भारत के लिए


मैं हूँ झारखण्ड,
भारत का एक समृद्ध राज्य।
समृद्धि मुझे विरासत में मिली,
प्रकृति से ही अभाज्य।।
आज भी मैं भारत का रूर हूँ,
वनों से आच्छादित।
किसी ने वनांचल कहा,
हुआ हूँ बिहार से विभाजित।।

मेरी कोई सीमा समुद्र को नही छूती,
पर हूँ रत्नगर्भा,
भोली-भाली जनजाति के संग,
मेरे आंगन में
सभी जाति धर्मो के लोग,
मिल-जुल कर रहते,
सदान-दिकु,
संताल पहाड़ियाँ
उरांव मुण्डा
लोहरा महली
हिन्दू-मुस्लिम
सिक्ख ईसाई,
भारत की अनेकता में एकता का मिसाल देते।।

होली खेलते,
सरहुल मनाते,
ईद की सेवइयाँ खाते,
बड़े दिन की ठंड में,
नव वर्ष मनाते।
गुरू पूर्णिमा में
राँची-बोकारो के गुरूद्वारे में
मत्था टेकते।।
धूम-धाम से मिलजुल कर मनाते दिसोम सोहराय।
पर मैं डरता हूँ कहीं किसी की नजर न लग जाय।।

मैं डरता हूँ,
राजनैतिक अस्थिरता से,
कूटनैतिक चाल से,
स्वार्थी तत्वों की
क्रूर-अनैतिक-अधर्मी कठिन जाल से,
लोगों को बाँटने और तोड़ने में माहिर,
बहुरूपिये की गाल से,
रौशनी के लिए नहीं,
घरों को जलाने के लिए,
उठने वाली मशाल से।।

मैंने दर्द झेला है,
झेल रहा हूँ, उग्रवाद का,
मैंने उन्माद देखा है,
रक्त-पिपासुओं के संवाद का,
मैने आहटें सुनी है,
पाँव की अलगाववाद का,
अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए,
गला घोंटते राष्ट्रवाद का।।

मुझे विश्वास है,
अपने आंगन में खेलते बच्चों पर,
वे भटकेंगे नहीं,
मुझे मजबूर न करेंगे
झुकाने को नजर।
उनका कार्य,
मेरे विकास के लिए होगा,
शिक्षा के लिए, उद्योगो के लिए,
दरवाजे खुलेंगे, सबके लिए।
पर्यटन बढ़ेगा, समृद्धि बढ़ेगी,
लोगों के लिए।
हम तरक्की करेंगे,
भारत के लिए,
सिर्फ भारत के लिए।।


- डा धनंजय कुमार मिश्र 
दुमका (झारखण्ड)

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