त्रिविध कष्टों को दूर करता है माता रानी के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना




सनातन संस्कृति में सत्यं शिवम् सुन्दरम् का शाश्वत समन्वय है। इसके वैष्णव, शैव और शाक्त सम्प्रदाय अत्यन्त प्राचीन व सर्वथा प्रासंगिक है। तीनों सम्प्रदायों में शाक्त सम्प्रदाय प्रकृति रूपा है। प्रकृति अर्थात् नारी शक्ति। *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:* जहां नारी शक्ति की पूजा होती है वहां देवत्व का वास होता है। शान्ति व समृद्धि रहती है।  

अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का उपदेश किया गया है। श्री राम ने रावण विजय से पूर्व शक्ति की अराधना की थी। पांडवों ने भगवती की अराधना कर कौरवों पर विजय प्राप्ति का वरदान पाया था। प्रजापति दक्ष की कन्या सती और पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा साक्षात् शक्ति हैं। नवरात्रि में शक्ति की पूजा होती है। अष्ट मातृकाएं, नव दुर्गा व दश विद्याएं सभी शक्ति स्वरूपा हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार 51 शक्तिपीठ जागृत शक्तियां हैं। नवरात्रि में इन शक्तिपीठों का दर्शन मात्र मनोवांछित फल प्रदान करता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 51 शक्ति के रूप में जिनका नाम मिलता है वे हैं - भुवनेशी, उमा, महिषमर्दिनी, श्रीसुन्दरी, विशालाक्षी, विश्वेशी, नारायणी, वाराही, सिद्धिदा, अवन्ती, फुल्लरा, भ्रामरी, महामाया, नन्दिनी, महालक्ष्मी, कालिका, महादेवी, कुमारी, चन्द्रभागा, त्रिपुरमालिनी, शिवानी, जयदुर्गा, विमला, शर्वाणी, बहुला, मंगलचण्डिका, गायत्री, ललिता, रुक्मिणी, देवगर्भा, काली, शोणाक्षी, कामाख्या, जयन्ती, सर्वानन्दकरी, भ्रामरी, त्रिपुरसुंदरी, कपालिनी, सावित्री, भूतधात्री, अम्बिका, भीमरुपा, दाक्षायणी, इन्द्राक्षी, गण्डकी, महामाया, कोट्टरी ,  सुनन्दा, अपर्णा, भवानी और यशोरेश्वरी। ये सभी शक्ति माता दुर्गा ही हैं। इन शक्तियों का स्थान शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत और पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में ये सभी शक्तिपीठ अवस्थित है। 

नवरात्रि में इन शक्तिपीठों में लाखों श्रद्धालु दर्शन व पूजन के लिए जाते रहते हैं। 

माता रानी के प्रति आस्था और समर्पण त्रिविध कष्टों को दूर करता है।



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