शारदीय नवरात्रि का है विशेष महत्त्व




देवी भागवत के अनुसार  प्रत्येक वर्ष चार नवरात्रि होती हैं जिसमें भगवती दुर्गा की आराधना का विशेष महत्त्व है।

 मुख्य रूप से दो नवरात्रि के बारे में प्रायः सभी जानते हैं वासन्तीय नवरात्रि ( चैत्र मास में ) और शारदीय नवरात्रि जो शरद् ऋतु के आश्विन् मास के शुक्ल पक्ष में होती है।

इन दोनों नवरात्रि में माँ दुर्गा के नव रूपों में पूजा की जाती है।

इसके अतिरिक्त दो नवरात्रि और होती है, जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।

वर्षा ऋतु में आषाढ मास के शुक्ल पक्ष मे और  शिशिर ऋतु में माघ मास के शुक्ल पक्ष में होती है।नवरात्रि में मुख्य रूप से दस महाविद्याओं की पूजा होती है। पूजा की विधि सभी नवरात्रि में समान होती है।

अश्विन् शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से नवमी तक की नवरात्रि का विशेष महत्त्व होता है। इन नौ दिनों में मद्यमान, माँस-भक्षण आदि वर्जित माना गया है। सात्विक भावना से इन नौ दिनों में पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। पवित्र और उपवास में रहकर इन नौ दिनों में की गई हर तरह की साधनाएँ और मनकामनाएँ पूर्ण होती है। अपवित्रता से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं।

भारतीय सनातन संस्कृति में प्रत्येक तीन माह में नवरात्रि के उपवास, संयम और व्रत आदि शारीरिक अनुशासन के निमित्त कहे गए हैं। 

 नवरात्रि के समय ऋतु परिवर्तन होता है। मौसम बदलने का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। प्राचीन काल में

 ऋषि मुनि इस परिवर्तन को भली भांति समझते थे और वह नौ दिनों तक व्रत करते थे ताकि मौसम का उनके शरीर पर कम प्रभाव पड़े। इसलिए शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए नवरात्रि में उपवास किया जाता है और पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही नवरात्रि के संयम से व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है। साथ ही व्रत रखकर अपने शरीर को कई तरह की व्याधियों से भी बचाया जा सकता है। आयुर्वेद में भी उपवास के कई लाभ वर्णित हैं। इसके अनुसार, व्रत रखने से व्यक्ति  शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।



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