गोस्वामी तुलसीदास आज भी प्रासंगिक

(जयन्ती विशेष)
*गोस्वामी तुलसीदास आज भी प्रासंगिक*

डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र
अध्यक्ष स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग
एस0 पी0 काॅलेज, दुमका
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श्रावण शुक्ल सप्तमी। ऐतिहासिक दिन। आज ही के दिन युगप्रवर्तक अनन्य रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास का आविर्भाव इस धराधाम पर हुआ। साहित्य जगत् में  रामकाव्य धारा के प्रवर्तक और सगुणोपासक शाखा से सम्बन्धित कवि के रूप में गोस्वामी जी का नाम बड़े ही श्रद्धा और आदर से लिया जाता है परन्तु जनमानस में तो इनका एक व्यापक और विस्तृत स्वरूप है। संस्कृत के आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने अपने महान् ग्रन्थ रामायण में जिस नर राम की कथा का वर्णन किया है, तुलसी ने उसी नर राम की कथा को नारायण राम की कथा में परिवर्तित कर समाज को एक नई दिशा प्रदान की है। भारतवर्ष का तात्कालीन समाज धर्म से च्युत होने लगा था। विधर्मियों का बोलबाला सर्वत्र फैल रहा था। उस समय गोस्वामीजी ने  न केवल रामचरितमानस की रचना की अपितु उसे जन जन तक पहुँचा कर अपूर्व प्रतिभा का परिचय दिया।  तुलसी ने ही सर्वप्रथम राम-राज की अवधारणा इस संसार को दी। जो राज्य अपने में पूर्ण है वही रामराज्य है। तुलसी के ही शब्दों में - 
‘‘दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज नहिं काहुहिं ब्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीति। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।’’

रामराज की अवधारणा में शक्ति है, विश्वास है। परन्तु तुलसीदास ने जिस रामराज का सपना देखा था वह आज भी अधूरा है। भारतवर्ष में इस अवधारणा को फलीभूत करने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है, जो तुलसी की प्रासंगिता को सिद्ध करता है। आदर्श राजा, आदर्श प्रजा, आदर्श मित्र, आदर्श भाई, आदर्श पत्नी, आदर्श सेवक का जो स्वरूप तुलसी ने गढ़ा है वह अद्भुत है, अनुकरणीय है। धर्म का अर्थ कर्तव्य होता है। तुलसी ने समाज को उसके कर्तव्य का बोध कराया है। 
यहाँ एक बात कहना समीचीन समझता हूँ। झारखण्ड के राँची स्थित ईसाई मिशनरी के लिए कार्य करने तथा अपने पंथ प्रचार के लिए विदेश से आए फादर कामिल बुल्के तुलसी के रामचरितमानस से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आजीवन हिन्दी साहित्य और तुलसी पर काम किया। तुलसी सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम की भक्ति एवं आस्था में अटूट विश्वास रखने वाले तुलसी आस्थावान एवं आस्तिक कवि व भक्त थे।  वे अपने युग के प्रति अत्यन्त सचेत थे। आनेवाली पीढी के मार्गदर्शक थे। उन्होंने वही लिखा जो अनुभव किया। भक्ति भावना, समन्वयता, भातृत्व, राजधर्म, युगधर्म, युगबोध का सुन्दर स्वरूप गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं में दृष्टिगोचर होता है, जो सर्वथा उपादेय है। 
तुलसी जयन्ती के अवसर पर युगप्रर्वतक महामानव को हार्दिक नमन।
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