अर्धनारीश्वर शिव


भक्त के कारण भगवान शिव ने धारण किया अर्धनारीश्वर का कल्याणकारी रूप

भगवान की महिमा अपने भक्तों से ही है, भगवान अपने से ज्यादा अपने भक्तों का गुणगान करने से अत्यधिक प्रसन्न होते है. ऐसे ही एक परम भक्त जिनकी महिमा यद्यपि उतनी नही फैली जितनी होनी चाहिए क्योंकि उनकी भक्ति में थोड़ी सी कमी रह गई थी जिसकी बाद में उन्होंने भरपाई की.
बाबा भोले नाथ की आरती
“शीश गंग अर्धांग पार्वती
सदा विराजत कैलासी
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं
धरत धयान सुर सुख रासी ….”
से हम सभी परिचित हैं तथा सावन माह में तो शिवालय इस सुन्दर एवं कर्णप्रिय आरती से सदैव गुंजायमान रहता है.
आरती में प्रयुक्त नंदी को तो हम सभी जानते हैं कि यह बाबा के वाहन बसहा का नाम है पर भृंगी को सामान्यत: हम नहीं जान पाते |
शिव स्तुति में प्रयुक्त भृंगी   एक पौराणिक  ऋषि थे जो की शिव के परम भक्त थे. लेकिन भक्त कुछ ज्यादा ही कट्टर थे, इतना कि शिव की तो आराधना करते लेकिन  माता पार्वती को नहीं भजते थे.
उनकी भक्ति अद्भुत और अनोखी थी | भृंगी ऋषि पार्वती जी को हमेशा ही शिव से अलग समझते थे .सच तो यह था वह माता पार्वती को अपना आराध्य मानते ही नहीं थे . यह उनका घमंड या अहंकार न होकर मात्र शिव और केवल शिव के प्रति आसक्ति थी | उन्हें शिव के आलावा कुछ और दीखता ही नही था.
एक बार तो ऐसा हुआ की वह कैलास पर भगवान शिव की परिक्रमा करने गए लेकिन वह पार्वती की परिक्रमा नहीं करना चाहते थे|
इस पर माता पार्वती  को दुःख हुआ. माता ने सोचा कि यह कैसा भक्त है जो शिव और शिवा को भिन्न समझता है. सृष्टि के कण- कण में शिव-शिवा सदैव साथ साथ हैं. माता पार्वती ने भृंगी को प्रेम से समझाया – हे ऋषि ! सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में, प्रत्येककाल में   हम दोनों एक है तभी पूर्ण है. तुम हमें अलग करने की भूल मत करो. पर भृंगी की कट्टरता और अज्ञानता तो देखिये भृंगी ने माता पार्वती की बातों को अनसुना कर शिव की परिक्रमा लगाने बढे. लेकिन तब माँ पार्वती शिव से सट कर बैठ गई, मामले में और नया मोड़ आया भृंगी ने सर्प का रूप धरा और दोनों के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा देनी चाही.
तब शिव ने पार्वती का साथ दिया और संसार में अर्धनारीश्वर रूप धरा, तब भृंगी क्या करते पर गुस्से में आ के उन्होंने चूहे का रूप धरा और शिव और पार्वती को बीच से कुतरने लगे. अब माता पार्वती (शक्ति ) को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी को शाप दिया कि जो शरीर तुम्हें अपनी माँ से मिला है वो तुरत तुम्हारी देह छोड़ देगा.
तंत्र साधना के अनुसार मनुष्य को अपनी देह में हड्डियाँ और मांसपेशियाँ पिता की देन होती है जबकि खून और मांस माता की देन होती है| श्राप के तुरत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया. भृंगी निढ़ाल होकर जमीन पर गिर पड़े और हालत यह हो गई कि वह खड़े भी होने की स्थिति में नही थे, तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वती से अपनी भूल की क्षमा मांगी.
हालाँकि तब पार्वती ने अपना शाप वापस लेना चाहा पर अपराध बोध से भृंगी ने मना कर दिया, पर उन्हें खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक अन्य (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके.
इस प्रकार भक्त भृंगी के कारण ही भगवान का अर्धनारीश्वर स्वरूप अस्तित्व में आया|
भक्त ने अपनी अज्ञानता या हठ जो कहें भगवान के सुन्दर और सौम्य स्वरूप “अर्धनारीश्वर” से सम्पूर्ण संसार को परिचित कराकर समस्त जगत् पर उपकार ही किया
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प्रस्तुति:
डॉ. धनंजय कुमार मिश्र
अभिषद् सदस्य सह
अध्यक्ष स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग,एसपी कॉलेज, दुमका, सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय


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