जिन्दगी की तलाश में मौत के करीब आए प्रवासी झारखण्डियों को रोजगार उपलब्ध कराए राज्य सरकार



धनंजय कुमार 
दुमका 

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हर दिन नई खबर । विचलित करने वाली सूचना । हैरान परेशान करने वाले मामले ।कोरोना संकट में जारी लाॅक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक दास्ताँ ।

झारखण्ड सरकार को अब भी शायद यह नहीं मालूम कि कितने झारखण्डी मजदूर देश विदेश के कोने-कोने में फँसे पड़े हैं । घर लौटने की छटपटाहट, बेचैनी और घोर निराशा में  मजदूर हादसे में जान गँवा रहे हैं । औरैया की घटना सिर्फ़ एक बानगी भर है । ऐसी बात हर वक्त हो रही है । ज़ुल्म, जिल्लत, दर्द और भूख के नंगे नाच से इन मजदूरों को हर पल सामना करना पड़ रहा है । समय ने इन्हें  निरीह और लाचार बना दिया है ।

निश्चय ही धीरे-धीरे  कोरोना संकट टल जाएगा। पूरा विश्वास है जिन्दगी पटरी पर आएगी लेकिन अब सरकार को सबक लेनी चाहिए । जिस उपेक्षा, पिछड़ेपन और अनदेखी के मुद्दे पर बीस वर्ष पूर्व बिहार से अलग होकर झारखण्ड राज्य का गठन हुआ स्थिति अभी भी वैसी ही बनी हुई है। इन प्रवासी श्रमिकों की स्थिति देखने के बाद तो ऐसा ही लगता है कि सामान्य नागरिकों को भगवान् भरोसे छोड़ दिया गया है । विगत  बीस वर्षों में इन श्रमजीवियों के लिए ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया जिससे इनका पलायन रुक सके। चन्द रोटी के टुकड़ों के लिए दर दर की ठोकर खा रहे झारखण्ड के युवा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान,  पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख ही नहीं तमिलनाडु, कर्णाटक, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, बंगाल सहित पूर्वोत्तर भारत में दिन रात संघर्ष कर रहे हैं । संकट की इस घड़ी में जब इन्होंने घर की राह पकड़नी चाही तो रूह कँपाने वाली  दारूण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है ।
अब समय आ गया है । सरकार को सचेत हो जाना चाहिए । अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार साठ से सत्तर लाख प्रवासी झारखण्डी मजदूरदेश विदेश के कोने-कोने से झारखण्ड लौट रहे हैं । सरकार का दायित्व है कि वह इन प्रवासी श्रमिकों को अब अपने राज्य में ही काम उपलब्ध कराए। सरकार इससे पल्ला झाड़ नहीं सकती। चुनावी राजनीति से दूर मानवता के लिए सरकार को काम करना चाहिए ।
झारखण्ड के श्रमजीवी परिश्रमी ही नहीं हुनरमंद भी है। अभी सरकार व जनप्रतिनिधियों से मदद की इनकी आकांक्षा है। आशा है सरकार इनकी आकांक्षाओं  पर खरा उतरने का प्रयास करेगी।
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