नटराज शिव ही हैं सम्पूर्ण सृष्टि के नियंता



सृष्टि का कण-कण शिवमय है । शिव साक्षात् जगद्पिता जगद्गुरु जगद्नियंता और प्रकृति के पर्यावरण के कल्याण कारक रूप के स्वामी हैं । प्रकृति जीवन दायिनी शक्ति रूपा शिवा है । शास्त्रों में  शिव  को  जगत् के कल्याण कारक रूप की मूर्ति कही गई है । शिव को छेड़ने पर शिव हमें शव बना देता है। 
शिव का  अनंत महात्म्य है। शिव का एक अत्यंत सुन्दर रुप है नटराज शिव । यह रूप ज्ञान,  विज्ञान, कला, साहित्य, संगीत का सुखद सुन्दर स्वरूप है। डमरू से हमारी वर्णमाला प्रकट होती है।चारों वाणी (परा, पश्यंती, मध्यमा, वैखरी) तथा 84 लाख योनियों के सर्जक शिव हैं। शिव के दूसरे हाथ में स्थित अग्नि मलिनता दूर करती है। तीसरा हाथ 'अभय मुद्रा' दर्शाती है। ऊपर उठा हाथ कहता है - ' मुक्ति की कामना हो तो माया मोह से दूर होकर ऊंचा उठो। 'प्रभामंडल' प्रकृति का प्रतीक है। नटराज का यह नृत्य विश्व की पांच महान् क्रियाओं का निर्देशक है - सृष्टि, स्थिति, प्रलय, तिरोभाव (अदृश्य, अंतर्हित) और अनुग्रह।

नटराज शिव  धर्म, शास्त्र और कला के अनूठे संगम हैं।   

     देवनागरी लिपि में ध्वनि का अंकन से भी यह रूप जुड़ा है। कहा गया है-

*नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।*
*उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्।।*

इस पद्य में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि नटराज शिव ही लेखन वर्ण व्यवस्था के जनक हैं। नृत्य के अवसान पर चौदह बार डमरू की अलग अलग ध्वनि से चौदह सूत्र ध्वनिविज्ञान, व्याकरण आदि में आज भी प्रयुक्त  शिवसूत्र हैं।

अ इ उण्। ऋ लृक्। ए ओङ्। ऐ औच्। ह य व रट्। लण्। ञ म ङ ण नम्। झ भञ्। घ ढ धष्। ज ब ग ड दश्। ख फ छ ठ थ च ट तव्।कपय्। श ष सर्। हल्।

इति माहेश्वरसूत्राणि।

नटराज शिव ही सम्पूर्ण लौकिक अलौकिक ज्ञान के मूल हैं ।
नटराज शिवजी का एक नाम है उस रूप में जिस में वह सबसे उत्तम नर्तक हैं। नटराज शिव का स्वरूप न सिर्फ उनके संपूर्ण काल एवं स्थान को ही दर्शाता है; अपितु यह भी बिना किसी संशय स्थापित करता है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहित है। नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात् कला) और राज (अर्थात् राजा।) इस स्वरूप में शिव कालाओं के आधार हैं। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है। शिव के तांडव के दो स्वरूप हैं। पहला उनके क्रोध का परिचायक, प्रलयकारी रौद्र तांडव तथा दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव। प्रायः)  लोग तांडव शब्द को शिव के क्रोध का पर्याय ही मानते हैं। रौद्र तांडव करने वाले शिव रुद्र कहे जाते हैं, आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार शिव के आनन्द तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता है। शिव का नटराज स्वरूप भी उनके अन्य स्वरूपों की ही भांति मनमोहक तथा उसकी अनेक व्याख्याएँ हैं।
नटराज प्रभु समस्त संसार पर अपनी कृपा बनाये रखें।



प्रस्तुति :  डॉ धनंजय कुमार मिश्र 
अभिषद् सदस्य सह अध्यक्ष स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग 
संताल परगना महाविद्यालय 
सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका (झारखण्ड)

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