‘‘रोजगार के द्वार खोल रही संस्कृत ’’


                                                                                             प्रस्तुति - डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र*
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     संस्कृत भारत की विरासत है। अपनी विरासत को सुरक्षित रखने और सवंर्धित करने का दायित्व हर भारतीय का है। इसी उद्देश्य के तहत प्रत्येक वर्ष भारत में श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस मनाया जाता है। सन् 1969 से भारत सरकार के आदेशानुसार संस्कृत दिवस हर वर्ष मनाया जाता है। विगत अनेक वर्ष से संस्कृत सप्ताह का आयोजन हो रहा है। यह इस वर्ष 15 अगस्त से  मनाया जा रहा है। इसी अवसर पर थाईलैण्ड में अभी 16वाँ विश्व संस्कृत सम्मेलन हो रहा है। संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषा है। भारत सहित विश्व के 300 से अधिक विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। नासा का कहना है कि संस्कृत भाषा वैज्ञानिक भाषा है इसलिए कम्प्यूटर के लिए अत्यन्त उपयोगी है। संस्कृत में छिपा ज्ञानरत्न हमारे देश की सम्पत्ति है। आने वाली पीढी को उस ज्ञानरत्न से परिचित कराना हमारा दायित्व है। भाषा किसी समुदाय या जाति की जागीर नहीं होती इसलिए हर भारतीय की यह भाषा है। संस्कृतभाषा गंगा के समान पवित्र और कान्ता के समान उपदेशक है। यह सुखद है कि आज संस्कृत का पुनरभ्युदय हो रहा है और इसकी माँग  प्रबल हो रही है। संस्कृत भाषा की स्थिति में सुधार हो रहा है। राष्ट्र की इस अप्रमेय और अक्षय कोष का विराट् रूप धीरे-धीरे जनता के सामने आ रहा है। लोग इसके गौरव को फिर से पहचानने लगे हैं।

   संस्कृत के प्रति श्रद्धा एवं अभिरूचि की भावनाओं का उन्मेष हो रहा है। संस्कृत में कैरियर की संभावनाएँ असीम और अनन्त हैं। जागरूक छात्रों के लिए संस्कृत आज  भारत हीं नहीं विश्व में कामधेनु बनी हुई है। विकासशील विज्ञान एवं आधुनिक जीवन के विविध व्यवसाय, उद्योग, कलाकौशल के क्षेत्रों में अभीष्ट पारिभाषिक शब्दों के लिए भारतीय समस्त भाषाओं को संस्कृत से उपकृत होना पड़ता है। मूल्यशिक्षा, पर्यावरण-अध्ययन, भाषा-विज्ञान, व्याकरण, भारतीय साहित्य एवं संस्कृति का अध्ययन संस्कृत के बिना आकाशकुसुम सदृश है। शैक्षणिक संस्थाओं में संस्कृत में व्याख्याता, पी0जी0टी0, टी0जी0टी0 सम्पूर्ण भारत में रखे जाते हैं। साथ हीं विदेशों में स्थापित भारतीय विद्यालयों में भी संस्कृत शिक्षक रखे जाते हैं। भारतीय सेना में एक ‘धर्मशिक्षक’का पद है जिन्हें सभी कैन्टों में रखा जाता है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान एवं संस्कृत आयोग में कर्मचारियों की नियुक्ति में संस्कृत भाषा जानने वालों को वरीयता दी जाती है। अनुवादक के रूप में कार्य करने वालों की नियुक्ति में भी संस्कृत भाषा जानने वालों को स्थान मिलता है।
 वास्तुशास्त्र एवं आयुर्वेद में भी असीम संभावनाएँ हैं। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में भी संस्कृत समाचार वाचकों की नियुक्ति संस्कृत भाषा जानने वालों की हीं होती है।यू0जी0सी0 से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय आज संस्कृत भाषा के लिए स्थापित हैं।  संस्कृत के दो हजार छात्रों के लिए केन्द्र सरकार द्वारा संचालित संस्कृत विश्वविद्यालयों में हर वर्ष पूरे देश में बी0एड0 कराया जाता है। इसके लिए छात्रों को प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण  करनी पड़ती है। विशेष बात है कि इसमें सिर्फ संस्कृत के हीं छात्र बैठ सकते हैं और यहाँ अध्ययन शुल्क नगण्य है। साथ ही मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति  प्रदान की जाती है। संस्कृत के बारे में जानकारी का अभाव एवं अपनी धरोहर की उपेक्षा करने की आदत ने इसके प्रभाव को धुमिल करने की कुचेष्टा की है। परन्तु संस्कृत आज भी प्रासंगिक है। अच्छा मार्गदर्शन एवं सम्यक् ज्ञान से संस्कृत भाषा आज भी फलप्रदायी है। संस्कृत के साथ किसी विदेशी भाषा का ज्ञान विदेशों में भी रोजगाार के द्वार संस्कृत भाषियों के लिए खोलते हैं।
       ध्यातव्य है कि संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत भाषा के अतिरिक्त हिन्दी, बांगला, उड़िया, तमिल, मलयालम, गुजराती, तेलगु, कन्नड़, मराठी आदि भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त जर्मन, अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओं में इसलिए होती है क्योंकि अपनी मातृभाषा या सम्पर्कभाषा में हम अपने प्राचीन ग्रन्थों में छिपे रत्नों को जान सकें। परीक्षाओं में भी इन भाषाओं में लिखने की छूट होती है। यह समयानुकूल उचित है। अन्ततः कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा का अध्ययन किसी भी दृष्टि से अन्य विषयों या भाषाओं से पीछे नहीं है। यह रोजगाारपरक एवं जीवन जीने की कला को विकसित करने वाला विषय है।



*अध्यक्ष संस्कृतविभाग, संताल परगना महाविद्यालय, दुमका
  

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