पुराण सामान्य अध्ययन
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संस्कृत साहित्य अपनी विविध विधाओं के लिए प्रसिद्ध है। एक ओर जहां विपुल वैदिक साहित्य है तो दूसरी ओर रामायण, महाभारत और पुराण जैसे लौकिक साहित्य। रामायण, महाभारत और पुराण परवर्ती कवियों की रचनाओं के आधार है इसलिए उपजीव्य काव्य के रूप में विख्यात हैं।
पुराण वस्तुत: पुराने आख्यान हैं जिसमें भारतीय संस्कृति का गान है। इसमें जगत् की उत्पत्ति के रहस्य हैं, तो राजाओं के इतिहास भी हैं। यदि इनमें राम, कृष्ण जैसे देवताओं का चरित्र चित्रण है तो व्रत त्यौहार की महत्ता भी वर्णित है। भारत का ऐतिहासिक वर्णन है तो भौगोलिक और सांस्कृतिक विरासत का भी समावेश है। कहा तो यह भी जाता है कि वैदिक साहित्य के बीज का वृक्ष के रूप में प्रस्फुटित स्वरुप पुराण का है। इसमें साहित्य है तो दर्शन भी है। अतीत की कहानी है तो भविष्य की सुन्दर कल्पना भी है। धर्म और आस्था का गान है तो नीति और आचार का उपदेश भी है।
यद्यपि पुराणों की संख्या पर विद्वानों में मतभेद है परन्तु 18 पुराण सर्वमान्य हैं। एक पद्य में इन पुराणों को इस प्रकार कहा गया है -
"मद्वयं भद्वयं ब्रत्रयं वचतुष्टयं अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते।"
अर्थात् - म अक्षर से दो, भी अक्षर से दो, ब्र से तीन, व से चार ओर अ, ना, प, लिं, ग, कू, स्क से एक एक कुल 18 महापुराण हैं।
इस प्रकार म से मत्स्य और मार्कण्डेय पुराण
भ से भविष्य और भागवत पुराण
ब्र से ब्रह्म, ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्तपुराण
व से वराह, वामन, वायु और विष्णु पुराण
अ से अग्नि पुराण
ना से नारद पुराण
प से पद्म पुराण
लि से लिंग पुराण
ग से गरूड़ पुराण
कू से कूर्म पुराण
स्क से स्कन्द-पुराण
ये 18 पुराण हैं।
संक्षेप में कहा जाए तो पुराणों में मुख्य रूप से पांच बातें मिलती हैं। जो इसके लक्षण के रूप में कहा गया है।
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च। वंशानुचरितं चेति पुराणं पञ्चलक्षणम्।।”
इस प्रसिद्ध श्लोक में
1. सर्ग (विश्व की उत्पत्ति)
2. प्रतिसर्ग (विश्व का प्रलय)
3.वंश,
4.मन्वन्तर (काल में स्थित्यंतर)
एवं
5. राजर्षियों के वंशो का ऐतिहासिक वृत्तान्त, इन पञ्च विषयों को पुराणों का लक्षण माना गया है।
अन्ततः कहा जा है कि व्यास रचित पुराण साहित्य भारतीय संस्कृति का अनूठा साहित्य है। यह हमारी धरोहर है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए।
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