ईमानदारी
डॉ धनंजय कुमार मिश्र
ईमानदारी शब्द अत्यंत व्यापक है । इसके मूल में सत्य समाहित है। शब्द कोश में इसके लिए कई शब्द देखने को मिलते हैं । जैसे- नेकनीयती, खरापन, सत्यपरायण, सत्यनिष्ठ, सत्य शील, निश्छलता आदि - आदि।
मेरी समझ से छल-प्रपंच से दूर, लोभ-लालच से विरक्त, कर्त्तव्य की भावना से भरपूर मानव हृदय को ही ईमानदार की श्रेणी में रखा जा सकता है ।
संस्कृत में एक सुन्दर उक्ति है- *त्यागेन, शीलेन, गुणेन कर्मणा* अर्थात् मनुष्य की पहचान त्याग से, स्वभाव से, गुण तथा कर्म से होती है। यह समस्त भाव ईमानदारी के अन्तर्गत आते हैं । सच कहा जाए तो ईमानदारी एक ऐसी अनोखी बहुमूल्य माला है जिसमें अनेक मानवीय मूल्य मोती की तरह पिरोए हुए हैं ।
यह ऐसा गुण है जो अमीरी-गरीबी से परे है। यह एक दैवीय ज्योति के समान है जिसका प्रकाश मानव को महामानव की श्रेणी में ला खड़ा करता है।
ईमानदारी के किस्से हमारे ग्रन्थों में भरे पड़े हैं । बस ,हमें उसे अंगीकार करना है, अपने व्यवहार में लाना है। आज कल कुछ भौतिकवादी लोग ईमानदारी को नादानी समझ उपहास भी करते है पर इस शाश्वत मूल्य को हमें बरकरार रखना है। ख़ासकर हम शिक्षक समुदाय को .......
धन्यवाद! आपका दिन मंगलमय हो ।
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