आयुष्मान भारत योजना
प्रस्तावना
:- भारतवर्ष सदियों से न
केवल कृषि प्रधान
राष्ट्र रहा है,
अपितु यह ऋषि
प्रधान भी है।
ऋषि शब्द सारगर्भित
है। तŸव ज्ञान के द्रष्टा,
नवनोेन्मेषशालिनी प्रज्ञा से युक्त
मानव तथा सर्वार्थ
कल्याण की कामना
का मनसा, वाचा,
कर्मणा अपने
व्यवहार में परिलक्षित
करने वाले सर्वहितैषी को
हमारे देश में
ऋषि की संज्ञा
दी गई है।
भारतीयता का मूल
ही है -
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्।।
भारत की
आत्मा गाँवों में
बसती है। पंथनिरपेक्ष
हमारे देश का
संविधान हमारा मार्गदर्शक है।
संविधान निर्माताओं को यह
भान था कि
भारत में लोकतंत्र
की रक्षा और
लोक कल्याण हेतु
जन अधिकार की
स्थापना का अपना
अलग ही महŸव
है। भारतीय मनीषियों
व विचारकों ने
अपने चिन्तन के
आरम्भ से ही
हमेशा मनुष्य की
अस्मिता को केन्द्रीय
परिधि में रखते
हुए उसे महŸवपूर्ण स्थान दिया
है। यहाँ पर
मनुष्यता या मानव
धर्म को श्रेष्ठ
धर्म कहा गया
है - ‘‘न मानुषात्
परतरं किंचिदस्ति ’’ अर्थात् मनुष्य से
परे या उच्चतर
कोई दूसरा धर्म
नहीं है।
देवत्व
की
भावना
:- हमारे देश की
संस्कृति में परमात्म
तत्त्व के दर्शन
की प्रेरणा प्रकृति
से ही मिलती
है। इसका ही
परिणाम है कि
हम सूर्यचन्द्रादि को
सिर्फ खगोलीय पिण्ड
नहीं मानते और
न ही हिमालय
विन्ध्याचलादि को पाषाण
शिलाओं का समूह।
इनमें देवत्व की
प्रतिष्ठा के पीछे
जो रहस्य है
उसका विश्लेषण करने के
लिए उस दृष्टि
की आवश्यकता है
जो गंगा, यमुना,
सरस्वती, शतद्रु, कृष्णा, कावेरी
आदि महानदियों में
मातृत्व की भावना
रखता हो और
भारत भूमि को
श्रद्धा और भक्ति
से देखते हुए
‘‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’’ का
जय घोष करता
हो क्योंकि भारत
कोई भूमि का
टुकड़ा नहीं है,
यह एक जीता
जागता राष्ट्र-पुरूष
है। यह वन्दन
की धरती है,
अभिनन्दन की धरती
है। यह अर्पण
की भूमि है,
तर्पण की भूमि
है। इसकी नदी-नदी हमारे
लिए गंगा है
, इसका कंकड़-कंकड़
हमारे लिए शंकर।
इतना ही नहीं कूपों,
सरोवरों, वृक्षों, वनस्पतियों और
जीव-जन्तुओं में
देवत्व की भावना
फैलाने में भी
भारतीय संस्कृति का यही
उद्देश्य रहा है।
ये सब हमारी
धरती माँ के
सुन्दर श्रृंगार हैं और
यह प्रतिष्ठा ही
आने वाली पीढ़ी
को उपकृत कर
सकती है। भारतवर्ष
के नाम-निर्वचन
में ही द्रष्ट्व्य
है -
‘‘क्षीरोदधेरूत्तरं यद् हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
ज्ञेयं तद्भारतं वर्षं सर्वकर्मफलप्रदम्।।
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः।।’’
जनाधिकार की अवधारणा
:- जनाधिकार की अवधारणा
मानवता के इतिहास
से सम्बद्ध है।
इस अधिकार के
अन्तर्गत स्वास्थ्य का अधिकार
भी समाहित है।
भारतीय विचारधारा है कि
- इस धरा-धाम
पर मानव-प्रजाति
के उदय के
साथ-साथ रोग
भी उत्पन्न हुआ
और उसी के
साथ उसकी औषध
द्वारा चिकित्सा भी प्रारम्भ
हुई। भारतवर्ष में
स्वास्थ्य रक्षा की परम्परा
वैदिक युग से
प्रारम्भ होती है।
ऋग्वेद एवं यजुर्वेद
में रोगों का
तथा औषधों का
सिर्फ संकेत मिलता
है परन्तु अथर्ववेद
में शरीर-विज्ञान
के साथ-साथ
अनेक प्रकार के
रोगों को दूर
करने की चिकित्सा
का वर्णन बड़े
ही विस्तार तथा
विशदता के साथ
मिलता है।
जनकल्याण
के
लिए
प्राचीन
भारतीय
चिन्तन
:- मानव जीवन
को सुखमय बनाने
के लिए, स्वस्थ
शरीर की स्वास्थ्य-रक्षा के लिए
तथा रोगी शरीर
के रोगों के
निवारण के लिए
भारतीय महर्षियों ने अपनी
प्रतिभा, अनुभव तथा प्रयोगों
के बल पर
जिस शास्त्र को
उत्पन्न किया उसी
का नाम है
‘‘आयुर्वेद’’
और यही आयुर्वेद
अथर्ववेद का उपवेद
माना जाता है।
कुछ विद्वान् इसे
ऋग्वेद का भी
उपवेद मानते हैं
परन्तु यह निर्विवाद
तय है कि
आयुर्वेद की गणना
उपवेदों में होती
है अर्थात् यह
निश्चित रूप से
विश्व के प्राचीनतम
ज्ञान वेद के
निकट है, उसके
समीप है।
रोग
का
प्रशमन
(ब्न्त्।ज्प्टम्)
एवं
रोग
का
निरोध
(च्त्म्टम्छज्प्टम्)
:- आयुर्वेद
का प्रयोजन सर्वज्ञात
है तथापि स्पष्टता
के लिए उनका
जिक्र करना अनुकूल
है। आयुर्वेद के
मुख्यतः दो ही
प्रयोजन हैं - रोग का
प्रशमन (ब्न्त्।ज्प्टम्) एवं रोग
का निरोध (च्त्म्टम्छज्प्टम्)। सुश्रुत
संहिता में इन्हीं
दोनों प्रयोजनों को
इस प्रकार कहा
गया है - ‘व्याध्युपसृष्टानां
व्याधिपरिमोक्षः’
अर्थात् रोग से
युक्त व्यक्तियों का
रोग से छुटकारा
और ‘स्वस्थस्य स्वास्थ्य
रक्षणम्’
अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति के
स्वास्थ्य की रक्षा।
निश्चित रूप से
ये दोनों प्रयोजन
सिद्ध करने के
लिए काफी हैं
कि भारतवर्ष में
स्वास्थ्य का अधिकार
वैदिक काल से
चला आ रहा
है। वैदिक
कालीन चिकित्सा-व्यवस्था
पर दृष्टिपात करने
पर हम कह
सकते हैं कि
यह व्यवस्था अपने
समय की सर्वश्रेष्ठ
चिकित्सा-व्यवस्था थी। सम्पूर्ण
व्यवस्था आठ अंगों
में विभक्त थी।
आयुर्वेद के आठ
अंग चिकित्सा-शास्त्र
के अलग-अलग
आठ भाग हैं।
शरीर के व्याधियों
के कारण, उपचार
एवं औषधि के
साथ-साथ सुखमय
एवं दीर्घायु जीवन
के लिए ये
आठ अंग प्राचीन
काल से ही
अपनी महŸाा
का लोहा मनवाने
में सक्षम हैं।
‘स्वास्थ्य का
अधिकार’:-
वैदिक कालीन ‘स्वास्थ्य का
अधिकार’
सबके लिए था,
प्रत्येक नागरिक के लिए।
इसके लिए न
तो वर्ण भेद
था और न
ही लिंग भेद।
यह व्यवस्था अपने
आप में अनुकूल
थी। वैदिक काल
में चतुर्पुरूषार्थ प्राप्ति
के लिए दीर्घ
जीवन की आवश्यकता
थी। दीर्घ जीवन
तभी संभव है
जब व्यक्ति स्वस्थ
रहेगा। स्वास्थ्य प्राप्ति के
लिए ही आयुर्वेद
की प्रवृति है।
‘चरकसंहिता’
चिकित्सा जगत् का
अत्यन्त प्रामाणिक, प्रौढ़ और
महान् सैद्धान्तिक ग्रन्थ
है। इसका ‘स्वस्थवृŸा प्रकरण’
जीवनशैली, आहारचर्या, ऋतुचर्या, दिनचर्या,
रात्रिचर्या आदि का
सम्यक् परिज्ञान कराता है।
इसके अनुसार व्यक्ति
अनुसरण करे तो
वह सदा नीरोग
रह सकता है।
महर्षि चरक के
बारे में अनेक
प्रचलित धारणाएँ हैं। वे
घूम-धूम कर
मनुष्य को स्वस्थ
रहने के उपाय
का उपदेश करते
थे। महर्षि के
इस कृत्य को
देखकर कहा जाता
है कि वे
सच्चे अर्थ में
मानव धर्म को
सेवा, त्याग एवं
ज्ञान के रास्ते
पर ले जाने
वाले थे। एक
उक्ति उनके बारे
में प्रसिद्ध है
- कोऽरूक् ? कोऽरूक् ? कोऽरूक् ? अर्थात्
कौन नीरोग है?
कौन नीरोग है?
कौन नीरोग है?
हितभुक् मितभुक् ऋतभुक्। अर्थात्
जो कुपथ्य नहीं
लेता, परिमित मात्रा
में खाता है,
परिश्रम और ईमानदारी
की कमाई खाता
है, जीवित रहने
के लिए (न
कि स्वाद के
लिए) सात्विक भोजन
करता है वही
नीरोग है। साथ
ही यह उपदेश
भी चरकसंहिता में
मिलता है -
‘‘शतपदगाामी
च वामशायी च
अविजितमूत्रपुरीषः
खगवर सोऽरूक् सोऽरूक्
सोऽरूक्।’’
अर्थात् जो सौ
कदम (अर्थात् पर्याप्त
) घूमता है, बाँयी
करवट सोता है,
जो मूत्र एवं
शौच के वेग
को नहीं रोकता
है, वही नीरोग
है, वही नीरोग
है, वही नीरोग
है।
स्वास्थ्य
के अधिकार की
ऐसी सुन्दर और
सारगर्भित चर्चा आज की
नही अपितु भारतवर्ष
के उस काल
की है जिसे
इतिहासकारों ने 500 ईसा पूर्व
निर्धारित किया है।
अर्थात् आज से
2500 वर्ष पहले। यह अनुभूति
किसी भी देशप्रेमी
के लिए सुखद
हो सकती है।
स्वतंत्र
भारत
में
स्वास्थ्य
का
अधिकार
:- स्वतंत्र भारत
में स्वास्थ्य का
अधिकार भारतीय संविधान द्वारा
प्रदŸा है।
यह अधिकार हमें
स्वास्थ्य की सुरक्षा
देता है। साथ
ही यह समस्त
मानवाधिकारों से सम्बद्ध
है, जिसके बिना
शायद हम अन्य
अधिकारों के उपयोग
से वंचित हो
जाँय। मानवधिकारों की
सार्वभौम घोषणा, 1948 के अनुच्छेद
25 के अन्तर्गत प्रत्येक
व्यक्ति को एक
ऐसे जीवन स्तर
का अधिकार है
जो स्वयं उसके
और उसके परिवार
के स्वास्थ्य और
कल्याण के लिए
उपयुक्त हो। इसमें
स्वास्थ्य सम्बन्धी देखरेख की
उचित सुविधा तथा
आवश्यक सामाजिक सुरक्षा की
व्यवस्था का अधिकार
शामिल है। भारत
जैसे विशाल देश
के लिए वर्ष
2009 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य विधेयक,
2009 लाया गया जिसका
उद्देश्य स्वास्थ्य देख-भाल
और आपातकालीन चिकित्सकीय
सेवाओं को और
अधिक प्रभावी बनाना
है। धारा (9) ई
के अनुसार प्रत्येक
व्यक्ति को समुचित
स्वास्थ्य अधिकार के साथ
प्रशिक्षित चिकित्सा व्यवसायी से
उपचार प्राप्त करने
का अधिकार है,
साथ ही वैज्ञानिक
पद्धति से उच्च
गुणवŸाा वाली
सुरक्षित चिकित्सा सेवा प्राप्त
करने का भी
वह अधिकारी है।
धारा 14(1) के अनुसार
प्रत्येक व्यक्ति को अच्छी
स्वास्थ्य सेवाओं के साथ
बिना किसी चिकित्सकीय
उपेक्षा के चिकित्सा
कराने का अधिकार
है। वहीं धारा
14(4) के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति
को चाहे उसने
शुल्क दिया हो
अथवा नहीं, आपातकाल
में चिकित्सा सेवा
प्राप्त करने का
अधिकार है।
भारतवर्ष
में
स्वास्थ्य
समस्या
एक
गंभीर
एवं
चिन्तनीय
विषय :- वैश्वीकरण
के इस दौर
में भारतवर्ष में
स्वास्थ्य समस्या एक गंभीर
एवं चिन्तनीय विषय
है। आजादी के
छः-सात दशकों
के बाद भी
भारत के नागरिकों
का स्वास्थ्य स्तर
विश्व के विकसित
देशों की तुलना
में काफी नीचे
है। सरकारी एवं
गैरसरकारी संगठनों द्वारा किए
गए प्रयास सराहनीय
है परन्तु उत्साहजनक
प्रगति अभी बाँकी
है। अशिक्षा, यौनशोषण
एवं उत्पीड़न, गरीबी,
बालविवाह, स्वास्थ्य सेवा का
अंतिम पायदान तक
नहीं पहुँच पाना,
लिंगीय भेदभाव इत्यादि भारतवर्ष
में स्वास्थ्य के
अधिकार को अक्षरशः
एवं पूर्णतः लागू
करने की राह
में बड़ी अड़चनें
हैं। आत्मसंयम की
कमी एवं प्राकृतिक
वस्तुओं का दोहन
अप्रत्यक्ष रूप से
हमारे स्वास्थ्य को
प्रभावित कर रहा
है।
राष्ट्र
हित
में
प्रधानमंत्री
मोदी
का
स्वप्न
:- सŸाा के
शीर्ष पर विराजमान,
भारतीयता की
जागृत प्रतिमूर्ति, भारत के
यशस्वी माननीय वर्तमान प्रधानमंत्री
श्री नरेन्द्र दामोदर
दास मोदी जी
जानते थे कि
स्वास्थ्य का अधिकार
पूर्णतः फलीभूत हो इसके
लिए राष्ट्रीय स्तर
पर कुछ कार्य
करने की प्रबल
आवश्यकता है। यथा
-
1. व्यावहारिक रूप से लिंग भेद को समाप्त करना चाहिए न कि सिर्फ सैद्धान्तिक रूप से। आम आदमी में यह धारणा जागृत करना कि आधी आबादी को हासिए पर रखकर कोई कार्य नहीं हो सकता।
2. आधुनिक संचार माध्यमों, शैक्षणिक संस्थाओं व विशेषज्ञों के माध्यम से समाज में जागृति लाना कि पर्यावरण की सुरक्षा हमारे स्वस्थ रहने के लिए कितना आवश्यक है।
3. सरकारी एवं गैर सरकारी तन्त्रों को आखरी इन्सान तक अपनी पहुँच सुनिश्चित करना।
4. अंधविश्वास एवं कुरीतियों को दूर करने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता पर बल।
5. प्रचलित स्वास्थ्य व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया जाए एवं सुविधाओं को सुनिश्चित करना।
6. स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सुरक्षा मानव के सम्मानपूर्ण जीवन का एक मूलभूत आवश्यक तत्व है। यह व्यक्ति के उन मानवीय अधिकारों से सम्बद्ध है जिसके बिना व्यक्ति अपने अन्य मानवीय अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकता। यह व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जिसका संरक्षण किया जाना आवश्यक है।
आयुष्मान्
भारत
योजना
एक
वरदान
:- इसी व्यापक
उद्देश्य को ध्यान
में रखकर भारत
सरकार ने विŸा
वर्ष 2018-2019 के आम
बजट में ‘‘आयुष्मान्
भारत योजना’’ प्रारम्भ
करने की घोषणा
की। भारत के
प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र
मोदी ने भारतीय
संविधान के मनीषी
बाबा साहब भीमराव
अम्बेडकर की जयन्ती
पर 14 अप्रैल 2018 को
छŸाीसगढ़ प्रान्त
के बीजापुर जिले
से इस योजना
का श्रीगणेश किया।
पंडित दीन दयाल
उपाध्याय की जयंती
25 सितम्बर 2018 से पूरे
देश में इस
योजना को प्रधानमंत्री
जन आयोग्य योजना
के रूप में
लागू किया। इसके
साथ ही अखिल
विश्व स्तर पर
इस तरह की
योजना का लाभ
अपने नागरिकों को
देने वाला दूसरा
राष्ट्र हमारा भारत बन
गया। इसके पूर्व
संयुक्त राज्य अमेरिका के
पूर्व राष्ट्रपति बराक
ओबामा ने अपने
देश में स्वास्थ्य
सुरक्षा योजना को ओबामा
केयर के रूप
में प्रारंभ किया
था। प्रधानमंत्री मोदी
की दूरदृष्टि और
सफल नेतृत्व के
कारण भारत में
इस योजना को
लोग प्रायः मोदी
केयर भी कहने
लगे हैं। आयुष्मान््
भारत योजना मूलतः
स्वास्थ्य बीमा योजना
है, जो भारत
सरकार की
महŸवाकांक्षी राष्ट्र
व्यापी योजना है। इसने
समाज के अंतिम
पायदान पर स्थित
लोगों के लिए
संजीविनी का काम
किया है। केन्द्र
सरकार इस योजना
के माध्यम से
देश के दस
करोड़ परिवारों अर्थात्
लगभग पचास करोड़
लोगों के लिए
पाँच लाख रूपये
का स्वास्थ्य बीमा
उपलब्ध करा रही
है। शेष
आबादी को भी
जल्दी ही इस
योजना के दायरे
में लाने का
प्रयास है। इस
योजना से प्रत्येक
परिवार को प्रत्येक
वर्ष पाँच लाख
रूपये तक का
स्वास्थ्य बीमा का
लाभ मिल रहा
है। इस योजना
की गंभीरता और
सरकार की उदाŸा सोच
व चिन्तन का
सामान्य आकलन सिर्फ
इस बात पर
किया जा सकता
है कि इस
मद में पाँच हजार करोड़ का
खर्च पिछले विŸाीय वर्ष
में किया जा
चुका है। भ्रष्टाचार
के दानव से
मुक्त इस योजना
को वास्तविक लाभार्थी
तक पहँुचाने के
लिए भारत सरकार
ने सुन्दर और
अपूर्व प्रबन्धन किया है।
प्रधानमंत्री की सीधी
निगाह इस योजना
पर है।
आयुष्मान् भारत योजना
में मुख्यतः दो
तŸव निहित
हैं -
1. राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा
योजना
:- इसके अन्तर्गत गरीबी रेखा
के नीचे गुजर
बसर करने वाले
दस करोड़ परिवार
के लगभग पचास
करोड़ लोगों को
कवर करने की
योजना है। इस
योजना के अन्तर्गत
लाभुक को भारत
के किसी भी
सार्वजनिक या निजी
अस्पताल में बिना
पैसे दिये पाँच
लाख रूपये तक
का इलाज व
देखभाल का लाभ
प्राप्त है। सामान्य
भाषा में अगर
कहा जाए तो
शहरी तथा ग्रामीण
दोनों क्षेत्र के
गरीब, भूमिहीन, निराश्रित,
मजदूर, भिक्षुक, घरेलू कामकाज
करने वाले, कूड़ा
चुनने वाले, फुटपाथ
पर दुकान लगाने
वाले दुकानदार, सड़क
पर काम करने
वाले, फेरी वाले,
दिव्यांग, विधवा, परित्यक्ता, दैनिक मजदूर अनुसूचित
जाति व जनजाति
से सम्बन्धित अधिकांश
आबादी स्वतः इस
योजना से जुड़
जाएँगे। सरकार योजना से
जुड़े लाभार्थी
को हेल्थ कार्ड
(गोल्डेन कार्ड) उपलब्ध कराती
है, जिससे अस्पताल
में बीमार व्यक्ति
का सारा खर्च
कवर हो जाता
है। अस्पताल में
एडमिट होने से
पहले और बाद
का खर्च भी
इसमें कवर होता
है। लाभार्थी के
लिए हेल्पलाइन नं0
14555 भी उपलब्ध कराया गया
है। लाभार्थी सभी
तरह की बीमारियाँ
का पाँच लाख
रूपये तक का
इलाज खर्च किसी भी
अस्पताल में निःशुल्क
करा सकता है।
अभी सामाजिक आर्थिक
जाति जनगणना के
आधार पर 80 प्रतिशत
लाभार्थियों की पहचान
कर ली गई
है। लाभार्थी
के परिवार का
आकार, उम्र, लिंग
आदि पर कोई
प्रतिबन्ध नहीं है।
ध्यातव्य है कि आयुष्मान
भारत के अन्तर्गत
प्राप्त बीमा अन्य
स्वास्थ्य बीमाओं से अलग
है। इस योजना
पर प्रधानमंत्री श्री
नरेन्द्र मोदी सीधे
तौर पर नज़र
बनाये हुए हैं।
उनका प्रधानमंत्री कार्यालय
इसमें किसी भी
स्तर पर भ्रष्टाचार
को बर्दाश्त करने
में पक्ष में
नहीं है। इसलिए
यह योजना दिन
प्रति दिन सफलता
के मानदण्ड पर
खरा उतर रहा
है। सम्पूर्ण भारत
में न केवल
लक्ष्य को हासिल
करने में सफल
हो रहा है
अपितु लाभार्थी का
चयन अत्यन्त ही
पारदर्शी ढ़ंग से
हो रहा है।
राज्य सरकार केन्द्र
सरकार के इस
योजना को मिशन
मोड में लागू
करने में विश्वास
करती है। झारखण्ड,
हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उŸारप्रदेश, महाराष्ट्र, उŸाराखण्ड, गुजरात, हिमाचल
प्रदेश आदि राज्यों
के साथ ही
पूर्वोŸार एवं
दक्षिण भारत की
राज्य सरकारें भी
हर संभव तीरके
से इसका व्यापक
प्रचार प्रसार करते हुए
अपने राज्य के
निवासियों को इस
योजना का लाभ
पहुँचाने के लिए
कृत संकल्प हैं।
अभी अभी जम्मू
कश्मीर और लद्दाख
केन्द्रशासित प्रदेश में पुनर्गठन
के बाद यह
योजना तेजी से
लाभार्थियों तक पहुँच
रही है।
2. कल्याण केन्द्र :- आयुष्मान् भारत योजना
का दूसरा महŸवपूर्ण तŸव कल्याण केन्द्र की
स्थापना है। इन स्वास्थ्य
कल्याण केन्द्रों में सरकार
के द्वारा इस
योजना के अन्तर्गत
कई प्रकार की
सेवाएँ उपलब्ध कराई गई
हैं। जैसे
- बुजुर्ग के लिए
आपातकालीन चिकित्सा, मानसिक बीमारी
का प्रबन्धन, बाल
स्वास्थ, नवजात एवं शिशु
स्वास्थ्य सेवाएँ, गर्भवती माताओं
का देखभाल, दन्त
चिकित्सा व देखभाल,
संक्रामक रोग की
चिकित्सा, असंक्रामक रोग की
चिकित्सा, नेत्र चिकित्सा व
देखभाल आदि। गोल्डन
कार्ड धारी लाभुक
हर प्रकार की
सेवा निःशुल्क और
स्वाभिमान से प्राप्त
कर सकता है।
जैसा कि पूर्व
में कहा जा
चुका है कि
गोल्डन कार्ड प्राप्त कराने
में उŸामोŸाम पारदर्शी
व्यवस्था अपनाने से सभी
आशंकाओं का समाधान
है।
सरकार
की
मंशा - केन्द्र
की मोदी सरकार
की मंशा स्पष्ट
और ईमानदार है।
इसी स्पष्ट ईमानदार
मंशा के साथ
राज्य सरकारों को
भी कार्य करने
के लिए प्रेरित
किया गया है।
सच्चे और वास्तविक
लाभार्थी तक योजना
को सही रूप
में पहुँचाया जा
रहा है। राज्यों
के आँकड़े इसकी
सफलता की नई
नई ऊँचाइयों केा
प्राप्त कर रही
हैं। सरकार की
विभिन्न एजेंसियाँ सिर्फ इस
विन्दु पर ही
अहर्निश काम कर
रही हैं कि
आयुष्मान् भारत योजना
के मुख्य उद्देश्य
अर्थात् हमारे देश के
आर्थिक रूप से
कमजोर लोगों को
सहायता प्रदान करना हैं।
ऐसे कमजोर व
गरीब लोगों को
सरकार एक गोल्डन
कार्ड उपलब्ध कराती
है। आय प्रमाण
पत्र, जाति प्रमाण
पत्र, राशन कार्ड,
आधार कार्ड आदि
सामान्य दस्तावेज इस योजना
का लाभ लेने
को इच्छुक गरीब
नागरिक के पास
होना चाहिए। आधार
कार्ड इस योजना
को पारदर्शी
और भ्रष्टाचार मुक्त
रूप से जोड़ने
में कारगर है।
आयुष्मान भारत योजना
का सीधा लाभ
उन्हें मिलेगा जो 2011 की
जनगणना के अनुसार
गरीबी रेखा के
दायरे में हैं।
निष्कर्ष
:- निष्कर्षतः कहा
जा सकता है
कि भारत सरकार
द्वारा प्रांरभ की गई
आयुष्मान भारत योजना
एक सफल और
जनकल्याणकारी योजना है। स्वतन्त्रता
के सात दशक
बाद भारत के
नागरिकों के लिए
स्वास्थ्य के क्षेत्र
में यह नूतन
विहान लेकर आया
है। साथ ही
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
भ्रष्टाचार मुक्त भारत के
लक्ष्य को भी
साधने का सफल
प्रयास किया है।
----------इति शुभम् ---------
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