संस्कृत साहित्य में गद्य विकास की रूप रेखा
धनंजय कुमार मिश्र* संस्कृत गद्य का आरम्भ ब्राह्मण-ग्रन्थों और उपनिषदों के गद्य में देखा जा सकता है। बहुत दिनों तक सरल स्वाभाविक शैली में गद्य लिखने की परम्परा चलती रही। समय के साथ गद्य में भी काव्य के उपादानों को प्रविष्ट कराने की प्रवृत्ति पनपी। आरम्भिक शिलालेखों में गद्य-काव्य प्राप्त होते हैं। रूद्रदामन का गिरनार-शिलालेख (150 ई0) तथा हरिषेण रचित समुद्रगुप्त-प्रशस्ति (360 ई0) महत्वपूर्ण गद्य काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। संस्कृत में गद्य-काव्य की रचना बहुत कम हुई है। पद्य की अपेक्षा अधिक श्रम, आलोचकों की उपेक्षा तथा ऊँचा मानदण्ड ये तीन मुख्य कारण हैं जिसके चलते गद्य की ओर कवि अभिमुख नहीं होते थे। उपर्युक्त बातों को यह उक्त
Comments
Post a Comment