भारतीय परम्परा व संस्कृति का अद्भुत पावन पर्व वैशाखी पूर्णिमा

भारतीय परम्परा व संस्कृति का अद्भुत पावन पर्व वैशाखी पूर्णिमा

प्रस्तुति: डॉ धनंजय कुमार मिश्र
अध्यक्ष संस्कृत विभाग सह अभिषद् सदस्य सि.का.मु.विश्वविद्यालय,दुमका (झारखण्ड)
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वैशाख मास की पूर्णिमा को वैशाखी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार वैशाख पूर्णिमा सभी में श्रेष्ठ मानी गई है। इसे बुद्ध पूर्णिमा (बुद्ध जयंती) के नाम से भी जाना जाता है। बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना गया है।
वैशाख पूर्णिमा पर व्रत और पुण्य कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।  वैशाखी पूर्णिमा व्रत की विधि अन्य पूर्णिमा व्रत के सामान ही है लेकिन इस दिन किये जाने वाले कुछ धार्मिक विधान  इस प्रकार हैं। यथा -वैशाख पूर्णिमा के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, जलाशय, कुआं या बावड़ी में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन धर्मराज के निमित्त जल से भरा कलश और पकवान देने से गोदान के समान फल मिलता है। जरुरतमंद व्यक्तियों और ब्राह्मणों को शक्कर के साथ तिल देने से पापों का क्षय होता है। इस दिन तिल के तेल के दीपक जलाना चाहिए और तिलों से तर्पण विशेष रूप से करना चाहिए । इस दिन व्रत के दौरान एक समय भोजन करना चाहिए ।
वैशाख पूर्णिमा पर धर्मराज की पूजा करने का विधान है, इसलिए इस व्रत के प्रभाव से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के बचपन के साथी सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे थे, तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें सत्य विनायक पूर्णिमा व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता दूर हुई।
वैशाखी पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है । सर्व विदित है कि 563ई.पू. बैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध का जन्म लुंबिनी, शाक्य राज्य (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में, कुशीनगर में उन्होंने  निर्वाण प्राप्त किया था।
भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नहीं हुआ है। अपने मानवतावादी एवं विज्ञानवादी बौद्ध धम्म दर्शन से भगवान बुद्ध दुनिया के सबसे महान महापुरुष है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 180 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है ।
 बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात् सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है।यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां के विहारों में पूजा-अर्चना करने वे बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है।

भविष्य पुराण, आदित्य पुराण में वैशाखी पूर्णिमा को अत्यंत पवित्र एवं फलदायी माना गया है। इस दिन पिछले एक महीने से चला आ रहा वैशाख स्नान एवं विशेष धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ण आहूति की जाती है। मंदिरों में हवन-पूजन के बाद वैशाख महात्म्य कथा का परायण किया जाता है।

इस दिन प्रातः नदियों एवं पवित्र सरोवरों में स्नान के बाद दान-पुण्य का विशेष महत्व कहा गया है। धर्मराज के निमित्त जल से भरा हुआ कलश, पकवान एवं मिष्ठान आज के दिन वितरित करना, गौदान के समान फल देने वाले बताए गए हैं।
वैशाखी पूर्णिमा के दिन शक्कर और तिल दान करने से अनजान में हुए पापों का भी क्षय हो जाता है।

पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी से भरा हुआ पात्र, तिल और शक्कर स्थापित कर पूजन करना चाहिए। यदि हो सके तो पूजन के समय तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

पितरों के निमित्त पवित्र नदियों में स्नान कर हाथ में तिल रखकर तर्पण करने से पितरों की तृप्त होते हैं एवं उनका आशीर्वाद मिलता है।

पुराणों के अनुसार वैशाख का यह पक्ष पूजा-उपासना के लिए विशेष महत्वपूर्ण कहा गया है।

वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की साधना-आराधना का बहुत ज्यादा महत्व है। इस पावन तिथि पर पवित्र सरोवर या नदी में स्नान, दान, ध्यान, जप, व्रत और तर्पण आदि करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है। इस दिन पितरों के निमित्त किए गए कार्यों से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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