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Showing posts from September, 2021

ऋषि पंचमी भारत की अद्भुत परम्परा

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 भाद्रपद (भादो) शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को  ऋषि पंचमी के व्रत का विधान भारतीय प्राचीन ग्रंथों व पुराणों  में बताया गया है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस दिन ऋषियों का पूजन, वन्दन व स्मरण किया जाता है। ऋषि पंचमी कोई उत्सव नहीं है और न ही इस दिन किसी आराध्य देव की पूजा की जाती है, बल्कि इस दिन सप्त ऋषियों का स्मरण कर श्रद्धा के साथ उनका पूजन किया जाता है। हमारे शास्त्रों में कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वसिष्ठ ये सात ऋषि बताए गए हैं। इन सप्त ऋषियों के निमित्त उनका स्मरण करते हुए महिलाओं के द्वारा व्रत का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के रखने से महिलाएँ रजस्वला दोष से मुक्त हो जाती हैं। व्रत के साथ यदि व्रतधारी महिलाएं इस दिन गंगा स्नान भी कर लें तो उन्हें व्रत का फल कई गुणा ज्यादा मिल जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस व्रत को रखने से महिलाओं के आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक दु:खों का विनाश हो जाता है। इस व्रत को करने से उपासक द्वारा जाने अनजाने में किए गए सभी दोषों से उसको मुक्ति मिल जाती है।

गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रदर्शन वर्जित

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  भाद्रपद (भादो) शुक्ल पक्ष चतुर्थी अर्थात्  गणेश चतुर्थी । आज के दिन भगवान गणेश की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की जाती है। गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक दश दिनों के गणेश महोत्सव की शुरुआत  आज से ही की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश की कृपा से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। भगवान गणेश प्रथम पूजनीय देव हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी पर रात्रि में चंद्र देव के दर्शन नहीं करने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा का दर्शन करने से झूठा कलंक अथवा आक्षेप लगने की संभावना होती है। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करना अपशगुन माना जाता है।  गलती से अगर चंद्रमा के दर्शन हो जाएँ तो उन्हें प्रणाम कर लें और घर आकर के मिष्ठान अथवा फल फूल उनके निमित्त उनको समक्ष दिखा कर दान कर देना चाहिये । गणेश जी के किसी मंत्र का जाप करना  या गणेश स्तोत्र  का पाठ करना चाहिए । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार  भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को शाप दे दिया था। चन्द्रमा ने परिहास में उपहास  कर दिया था लम्बोदर गणेश जी का । पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अपने जन्म तिथि पर गणे

प्रकृति की पूजा है चौरचन पर्व

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भादो महीना के शुक्ल पक्ष चतुर्थी  को जहाँ गणेश चतुर्थी का पर्व धूम धाम से मनाया जाता है वहीं मिथिलांचल में आज की तिथि को चौरचन पर्व के रूप में मनाने की काफी पुरानी परंपरा है। मिथिला में चौरचन का त्योहार पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। चौरचन को चौठचंद्र भी बोलते हैं। अपभ्रंश भाषा में चोरचण्डा  इसे ही कहते हैं ।मिथिला में मनाया जाने वाला चौठचंद्र ऐसा त्योहार जिसमें चांद की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। मिथिला के अधिकांश त्योहारों का नाता प्रकृति से जुड़ा होता है। ये व्रत पुत्र की दीर्घायु के लिए किया जाता है। झारखण्ड के  गोड्डा, दुमका, देवघर सहित न केवल संताल परगना में अपितु राँची, बोकारो, धनबाद, जमशेदपुर  आदि शहरों में भी बड़ी संख्या में मिथिलावासी रहते हैं। ऐसे में ये पर्व यहां भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। प्रायः यह व्रत महिलाएं ही करती हैं ।  चौरचन के दिन मिथिला की महिलाएं पूरे दिन उपवास करती हैं। इसके साथ ही शाम को भगवान गणेश की पूजा के साथ चांद की विधि विधान से पूजा कर अपना व्रत तोड़ती हैं। पूजा स्थल पर पिठार (पीसे चावल से) से अरिपन बनाया जाता है। फिर उसी अरिपन पर बांस से बने डा