‘‘पर्यावरण समन्वय और सन्तुलन के अद्वितीय आदर्श शिव शंकर महादेव’’


                       
                                                                                                                   डॉ. धनंजय कुमार मिश्र *
                                                                                                 

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            प्रकृति और पर्यावरण मानव की चिर सहचरी के रूप में विख्यात है। पर्यावरण के मूलभूत तत्व क्षिति-जल-पावक-गगन-समीर के बिना मनुष्य की कल्पना असंभव है। संस्कृत साहित्य में पर्यावरण संरक्षण के लिए गहन चिन्तन किया गया है। अमर कलाकार दीपशिखा कालिदास ने अपने काव्यो में पर्यावरण प्रबन्धन की सुखद एवं मनोहारी चित्रण कर हमें संदेश दिया है कि हम प्रकृति को अपनी जीवन दायिनी शक्ति के रूप में समझे, दासी के रूप में नहीं। प्रकृति  अष्ट-रूपा है। उसके आठ रूप हमारे अस्तित्व को बरकरार रखते है। जलमयीमूत्र्ति, अग्निरूपामूत्र्ति, मानवप्रजातिरूपीमूत्र्ति, सूर्य-चन्द्रमयीमूत्र्ति, पृथ्वीरूपीमूत्र्ति, वायुरूपामूत्र्ति और आकाशरूपीमूत्र्ति - यही प्रकृति का, पर्यावरण का कल्याण कारक रूप है। इनका अनैतिक दोहन, अनुचित प्रबन्धन आपदाओं का जन्म देने वाली है। यह ‘शिव’ अर्थात् जगत् के कल्याण कारक रूप की अष्टमूत्र्ति कही गई है। ‘शिव’ को छेड़ने पर शिव हमें ‘शव’ बना देता है। इस शिव को अपने कल्याण रूप में ही प्रयोग करें। कालिदास के ही शब्दों में -

या सृष्टिः स्रष्टुराद्या,   वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री,
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुति विषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति          यया प्राणिनः प्राणवन्तः,
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु          वस्ताभिरष्टाभिरीशः।

       महाकवि कालिदास ने अपने विक्रमोर्वशीयम् त्रोटक के प्रारम्भ में अपने आराध्य देव और प्रकृति एवं पर्यावरण के सबसे बड़े देव देवाधिदेव महादेव शिव के ‘‘स्थाणु’’ रूप का स्मरण करते हुए अपने पर्यावरण चिन्तन के वैज्ञानिक स्वरूप का दर्शन कराया है -

‘‘वेदान्तेषु यमाहुरेकपुरूषं व्याप्य स्थितं रोदसी
                  यस्मिन्नीश्वर इत्यनन्यविषयः शब्दो यथार्थाक्षरः।
अन्तर्यश्च मुमुक्षुभिर्नियमितप्राणादिभिर्मृग्यते
         सः स्थाणुः स्थिर-भक्ति-योग-सुलभो निःश्रेयसायाऽस्तुवः।।’’ 

तैत्तिरीय उपनिषद् में भी कहा गया है - ‘‘स एको य एकः स रूद्रो स ईशानो य ईषानः स भगवान् महेश्वरः।’’

  मालविकाग्निमित्रम् नाटक के मंगलाचारण में कवि ने प्रकृति की अष्टमूत्र्ति शिव से सन्मार्ग पर चलने वाली बुद्धि की कामना करते हुए पाप की ओर ले जाने वाली बुद्धि को मिटा दंने की लालसा की है। शिव की अष्टमूत्र्तियाँ जल, अग्नि, होता, सूर्य, चन्द्रमा, आकाश, वायु और पृथिवी रूप हैं। कहा भी गया है -
‘‘जलं वह्निस्तथा यष्टा सूर्याचन्द्रमसो तथा।
आकाशं वायुरवनी मूर्तयोऽष्टौ पिनाकिनः।।’’

          कालिदास शैव हैं। वह शिवजी से हृदय के अन्धकार को दूर कर प्रकाश के मार्ग में ले जाने की प्रार्थना कर रहे हैं, परन्तु निपुण कवि की भाँति व्यंजना के माध्यम से अष्टमूर्ति शिव की उपासना कर रहे हैं जो पर्यावरण के मूल तत्त्व हैं। शिव ऐश्वर्यशाली हैं। ऐश्वर्य का अर्थ है अष्टसिद्धियों से युक्त। ये अष्टसिद्धियाँ हैं -  अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व तथा ईशत्व। भारतीय परम्परा में शिव अष्टसिद्धियों के स्वामी माने गये हैं। कहा भी गया है -
 ‘‘अणिमा महिमा चैव गरिमा लघिमा तथा।
 प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्टसिद्धयः।।’’ 
अणिमा सिद्धिः से योगी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकता है। लघिमा सिद्धि से योगी लघु, बहुत छोटा या हल्का बन सकता है। महिमा सिद्धि से योगी कठिन से कठिन कार्य कर सकता है। गरिमा सिद्धि से योगी गुरूत्व या भारीपन से युक्त हो जाता है। प्राप्तिः सिद्धि से योगी हर वांछित फल को पा सकता है। प्राकाम्य सिद्धि से योगी की कामना पूर्ण होती है। वशित्व सिद्धि से योगी सबको अपने वश में कर सकता है। और ईशत्व सिद्धि के प्रतिष्ठित हो जाने पर योगी ऐश्वर्य तथा ईश्वरत्व में भी स्वतः सिद्ध हो जाता है। शिव योगी  ही नहीं योगिराज हैं। अतः अष्टसिद्धियों से युक्त हैं। वास्तव में शिव साक्षात् ब्रह्म हैं। ब्रह्म से परे पर्यावरण नहीं है। कालिदास के ही शब्दों में -

‘‘एकैश्वर्ये स्थितोऽपि प्रणतबहुफले यः स्वयं कृत्तिवासाः।
कान्तासम्मिश्रदेहोऽप्यविषयमनसां यः पुरस्ताद् यतीनाम्।।
अष्टाभिर्यस्य कृत्स्नं जगदपि तनुभिर्बिभ्रतो नाभिमानः।
सन्मार्गलोकनाय व्यपजयतु स वस्तामसीं वृत्तिमीशः।।’’

           अर्थात् भक्तों को बहुत फल देने का ऐश्वर्य अपने पास होते हुए भी जो स्वयं हाथी की खाल ओढ़े रहते हैं, शरीर के साथ पत्नी को लगाए रहते हुए भी विषयों से उपरत मनों वाले योगियों में श्रेष्ठ हैं और अपने आठ रूपों से जगत् को धारण करते हुए भी जिन्हें अभिमान छू तक नहीं गया है - ऐसे महादेव जी पाप की ओर ले जाने वाली आप सामाजिकों, दर्शकों, पाठकों की बुद्धि को मिटा दें जिससे कि आप सन्मार्ग का अवलोकन कर सके।
  कालिदास पर्यावरण के प्रकृति के अनन्य उपासक हैं। वह पर्यावरण को शिव  अर्थात् कल्याण कारक मानते हैं। शिव से  मनसा, वाचा, कर्मणा पाप को दूर करते हुए हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की मंगलकामना कर अपनी सूक्ष्म पर्यावरणीय चिन्तन का परिचय दिया है।

     अपने आराध्यदेव शिव-शंकर-महादेव के समन्वय के चमत्कार को प्रस्तुत करने में कालिदास नहीं थकते। प्रदूषण का विष पीने के कारण कालिदास के आराध्य शिव और हमारे सर्वस्व भोलेनाथ महामृत्युंजय कहलाए। आकाश, वायु आदि उनकी अष्टमूर्तियाँ हैं ऐसा कहकर नास्तिकों का लताड़ा। समस्त वन्य पश्वादि के स्वामी हाने के कारण पशुपति कहलाए। वस्तुतः वे प्राणिमात्र के प्राणनाथ हैं अतः भूतनाथ और विश्वनाथ कहलाए। औषधियों के देवता चन्द्रमा को शिर पर बिठाने के कारण वैद्यनाथ हैं। प्रकृति एवं पर्यावरण अध्ययन के दारौन हमारी दृष्टि इस ओर इसलिए जाती है क्योंकि वे कालिदास के भी आराध्य हैं।

  कालिदास ने शिव को प्रायः अपने हर ग्रन्थ में  आरम्भ के मंगलश्लोक में व्यापक पर्यावरणीय देव के रूप में स्मरण किया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् का नान्दीपाठ तो प्रकृति संवेदना का जीवन्त और शाश्वत शिलालेख है। शिव का समन्वय रूप ध्यातव्य है - सिर पर जल (गंगा), तीसरी आँख में अग्नि, माथे पर अमृत (चन्द्रमा) और कण्ठ में हलाहल (विष)। महाकाल का यह सब एक साथ धारण करना क्या समन्वय और सन्तुलन का अद्वितीय आदर्श नहीं। अमृत-विष, आग-पानी जैसे सर्वथा विरोधी प्राकृतिक उपादानों में शिव ही तालमेल रख सकते हैं क्योंकि शिव ‘शिव’ (कल्याणकारी) हैं। उनके पारिवारिक वाहन प्रतीकों में सामंजस्य का दूसरा चमत्कार है। शिव के स्वयं का वाहन वृषभ, पत्नी पार्वती-गौरी का वाहन सिंह। ज्येष्ठ पुत्र का वाहन मयूर तो कनिष्ठ पुत्र का मूषक, और तो और स्वयं शिव के गले में नाग। चूहा, नाग, मोर वृषभ, सिंह एक साथ समन्वय के प्रतीक हैं।
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प्रस्तुति
                                                                                                  *  डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र,
                                                                                                   अध्यक्ष संस्कृत विभाग,
                                                                                                   एस0 पी0 काॅलेज दुमका

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