दुर्गा सनातनी शक्ति

 


डॉ धनंजय कुमार मिश्र

विभागाध्यक्ष संस्कृत

एस के एम विश्वविद्यालय

दुमका (झारखंड )



दुर्गा या आदिशक्ति भारतीय धर्म और आस्था की प्रमुख देवी हैं, जिन्हें जगदम्बा, नवदुर्गा, देवी, शक्ति, आद्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगज्जननी, परमेश्वरी, सुरेश्वरी, सती, साध्वी, भवानी,  परम सनातनी देवी आदि कई नामों से जाना जाता है। दुर्गा स्वयं प्रकृति है। जीवन का आधार है।

भारतीय धर्म एवं दर्शन के तीनों मुख्य सम्प्रदायों के समन्वय की देवी दुर्गा हैं। शैव सम्प्रदाय की शिवा, वैष्णव सम्प्रदाय की वैष्णवी और शाक्त सम्प्रदाय की शक्ति का एकाकार रूप मां दुर्गा हैं।

 शास्त्रों में भगवती दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती, परब्रह्म परमेश्वरी कहा गया है। दुर्गा अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामयी, मोक्षदा   तथा कल्याणकारिणी हैं। शास्त्रीय मान्यता है कि शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का दुर्गा देवी विनाश करतीं हैं।



वेदों, उपनिषदों और पुराणों के अनुसार  समग्र ईश्वरीय तत्त्वों की एकात्मकता का अपर नाम आद्या शक्ति है। ब्राह्मी, माहेश्वरी, एन्द्री, वारुणी, वैष्णवी आदि देवी दुर्गा ही हैं। 

सृजन, पालन और लय इनके गोद में खेलते हैं। सकारात्मक ऊर्जा की स्रोत स्वरूपा भगवती दुर्गा सौम्य और उग्र उभयरुपा हैं। सदियों से भारतीय जनमानस की देवी विश्व कल्याण करें, यही हमारी प्रार्थना है।


*हर वर्ष होती है चार नवरात्रि*


देवी भागवत के अनुसार प्रत्येक वर्ष चार नवरात्रि होती हैं जिसमें भगवती दुर्गा की आराधना का विशेष महत्त्व है।

 मुख्य रूप से दो नवरात्रि के बारे में प्रायः सभी जानते हैं वासन्तीय नवरात्रि ( चैत्र मास में ) और शारदीय नवरात्रि जो शरद् ऋतु के आश्विन् मास के शुक्ल पक्ष में होती है।

इन दोनों नवरात्रि में माँ दुर्गा के नव रूपों में पूजा की जाती है।

इसके अतिरिक्त दो नवरात्रि और होती है, जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।

वर्षा ऋतु में आषाढ मास के शुक्ल पक्ष मे और शिशिर ऋतु में माघ मास के शुक्ल पक्ष में होती है। गुप्त नवरात्रि में मुख्य रूप से दस महाविद्याओं की पूजा होती है। पूजा की विधि सभी नवरात्रि में समान होती है।

अश्विन् शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से नवमी तक की नवरात्रि का विशेष महत्त्व होता है। इन नौ दिनों में मद्यमान, माँस-भक्षण आदि वर्जित माना गया है। सात्विक भावना से इन नौ दिनों में पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। पवित्र, संयमित तथा उपवास में रहकर इन नौ दिनों में की गई हर तरह की साधनाएँ और मनकामनाएँ पूर्ण होती है। अपवित्रता से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं।

भारतीय सनातन संस्कृति में प्रत्येक तीन माह में नवरात्रि के उपवास, संयम और व्रत आदि शारीरिक अनुशासन के निमित्त कहे गए हैं। 

 नवरात्रि के समय ऋतु परिवर्तन होता है। मौसम परिवर्तन का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। प्राचीन काल में

 ऋषि महर्षि इस परिवर्तन को भली भांति समझते थे और वह नौ दिनों तक व्रत करते थे ताकि मौसम का उनके शरीर पर कम प्रभाव पड़े। इसलिए शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए नवरात्रि में उपवास किया जाता है और पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही नवरात्रि के संयम से व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है। साथ ही व्रत रखकर अपने शरीर को कई तरह की व्याधियों से भी बचाया जा सकता है। आयुर्वेद में भी उपवास के कई लाभ वर्णित हैं। इसके अनुसार, व्रत रखने से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।


*भगवती दुर्गा के सम्मुख दास भाव से करनी चाहिए क्षमा प्रार्थना*


अपने प्रति दिन के क्रियाकलापों में मानव गलतियां करते रहता है। गलतियों के सुधार के लिए उसे प्रयास करते रहना चाहिए। मानव जीवन में जाने अनजाने गलतियां होना स्वाभाविक है। उन गलतियों के प्रति माता रानी के सम्मुख दास भाव से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। भारतीय संस्कृति में क्षमा का महत्त्व वर्णित है। माता रानी अति कृपालु हैं। वह जगज्जननी है। पुत्रों के अपराध को सहन कर उन्हें सुधरने का अवसर देती हैं। नवरात्रि में भक्त को चाहिए कि वह ज्ञात अज्ञात अपराधों के प्रति प्रतिदिन क्षमा प्रार्थना करे। संक्षेप में प्रार्थना के दो मंत्र अवश्य माता के सम्मुख शुद्ध रूप से बोलना चाहिए।

अपराधसहस्राणि क्रियन्ते ऽहर्निशं मया।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी।।


मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।

एवं ज्ञात्वा महादेवि ! यथायोग्यं तथा कुरु।।


अर्थात् - हे परमेश्वरी! मेरे द्वारा दिन रात हजारों अपराध होते रहते हैं। 'यह मेरा दास है' - यह समझ कर मेरे उन अपराधों को आप कृपा पूर्वक क्षमा कीजिए।


हे महादेवि! मेरे समान कोई पातकी नहीं है और आपके समान दूसरी कोई पापहारिणी नहीं है, ऐसा जानकर जो उचित जान पड़े, वही कीजिए।

भारतीय संस्कृति में अपराध बोध होना ही अपराध से मुक्ति का मार्ग खोलता है। जीवन सम्यक् ढंग से चलता रहे, माता के चरणों में यही प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि पुत्र कुपुत्र भले हो जाए माता कभी कुमाता नहीं होती।


*या देवी सर्वभूतेषु....*


शारदीय नवरात्रि में प्रायः हर मंदिरों, धर्म स्थानों, पांडालों में अत्यंत कर्ण प्रिय मंत्र सुनाई पड़ता है जो भक्ति भावना को उत्प्रेरित करता है। इन मंत्रों में एक काफी प्रचलित है - *या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*

 अर्थात् जो देवी समस्त जीवों में शक्ति रुप से स्थित है, उस देवी को नमस्कार है , नमस्कार है, नमस्कार है।

यह मंत्र देवी सूक्त का है। मार्कण्डेय पुराण में नारी शक्ति को मानसिक , आत्मिक, यौगिक आदि विभिन्न शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। देवी सूक्त के अनुसार मूलतः इक्कीस शक्तियों का निवास संसार के समस्त जीवों में है। इन मंत्रों में इन्हीं नारी शक्तियों को बार-बार नमस्कार कर कृतज्ञता प्रकट किया जाता है। ये शक्तियां हैं - विष्णु माया, चेतना, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षान्ति, जाति, लज्जा, शान्ति, श्रद्धा, कान्ति, लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, मातृ, भ्रान्ति और व्याप्ति।

 भारतीय सनातन धर्म और दर्शन में सृष्टि रचना में माया को विष्णु की ही शक्ति स्वीकार किया गया है। भगवती दुर्गा ही माया शक्ति रूपिणी है। पुराणों में मां दुर्गा को विष्णुमाया नाम से जाना जाता है। विष्णुमाया प्रत्येक प्राणी में मोह शक्ति के रूप में विद्यमान रहती है। इसी प्रकार भ्रान्ति शक्ति कर्मेंद्रियों, ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन की अधिष्ठात्री शक्ति है, जो समस्त जीवों में ईश्वरीय वरदान के रूप में उपस्थित है। 

देवी सूक्त में इन्हीं शक्तियों को नमन किया गया है।



*आततायी दुराचारी पापियों का नाश हर काल में करती हैं मां दुर्गा*


भगवती दुर्गा सनातनी देवी हैं। धर्म की रक्षा व पापियों को दण्ड देने के विविध रूपों में प्रकट होती हैं। 

 महिषासुर नामक राक्षस को मार कर देवताओं को इससे मुक्ति दिलाई और महिषासुरमर्दिनी कहलायी। महामाया माँ जगदंबिका ने देवताओं को वरदान दिया था कि वो भीषण अनिष्टप्रद समय मे प्रकट होकर दैत्यों का नाश करेगी। माता नित्य होती हुई भी बार-बार प्रकट होती है। अपनी लीला का विस्तार करने के कारण सभी देवी देवताओं के तेज से प्रकट होकर दुष्ट महिषासुर का अंत किया । इसके बाद भी कई और दानव पृथ्वी पर उत्पन्न हुए, जैसे - मधु कैटभ, चण्ड - मुण्ड, धूम्रलोचन, रक्तबीज , शुंभ-निशुंभ आदि। इन सभी का वध करने के लिए माँ ने देवी का रूप धारण किया। द्वापर युग में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई। वसुदेव जी ने कृष्ण को गोकुल में रखकर इन्हें अपने साथ लेकर मथुरा आ गये। पापी कंस ने जब इस बालरुपा देवी को मारना चाहा तब दैवी रुप से आकाश में उड़ते हुए हिमालय पर्वत पर निवास किया। वहां दुष्टों का संहार किया इसलिए इनको निशुम्भशुम्भहननी भी कहा जाता है। माता ने अपनी भृकुटी से काली देवी को उत्पन्न किया। जिसने चंड मुंड का वध किया जिसके कारण चामुंडा के नाम से उन्हें जाना जाने लगा । इन सबके बाद हिरण्याक्ष वंश में रुरू का एक पुत्र हुआ जिसका नाम था दुर्गमासुर जिस के पापों से पृथ्वी पर अकाल पड़ गया। तब सभी देवता मिलकर हिमालय पर्वत की शिवालिक पहाड़ियों में आए और मां जगदंबा की घोर तपस्या की। माता ने प्रसन्न होकर एक अद्भुत रूप धारण किया और सौं नेत्रों से जगत को देखा जिससे माता का शताक्षी नाम प्रसिद्ध हुआ। इन्हीं शताक्षी देवी ने अपने शरीर से शाक और सब्जियों को उत्पन्न किया और सभी प्राणियों का पालन- पोषण किया। तभी से इनका नाम शाकम्भरी देवी प्रसिद्ध हुआ। दुर्गमासुर द्वारा चुराए गए चारों वेद वापस लेने के लिए देवी ने घोर संग्राम किया और दुर्गम दैत्य का वध कर दिया जिनके कारण शाकम्भरी देवी दुर्गा देवी के नाम से भी प्रसिद्ध हो गई। इसके बाद हिमालय पर्वत पर तपस्वियों की रक्षा करने के लिए माँ ने एक भयानक रूप धारण किया और भीमा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। वैप्रचित्त नामक दैत्य का संहार कर रक्तदंतिका कहलाई। जब अरूणासुर ने तीनों लोकों को आतंकित किया तब माता ने असंख्य भ्रमरों का रूप धारण कर उस दैत्य का वध किया। तब इस रूप में देवी को भ्रामरी देवी कहा जाने लगा।

माता रानी इस धरती पर हमेशा पापियों का संहार किया करती है। रोग, शोक और दु:ख से भक्तों को मुक्त करती हैं। मां दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। देवी की अराधना सदैव कल्याणकारी है।




*अखिल विश्व की शक्ति का केंद्र शक्तिपीठ*


सनातन संस्कृति में सत्यं शिवम् सुन्दरम् का शाश्वत समन्वय है। इसके वैष्णव, शैव और शाक्त सम्प्रदाय अत्यन्त प्राचीन व सर्वथा प्रासंगिक है। तीनों सम्प्रदायों में शाक्त सम्प्रदाय प्रकृति रूपा है। प्रकृति अर्थात् नारी शक्ति। *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:* जहां नारी शक्ति की पूजा होती है वहां देवत्व का वास होता है। शान्ति व समृद्धि रहती है।  

अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का उपदेश किया गया है। श्री राम ने रावण विजय से पूर्व शक्ति की अराधना की थी। पांडवों ने भगवती की अराधना कर कौरवों पर विजय प्राप्ति का वरदान पाया था। प्रजापति दक्ष की कन्या सती और पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा साक्षात् शक्ति हैं। नवरात्रि में शक्ति की पूजा होती है। अष्ट मातृकाएं, नव दुर्गा व दश विद्याएं सभी शक्ति स्वरूपा हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार 51 शक्तिपीठ जागृत शक्तियां हैं। नवरात्रि में इन शक्तिपीठों का दर्शन मात्र मनोवांछित फल प्रदान करता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 51 शक्ति के रूप में जिनका नाम मिलता है वे हैं - भुवनेशी, उमा, महिषमर्दिनी, श्रीसुन्दरी, विशालाक्षी, विश्वेशी, नारायणी, वाराही, सिद्धिदा, अवन्ती, फुल्लरा, भ्रामरी, महामाया, नन्दिनी, महालक्ष्मी, कालिका, महादेवी, कुमारी, चन्द्रभागा, त्रिपुरमालिनी, शिवानी, जयदुर्गा, विमला, शर्वाणी, बहुला, मंगलचण्डिका, गायत्री, ललिता, रुक्मिणी, देवगर्भा, काली, शोणाक्षी, कामाख्या, जयन्ती, सर्वानन्दकरी, भ्रामरी, त्रिपुरसुंदरी, कपालिनी, सावित्री, भूतधात्री, अम्बिका, भीमरुपा, दाक्षायणी, इन्द्राक्षी, गण्डकी, महामाया, कोट्टरी , सुनन्दा, अपर्णा, भवानी और यशोरेश्वरी। ये सभी शक्ति माता दुर्गा ही हैं। इन शक्तियों का स्थान शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत और पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में ये सभी शक्तिपीठ अवस्थित है। 

नवरात्रि में इन शक्तिपीठों में लाखों श्रद्धालु दर्शन व पूजन के लिए जाते रहते हैं। 

माता रानी के प्रति आस्था और समर्पण त्रिविध कष्टों को दूर करता है।



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