोल्

एकता, राष्ट्र प्रेम और स्वाधीनता

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ईमानदारी

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                             डॉ धनंजय कुमार मिश्र  ईमानदारी शब्द अत्यंत व्यापक है । इसके मूल में सत्य समाहित है। शब्द कोश में इसके लिए कई शब्द  देखने को मिलते हैं । जैसे- नेकनीयती, खरापन, सत्यपरायण, सत्यनिष्ठ, सत्य शील, निश्छलता आदि - आदि।  मेरी समझ से छल-प्रपंच से दूर, लोभ-लालच से विरक्त,  कर्त्तव्य की भावना से भरपूर मानव हृदय को ही ईमानदार की श्रेणी में रखा जा सकता है ।  संस्कृत में एक सुन्दर उक्ति है- *त्यागेन, शीलेन, गुणेन कर्मणा* अर्थात् मनुष्य की पहचान त्याग से, स्वभाव से, गुण तथा कर्म से होती है।  यह समस्त भाव ईमानदारी के अन्तर्गत आते हैं । सच कहा जाए तो ईमानदारी एक ऐसी अनोखी  बहुमूल्य  माला है जिसमें अनेक मानवीय मूल्य मोती की तरह पिरोए हुए हैं ।  यह ऐसा गुण है जो  अमीरी-गरीबी से परे है। यह एक दैवीय ज्योति के समान है जिसका प्रकाश मानव को महामानव की श्रेणी में ला खड़ा करता है।  ईमानदारी के किस्से हमारे ग्रन्थों में भरे पड़े हैं । बस ,हमें उसे अंगीकार करना है, अपने व्यवहार में लाना है। आज कल कुछ भौतिकवादी लोग ईमानदारी को नादानी समझ उपहास भी करते है पर इस शाश्वत मूल्य को हमें बरकरा