Posts

Showing posts from October, 2023

दुर्गा सनातनी शक्ति

Image
  डॉ धनंजय कुमार मिश्र विभागाध्यक्ष संस्कृत एस के एम विश्वविद्यालय दुमका (झारखंड ) दुर्गा या आदिशक्ति भारतीय धर्म और आस्था की प्रमुख देवी हैं, जिन्हें जगदम्बा, नवदुर्गा, देवी, शक्ति, आद्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगज्जननी, परमेश्वरी, सुरेश्वरी, सती, साध्वी, भवानी,  परम सनातनी देवी आदि कई नामों से जाना जाता है। दुर्गा स्वयं प्रकृति है। जीवन का आधार है। भारतीय धर्म एवं दर्शन के तीनों मुख्य सम्प्रदायों के समन्वय की देवी दुर्गा हैं। शैव सम्प्रदाय की शिवा, वैष्णव सम्प्रदाय की वैष्णवी और शाक्त सम्प्रदाय की शक्ति का एकाकार रूप मां दुर्गा हैं।  शास्त्रों में भगवती दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती, परब्रह्म परमेश्वरी कहा गया है। दुर्गा अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामयी, मोक्षदा   तथा कल्याणकारिणी हैं। शास्त्रीय मान्यता है कि शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का दुर्गा देवी विनाश करतीं हैं। वेदों, उपनिषदों और पुराणों के अनुसार  समग्र ईश्वरीय तत्त्वों की एकात्मकता का अपर नाम आद्या शक्ति है। ब्राह्मी, माहेश्वरी, एन्द्री, वारुणी, वैष्णवी आदि देवी द

महाशक्ति दुर्गा ही परब्रह्म परमात्मा

Image
  डॉ धनंजय कुमार मिश्र विभागाध्यक्ष संस्कृत एस के एम यू दुमका  महाशक्ति दुर्गा ही परब्रह्म हैं, जो विविध रूपों में विभिन्न लीलाएं करती हैं। इन्हीं की शक्ति से ब्रह्मा विश्व की सृष्टि, विष्णु विश्व का पालन और शिव जगत् का संहार करने में सक्षम हैं। वस्तुत: यही आद्या शक्ति सृजन, पालन और संहार करने वाली हैं। यही परा शक्ति नवदुर्गा व दश महाविद्या हैं। इनके अतिरिक्त दूसरा कोई भी सनातन या अविनाशी तत्त्व नहीं है। भारतीय संस्कृति में सर्वव्यापी चेतनसत्ता अर्थात् अपने उपास्यकी उपासना मातृरूप से, पितृरूपक्षसे अथवा स्वामिरूप से करने की परम्परा है।  उपासना किसी भी रूप से की जा सकती है, किंतु वह होनी चाहिये भावपूर्ण।  इस लोक में सम्पूर्ण जीवों के लिये मातृभाव की महिमा विशेष है। व्यक्ति अपनी सर्वाधिक श्रद्धा स्वभावतः मां के चरणों में अर्पित करता है; क्योंकि माँ की गोद में ही सर्वप्रथम उसे लोक दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। इस प्रकार माता ही सबकी आदिगुरु है और उसी की दया तथा अनुग्रह पर बालकों का ऐहिक एवं पारलौकिक कल्याण निर्भर करता है। इसीलिये 'मातृदेवो भव।' मंत्र से सर्वप्रथम स्थान माता को

त्रिविध कष्टों को दूर करता है माता रानी के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना

Image
सनातन संस्कृति में सत्यं शिवम् सुन्दरम् का शाश्वत समन्वय है। इसके वैष्णव, शैव और शाक्त सम्प्रदाय अत्यन्त प्राचीन व सर्वथा प्रासंगिक है। तीनों सम्प्रदायों में शाक्त सम्प्रदाय प्रकृति रूपा है। प्रकृति अर्थात् नारी शक्ति। *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:* जहां नारी शक्ति की पूजा होती है वहां देवत्व का वास होता है। शान्ति व समृद्धि रहती है।   अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का उपदेश किया गया है। श्री राम ने रावण विजय से पूर्व शक्ति की अराधना की थी। पांडवों ने भगवती की अराधना कर कौरवों पर विजय प्राप्ति का वरदान पाया था। प्रजापति दक्ष की कन्या सती और पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा साक्षात् शक्ति हैं। नवरात्रि में शक्ति की पूजा होती है। अष्ट मातृकाएं, नव दुर्गा व दश विद्याएं सभी शक्ति स्वरूपा हैं।  पौराणिक कथाओं के अनुसार 51 शक्तिपीठ जागृत शक्तियां हैं। नवरात्रि में इन शक्तिपीठों का दर्शन मात्र मनोवांछित फल प्रदान करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 51 शक्ति के रूप में जिनका नाम मिलता है वे हैं - भुवनेशी, उमा, महिषमर्दिनी, श्रीसुन्दरी, विशालाक्षी

या देवी सर्वभूतेषु....

Image
शारदीय नवरात्रि में प्रायः हर मंदिरों, धर्म स्थानों, पांडालों में अत्यंत कर्ण प्रिय मंत्र  सुनाई पड़ता है जो  भक्ति भावना को उत्प्रेरित करता है। इन मंत्रों में एक काफी प्रचलित है - *या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*  अर्थात् जो देवी समस्त जीवों में शक्ति रुप से स्थित है, उस देवी को नमस्कार है , नमस्कार है, नमस्कार है। यह मंत्र देवी सूक्त का है। मार्कण्डेय पुराण में नारी शक्ति को मानसिक , आत्मिक, यौगिक  आदि विभिन्न शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। देवी सूक्त के अनुसार मूलतः इक्कीस शक्तियों का निवास संसार के समस्त जीवों में है। इन मंत्रों में इन्हीं नारी शक्तियों को बार-बार नमस्कार कर कृतज्ञता प्रकट किया जाता है। ये शक्तियां हैं - विष्णु माया, चेतना, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षान्ति, जाति, लज्जा, शान्ति, श्रद्धा, कान्ति, लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, मातृ, भ्रान्ति और व्याप्ति।  भारतीय सनातन धर्म और दर्शन में सृष्टि रचना में माया को विष्णु की ही शक्ति स्वीकार किया गया है। भगवती दुर्गा ही माया शक्ति रूपिणी है

शारदीय नवरात्रि का है विशेष महत्त्व

Image
देवी भागवत के अनुसार  प्रत्येक वर्ष चार नवरात्रि होती हैं जिसमें भगवती दुर्गा की आराधना का विशेष महत्त्व है।  मुख्य रूप से दो नवरात्रि के बारे में प्रायः सभी जानते हैं वासन्तीय नवरात्रि ( चैत्र मास में ) और शारदीय नवरात्रि जो शरद् ऋतु के आश्विन् मास के शुक्ल पक्ष में होती है। इन दोनों नवरात्रि में माँ दुर्गा के नव रूपों में पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त दो नवरात्रि और होती है, जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। वर्षा ऋतु में आषाढ मास के शुक्ल पक्ष मे और  शिशिर ऋतु में माघ मास के शुक्ल पक्ष में होती है।नवरात्रि में मुख्य रूप से दस महाविद्याओं की पूजा होती है। पूजा की विधि सभी नवरात्रि में समान होती है। अश्विन् शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से नवमी तक की नवरात्रि का विशेष महत्त्व होता है। इन नौ दिनों में मद्यमान, माँस-भक्षण आदि वर्जित माना गया है। सात्विक भावना से इन नौ दिनों में पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। पवित्र और उपवास में रहकर इन नौ दिनों में की गई हर तरह की साधनाएँ और मनकामनाएँ पूर्ण होती है। अपवित्रता से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। भारतीय सनातन संस्कृति में प्रत्

राक्षसी शक्तियों का विनाश करती है मां दुर्गा

Image
दुर्गा या आदिशक्ति भारतीय धर्म और आस्था की प्रमुख देवी हैं, जिन्हें जगदम्बा, नवदुर्गा, देवी, शक्ति, आद्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगज्जननी, परमेश्वरी, सुरेश्वरी, सती, साध्वी, भवानी,  परम सनातनी देवी आदि कई नामों से जाना जाता है। दुर्गा स्वयं प्रकृति है। जीवन का आधार है। भारतीय धर्म एवं दर्शन के तीनों मुख्य सम्प्रदायों के समन्वय की देवी दुर्गा हैं। शैव सम्प्रदाय की शिवा, वैष्णव सम्प्रदाय की वैष्णवी और शाक्त सम्प्रदाय की शक्ति का एकाकार रूप मां दुर्गा हैं।  शास्त्रों में भगवती दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती, परब्रह्म परमेश्वरी कहा गया है। दुर्गा अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामयी, मोक्षदा   तथा कल्याणकारिणी हैं। शास्त्रीय मान्यता है कि शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का दुर्गा देवी विनाश करतीं हैं। वेदों, उपनिषदों और पुराणों के अनुसार  समग्र ईश्वरीय तत्त्वों की एकात्मकता का अपर नाम आद्या शक्ति है। ब्राह्मी, माहेश्वरी, एन्द्री, वारुणी, वैष्णवी आदि देवी दुर्गा ही हैं।  सृजन, पालन और लय इनके गोद में खेलते हैं। सकारात्मक ऊर्जा की स्रोत स्

नभः स्पृशं दीप्तम्'

 भारतीय वायु सेना का आदर्श वाक्य *'नभः स्पृशं दीप्तम्',*  भारतीय वायुसेना आज 8 अक्टूबर 2023 को अपना 90 वां वायुसेना दिवस  मना रही है। भारतीय वायुसेना आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना बन चुकी है। कभी सिर्फ पांच लोगों के साथ शुरू हुआ वायुसेना का सफर आज लाखों ऑफिसर और जवानों तक जा पहुंचा है। भारतीय वायुसेना ने आपदाओं के दौरान उल्लेखनीय कार्य क्षमता दिखाई है। वायुसेना जब से अस्तित्‍व में आई है तब से लेकर आज तक अपने ध्येय वाक्‍य 'नभः स्पृशं दीप्तम्' को सच करती आ रही है। यह आदर्श वाक्‍य को श्रीमद्भगवद्गीता के 11वें अध्याय से लिया गया है।  युद्ध से पहले जिस समय भगवान श्री कृष्‍ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था, उस समय अर्जुन परेशान हो जाते हैं। विराट स्वरूप एक पल के लिए अर्जुन के मन में भय पैदा कर देता है। इसी समय बोले गए एक श्‍लोक 'नभ:स्‍पृशं दीप्‍तमनेकवर्ण व्‍यात्ताननं दीप्‍तविशालनेत्रम्, दृष्‍ट्वा हि त्‍वां प्रव्‍यथ‍ितान्‍तरात्‍मा धृतिं न विन्‍दामि शमं च विष्‍णो' से वायुसेना से अपना आदर्श वाक्य लिया हैं। इसका अर्थ है, ‘हे विष्णो, आकाश को स्पर्श करने वाले, द