या देवी सर्वभूतेषु....




शारदीय नवरात्रि में प्रायः हर मंदिरों, धर्म स्थानों, पांडालों में अत्यंत कर्ण प्रिय मंत्र  सुनाई पड़ता है जो  भक्ति भावना को उत्प्रेरित करता है। इन मंत्रों में एक काफी प्रचलित है - *या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*

 अर्थात् जो देवी समस्त जीवों में शक्ति रुप से स्थित है, उस देवी को नमस्कार है , नमस्कार है, नमस्कार है।

यह मंत्र देवी सूक्त का है। मार्कण्डेय पुराण में नारी शक्ति को मानसिक , आत्मिक, यौगिक  आदि विभिन्न शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। देवी सूक्त के अनुसार मूलतः इक्कीस शक्तियों का निवास संसार के समस्त जीवों में है। इन मंत्रों में इन्हीं नारी शक्तियों को बार-बार नमस्कार कर कृतज्ञता प्रकट किया जाता है। ये शक्तियां हैं - विष्णु माया, चेतना, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षान्ति, जाति, लज्जा, शान्ति, श्रद्धा, कान्ति, लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, मातृ, भ्रान्ति और व्याप्ति।



 भारतीय सनातन धर्म और दर्शन में सृष्टि रचना में माया को विष्णु की ही शक्ति स्वीकार किया गया है। भगवती दुर्गा ही माया शक्ति रूपिणी है। पुराणों में मां दुर्गा को विष्णुमाया नाम से जाना जाता है। विष्णुमाया प्रत्येक प्राणी में मोह शक्ति के रूप में विद्यमान रहती है। इसी प्रकार भ्रान्ति शक्ति कर्मेंद्रियों, ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन की अधिष्ठात्री शक्ति है, जो समस्त जीवों में ईश्वरीय वरदान के रूप में उपस्थित है। 

देवी सूक्त में इन्हीं शक्तियों को नमन किया गया है।

Comments

Popular posts from this blog

संस्कृत साहित्य में गद्य विकास की रूप रेखा

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

गीतिकाव्य मेघदूतम्