लोक आस्था का महापर्व छठ
डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र * ‘‘समाजस्य हितम् शास्त्रेषु निहितम्’’ भारतवर्ष विविधताओं और विभिन्नताओं का देश है। विविध परम्परा और सुसंस्कृत संस्कृति भारतवर्ष की पहचान है। प्राचीन आर्ष ग्रन्थ वर्तमान का मार्गदर्शन और भविष्य का निर्धारण करने में महती भूमिका का निर्वहण करते हैं। इन आर्ष ग्रन्थों में वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत और पुराण अतीत से आज तक हमारे जीवन पथ को आलोकित कर रहे हैं। इन ग्रन्थ-रत्नों में कर्मों की प्रधानता के द्वारा जीवन जीने की प्रेरणा दी गई है। हमारे कर्म सात्विक, शुद्ध और सुन्दर हों जिससे समाज का कल्याण और मानवता का उत्थान होता रहे। प्रकृति और पर्यावरण के बिना मानव समाज का अस्तित्व ही नहीं अतएव उनके संरक्षण का सूक्ष्म संदेश भी आर्षग्रन्थों में निहित है। किसी ने ठीक ही कहा है ‘‘समाजस्य हितम् शास्त्रेषु निहितम्’’- अर्थात् समाज का हित शास्त्रों में निहित है। शास्त्र हमारे ज्ञानचक्षु का उन्मीलन कर गुरू की भाँति हितैषी हैं। भारतीय शास्त्रों में कार्तिक मास को विशे