द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग भगवान शिव के बारह अवतार

 भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग परमात्मा शम्भु के ही बारह अवतार हैं। इनका दर्शन और स्पर्श समस्त मनोरथों को पूर्ण करता है। भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करता है। भक्तिपूर्वक दर्शन एवं पूजन भोग-मोक्ष प्रदाता है। इनके माहात्म्य को पढ़ने-सुनने वाले भी पुण्य के भागी बनते हैं, ऐसा शिवपुराण में कहा गया है। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातः और संध्या काल में इन द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों के नामों का स्मरण करता है उसके समस्त पाप स्मरण मात्र से ही नष्ट हो जाते हैं।
   शिवपुराण प्रसिद्ध 18 पुराणों में प्रमुख और सुप्रसिद्ध पुराण है। इसकी गणना महापुराण में होती है। इसमें शिव के स्वरूप का ताŸवक विवेचन किया गया है। शिव की उपासना की पद्धति भी वर्णित है। अनेक रहस्यों का उद्घाटन इस महान् ग्रन्थ में हुआ है। शिव की उपासना सिद्धों, साधकों एवं सामान्य आस्तिक जनों सभी के लिए कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक एवं सर्वश्रेयस्कर है। देव-दानव, ऋषि-महर्षि, मुनि-योगी, सिद्ध-गन्धर्व हीं नहीं वल्कि बह्मा-विष्णु तक महादेव की उपासना करते हें। भगवान राम और श्रीकृष्ण तो इनके अनन्य उपासक कहे गए हैं।  शिवपुराण के ‘‘कोटिरूद्रसंहिता’’ में द्वादशज्योतिर्लिङ्गों का वर्णन विस्तार से हुआ है। इनके नाम का स्मरण एवं पाठ भी समस्त पापों को दूर करने वाला तथा सर्वसिद्धि फल प्राप्त कराने वाला है।
                        सौराष्ट में सोमनाथ,  श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में  महाकाल, ओंकार में परमेश्वर, हिमालय के शिखर पर केदार,  डाकिनी में  भीमशंकर,  वाराणसी में विश्वनाथ, गोदावरी के तट पर त्र्यम्बक, चिताभूमि देवघर में वैद्यनाथ, दारूकावन में नागेश, सेतुबन्ध में रामेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग बाबा भोलेनाथ के द्वादश अवतार स्वरूप हैं।
 ‘‘सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारे परमेश्वरम्।।
  केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम्।      वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
 वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।       सेतुबन्धे तु रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये।। ’’
                       प्रथम अवतार ‘‘श्रीसोमनाथ’’ का है। यह गुजरात प्रान्त में है। इनका पूजन रोगादि का नाश करने वाला बताया गया है।इनके दर्शन से पापों से मुक्ति मिलती है। द्वितीय अवतार ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीमल्लिकार्जुन’’ तमिलनाडु में है। इसे दक्षिण का कैलास भी कहते हैं। तृतीय अवतार ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीमहाकाल’’ मध्यप्रदेश प्रान्त में है। चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीओंकारेश्वर’’ और ‘‘श्रीअमलेश्वर’’ नाम के दो पृथक्-पृथक् लिंग हैं लेकिन इन दोनों को एक हीं ज्योतिर्लिंग का दो स्वरूप माना गया है। यह भी मध्यप्रदेश में है। पॉंचवॉं ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीकेदारनाथ’’ उŸाराखण्ड में अवस्थित है। षष्ठरूप ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीभीमशंकर’’ महाराष्ट्र में है। सप्तम ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीविश्वनाथ’’ उŸारप्रदेश के वाराणसी में अवस्थित है। अष्टम ज्योतिर्लिंग ‘श्रीत्र्यम्बकेश्वर’ गोदावरी तट पर महाराष्ट्र प्रान्त में है। नवम ज्योतिर्लिंग जगत् प्रसिद्ध बाबा ‘‘श्रीवैद्यनाथ’’ झारखण्ड के देवघर में स्थित हैं। दशम ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीनागेश’’ बड़ौदा के पास गुजरात प्रान्त में अवस्थित हैं। एकादश ज्योतिर्लिंग सेतुबन्ध ‘‘श्रीरामेश्वरम्’’ तमिलनाडु प्रान्त में तथा बारहवॉं ज्योतिर्लिंग ‘‘श्रीघुश्मेश्वर’’ या ‘‘श्रीघृष्णेश्वर’’आन्ध्रप्रदेश के शिववालय नामक स्थान पर अवस्थित हैं।
           इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से भी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा सम्पूर्ण अभीष्ट के दाता भगवान भोलेनाथ सारी मनोकामनाएॅं पूर्ण करते हैं। शिवपुराण के अनुसार इन ज्योतिर्लिंगों का नैवेद्य यत्नपूर्वक ग्रहण कर प्रसाद के रूप में खाने से पुरूष के सारे पाप उसीक्षण जलकर भस्म हो जाते हैं-
ग्राह्यमेषां च नैवेद्यं      भोजनीयं प्रयत्नतः।
तत्कर्तुः सर्वपापानि भस्मसाद्यान्ति वै क्षणात्।।


डॉ0 धनंजय कुमार मिश्र,
संस्कृत विभागाध्यक्ष,
संताल परगना महाविद्यालय दुमका

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