दलितों के मसीहा डाॅ0 भीम राव अम्बेडकर


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श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय में भगवान ने अर्जुन से कहा -
‘‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!
                   अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्,
                    धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।।’’

तथा रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने भी कुछ इसी प्रकार कहा-
जब-जब होहिं धरम के हानि, बाढ़े असुर अधम अभिमानी।
तब-तब प्रभु धरि विविध शरीरा, हरहिं कृपानिधि सज्जनपीरा।।

              वस्तुतः धर्म मानवीय स्वभाव का अंग है, जो मनुष्यता की चेतना पैदा करता है। धर्म मनुष्य की दिनचर्या है, जिसके द्वारा वह परिवार, समाज, वर्ग, राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करता है। धर्म की यही स्वाभाविक गति सम्राट अशोक के ‘धम्म’ तथा बादशाह अकबर के ‘दीन-ए-इलाही’ में भी मिलता है। धर्म का अर्थ पूजा-पाठ, मन्दिर-मस्ज़िद, नमाज़-बन्दगी, यज्ञ-अनुष्ठान या जाति-पाति कतई नहीं है, जो भ्रमवश लोग मान बैठते हैं।
                         खैर उपर्युक्त वचनों में तुलसी और व्यास ने स्पष्ट कहा है कि जब-जब धर्म का ह्रास एवं अधर्म का उत्थान चरम पर होता है तब-तब कोई-न-कोई महापुरूष अवतरित होते हैं और धर्म की सम्यक् स्थापना करते हैं। समाज को नई दिशा देने के उद्देश्य की पूर्ति हेतु शायद 14 अप्रैल 1891 ई0 को महाराष्ट्र के महार परिवार में श्रीराम जी सूकपाल और श्रीमती भीमाबाई की सन्तान के रूप में बाबा साहेब डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर का आविर्भाव हुआ।
              जल की जिस धारा में प्रवाह की तीव्रता होगी, उद्वेग होगा, गति होगी, वह चट्टानों में भी अपना राह बना लेगी, वह धरती का सीना चीरकर भी बाहर निकल आएगी। असाधारण प्रतिभा भी ऐसी ही धारा होती है जिसे बहने से कोई रोक नहीं सकता -
‘‘वैराग्य छोड़ बाॅंहों की विभा संभालो।
चट्टानों की छाती से दूध निकालो।’’ 

ऐसी ही स्वाभाविक प्रतिभा के धनी बाबा साहेब अम्बेडकर विद्वान, विचारक, चिन्तक, राजनीतिज्ञ एवं विधिवेत्ता के रूप में हमारे मानस पटल पर अंकित हैं।
डाॅ0 अम्बेडकर को बाल्य काल में ही भेद-भाव और छूआ-छूत का गहरा आघात पहुँचा। बचपन में कोमल हृदय पर छाया असर बाद में विस्फोटक रूप सामने आया। चौदह वर्ष की उम्र में रमाबाई नामक बाला से 1905 में वैवाहिक सूत्र में बँधने के बाद भी यह असर कम न हुआ। समाज में फैले ऊँच-नीच के दुर्भाव से वे त्रस्त थे। ईश्वर ऐसे महापुरूषों की परीक्षा भी लेता है और उन्हें पास भी कर देता है। बड़ौदा के महाराज गायकवाड़ जैसे सद्पुरूष ने जौहरी की भाँति अम्बेडकर रूपी हीरे को परख लिया और आगे पढ़ाई के लिए मदद की। मुम्बई के एल्फिन्स्टन काॅलेज में अम्बेडकर पढ़ने लगे। सन् 1913 में अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम0ए0 पास की। 1916 में पी0एच0डी0 की डिग्री मिली। 1922 में दुबारा लन्दन विश्वविद्यालय से पी0एच0डी0 की। 1927 में ‘बहिष्कृत भारत ’ पाक्षिक समाचार-पत्र निकलना शुरू किया और कांग्रेस के बड़े नेताओं  नेहरू , पटेल आदि को आर्कषित किया। इनकी प्रतिभा के सभी कायल हुए। क्योंकि-
‘‘ जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति-सी छायी।
दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आयी।।’’

      आजादी के बाद अगस्त 1947 में डाॅ0 अम्बेडकर विधि मन्त्री बनाये गये। 21 अगस्त 1947 को भारत की संविधान-प्रारूप समिति के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। इन्हीं की अध्यक्षता मं ही भारत के लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी संविधान की संरचना हुई, जिसमें मानव के मौलिक अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा की गयी। 26 जनवरी 1950 को भारत का यही संविधान राष्ट्र को आत्मर्पित किया गया। सचमुच-
है फूल पालना सहज, मैं खार पालता हूँ।
                  जीवन जले चिता-सा अंगार पालता हूँ।
औरों को  काटने में,     है क्या बहादुरी,
                      मैं काटने स्वयं को तलवार पालता हूँ।
अधिकार के लिए ही कर्त्तव्य है  बना?
               कर्त्तव्य में रहे जो वह अधिकार पालता हूँ।।

            अम्बेडकर साहेब ने 1950 में ही अम्बेडकर-भवन का शिलान्यास दिल्ली में किया। अध्यक्ष पद पर रहते हुए ही  ‘हिन्दु कोड बिल’ लागू कराया, जिससे सामाजिक जीवन में सुधार हो सका।  महिलाओं को भी सम्पत्ति में हिस्सा दिलाने और तलाक की व्यवस्था भी इनकी ही देन है। 27 सितम्बर1951 को मन्त्रि-मण्डल से इस्तिफा देकर सत्ता से चिपके रहने वाले लोगों को सीख दी। 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म को अपना लिया शायद यह सोचते हुए कि-
‘‘मेरे दुःख में भरा विश्व सुख, क्यों न भरूँ फिर मैं हामी।
 बुद्धं शरणं, धम्मं शरणं        संघं शरणं गच्छामि।।’’

6 दिसम्बर 1956 को इनका देहावसान हो गया। कृतज्ञ राष्ट्र ने उनके जन्मशती वर्ष 1991 में उन्हें भारत-रत्न का गौरवमय सम्मान दिया। संविधान निर्माता, नेहरू मंत्री मंडल के सुयोग्य विधि मंत्री, दलितों के मसीहा, मानव धर्म के पुनर्प्रतिष्ठापक आधुनिक मनु डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर आज हमारे मध्य नहीं हैं किन्तु इनके द्वारा किये गये कार्य और उनका देश-प्रेम सदैव भारतवासी श्रद्धा से याद करते रहेंगे।
  

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डाॅ. धनंजय कुमार मिश्र
अध्यक्ष संस्कृत विभाग सह अभिषद् सदस्य सि.का.मु.विश्वविद्यालय दुमका झारखण्ड
814101




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