रामायण - सामान्य परिचय

Dr.D.K.MISHRA






रामायण आदिकाव्य है। यह संस्कृत भाषा में रचित है। इसके रचयिता वाल्मीकि हैं।  कहा जाता है कि वाल्मीकि की करूणा एवं शोक ही श्लोक रूप में प्रस्फुटित होकर लौकिक छन्द में प्रवाहित हुआ -
‘‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी काममोहितम्।।’’
                                    (वा0रा0 1/2/15)
यह लौकिक साहित्य की प्रथम रचना है, इसलिए रामायण को ‘‘आदिकाव्य’’ कहते हैं और वाल्मीकि ‘आदिकवि’ कहे जाते हैं। विधा की दृष्टि से रामायण एक ‘‘महाकाव्य’’ है। इसमें 500 सर्ग हैं। इन सर्गों में श्रीराम की गाथा है। रामायण भारतीय सनातन संस्कृति की सुन्दर प्रस्तुति करता है, इसलिए यह एक धर्मग्रन्थ के रूप में भी जाना जाता है। ऋषि रचित होने के कारण रामायण एक ‘‘आर्ष काव्य’’ भी है।
     रामायण में सात (07) काण्ड हैं। इन काण्डों में राम के सम्पूर्ण जीवन का सुन्दर विवरण है। ये काण्ड हैं - बालकाण्ड,  अयोध्याकाण्ड,  अरण्यकाण्ड,  किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड,  युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्ड। सम्पूर्ण रामायण में 24000 श्लोक हैं, इसलिए इसे ‘‘चतुर्विंशतिः-साहस्री-संहिता’’ भी कहते हैं। सम्पूर्ण रामायण की कथा एक श्लोक में भी समाहित किया गया है। कहा गया है कि -
‘‘आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगकांचनम्।
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननं एतद्धि रामायणम्।।’’
रामायण की कथा के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ निःसन्तान थे। उनकी तीन पत्नियाँ थीं - कौसल्या, कैकेयी और सुमित्रा। दशरथ अपने गुरू वशिष्ठ की अनुमति से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करते हैं। ऋषि शृंग के द्वारा यज्ञ सम्पादित होता है। यज्ञ के फलस्वरूप राजा दशरथ को अपनी तीनों रानियों से चार पुत्रों की प्राप्ति होती है। कौसल्या राम को जन्म देती है। कैकेयी भरत को और सुमित्रा दो जुड़वें सन्तान को जन्म देती है, जो लक्ष्मण और शत्रुध्न के रूप में जाने जाते हैं। राम अपने भाइयों में सबसे बड़े हैं। ‘उपनयन-संस्कार’ के बाद वशिष्ट के आश्रम में चारों भाई अध्ययन करते हैं। अल्पायु में ही चारों भाई सभी शास्त्रों में पारंगत तथा शस्त्रों में निपुण होते हैं। अध्ययन के उपरान्त चारों भाई गुरुकुल से राजधानी लौट आते हैं। एक दिन ऋषि विश्वामित्र अयोध्या आते हैं और यज्ञ-रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को दशरथ से मांगकर अपने आश्रम ले जाते हैं। राम ने अपनी शूरता से न केवल यज्ञ की रक्षा की अपितु मायावी असुरों का संहार भी किया। इसके बाद मिथिला के राजा जनक के निमंत्रण पर ऋषि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण ‘धनुष-यज्ञ’ देखने जनकपुरी गए। वहाँ मिथिला की राजकुमारी सीता के साथ राम का विवाह हुआ। राजा दशरथ की सहमति, ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा तथा मिथिला नरेश राजा जनक की इच्छा से लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से हुआ। साथ ही भरत का विवाह माण्डवी तथा शत्रुघ्न का विवाह श्रुतिकीर्ति से सम्पन्न हुआ। सभी वापस अयोध्या लौट आए।
    राजा दशरथ ‘राज्य-भार’ अपने पुत्र राम को सौंपना चाहते थे, परन्तु कैकेयी ने अपने दो वर माँग कर राम को चैदह वर्षों का वनवास और भरत के लिए ‘राज-सिंहासन’ की याचना की। पिता की आज्ञा से राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ जंगल चले गये। पुत्र के वियोग में राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिये। धर्म की रक्षा करने के लिए भरत ने राज-सिंहासन स्वीकार नहीं किया। वन में अनेक कष्टों को झेलते हुए राम और लक्ष्मण सीता के साथ पंचवटी में रहते थे। लंका का राजा रावण छल से सीता को उठा ले जाता है। राम सुग्रीव से मित्रता कर लंका पर विजय प्राप्त करते हैं। समस्त राक्षस कुल का नाश होता है। मेघनाद, कुम्भकर्ण, रावण सभी मारे जाते हैं। राम रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा नियुक्त कर वनवास की अवधि पूरी होने के कारण वापस अयोध्या लौट आते हैं।
      राम एक आदर्श राजा के रूप में अयोध्या पर शासन करते हैं। प्रजानुरंजन के लिए सीता तक का त्याग कर देते हैं। सीता वाल्मीकि के आश्रम में रहने लगती है। सीता के दोनों पुत्रों लव और कुश को वाल्मीकि शस्त्र और शास्त्र में पारंगत कराते हैं। इसी समय ऋषि वाल्मीकि इस महाकाव्य की रचना भी करते हैं।
  रामायण सिर्फ एक महाकाव्य नहीं, भारतीय संस्कृति का आधार ग्रन्थ है। इसमें अनेक आदर्शों की स्थापना की गई है। पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय आदर्श का अद्भुत वर्णन यहाँ प्राप्त होता है। इस परिप्रेक्ष्य में भातृप्रेम का अद्भुत उद्घोष करता रामायण का यह श्लोक किसे आकर्षित नहीं करता -
‘‘देशे देशे कलत्राणि देशे देशे च बान्धवाः।
तं तु देशं न पश्यामि यत्र भ्राता सहोदराः।।’’
इतिहासकारों का मानना है कि रामायण की रचना 500 ई0पूर्व में हुई थी। राम की कथा आज भी प्रचलित है। रामायण को आधार बनाकर अनेक ग्रन्थ लिखे गए, इसलिए रामायण एक ‘‘उपजीव्य काव्य’’ के रूप में प्रसिद्ध है। कहा भी गया है कि -
‘‘यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले।
तावत् रामायणी कथा लोकेषु प्रचरिष्यति।।’’
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि रामायण भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। वर्णाश्रम-धर्म, षोडश-संस्कार, धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावनाओं की एक आदर्श व्यवस्था का एक निरूपक ग्रन्थ है। यह ‘सत्यं-शिवं-सुन्दरम्’ का निरूपण करता है। राम का मर्यादा पुरूषोत्तम स्वरूप जन-जन के लिए उपादेय है। भारतीय परम्परा में तभी तो यह उद्घोष किया गया है कि -
‘‘सदूषणापि निर्दोषा सखरापि सुकोमला।
नमस्तस्मै कृता येन रम्या रामायणी कथा।।’’

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