कालिदास व्यक्तित्व एवं कृतित्व


 








 डॉ धनंजय कुमार मिश्र, विभागाध्यक्ष संस्कृत, एस के एम विश्वविद्यालय दुमका, झारखंड 814110

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महाकवि कालिदास ने केवल संस्कृत साहित्य के अपितु विश्व साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठित कवि व नाटककार हैं। अंग्रेजी साहित्य में जो स्थान शैक्सपीयर का है वही स्थान कालिदास का संस्कृत साहित्य में है। कालिदास की गणना विश्व कवि के रूप में की जाती है। इटली के लोग इनकी तुलना दान्ते और वर्जिल से करते हैं। जर्मनी के लोग इन्हें संसार का सर्वाधिक लोकप्रिय कवि मानते हैं। हम भारत वासियों के लिए तो कालिदास प्रकृति के सुकुमार कवि, दीप शिखा, कवि कुल गुरु, उपमा सम्राट आदि उपाधियां से विभूषित महाकवि हैं। इनकी तुलना इन्हीं से की जा सकती है। संस्कृत भाषा और साहित्य के देदीप्यमान नक्षत्र हैं।

  महाकवि कालिदास का जन्म कब और कहां हुआ था, इस सन्दर्भ में अनेक किंवदन्तियां हैं। कुछ लोग इन्हें कश्मीर का निवासी मानते हैं तो कुछ बंगाल का। अनेक लोगों का मानना है कि कालिदास राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। एक जनश्रुति के अनुसार बाल्यकाल में कालिदास मन्द बुद्धि के थे। स्वयंवर में पराजित होने के कारण कुछ पण्डितों ने छलपूर्वक इनका विवाह परम विदुषी विद्योत्तमा से करा दिया। पत्नी से अपमानित होकर कालिदास उज्जैन चले गए और भगवती काली की कृपा से उद्भट विद्वान हुए। महाराज विक्रमादित्य के दरबार में रहने लगे और अपनी साहित्य साधना को पूरी तन्मयता से पूर्ण किया।

यद्यपि कालिदास के नाम से 39 रचनाएं मिलती हैं परन्तु सभी रचनाओं को कालिदास का नहीं माना जा सकता क्योंकि इन रचनाओं की शैली, भाषा, साहित्यिक मर्यादा आदि में काफी अन्तर है। प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने जिन ग्रंथों पर टीका की है, वे अवश्य ही इनकी रचनाएं हैं। इस दृष्टि से मेघदूतम्, कुमारसंभवम्, रघुवंशम्, मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् और अभिज्ञान शाकुन्तलम् महाकवि कालिदास की अमर कृतियां हैं। इसके अतिरिक्त ऋतुसंहार भी कालिदास की रचना आलोचकों ने स्वीकार की है।

कालिदास के स्थितिकाल के विषय में भी मतभेद है। कुछ लोग इन्हें छठी शताब्दी का मानते हैं तो कुछ चौथी शताब्दी का। कुछ लोग प्रथम शताब्दी का कहते हैं तो कुछ ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी का। अन्त: और बाह्य साक्ष्यों को आधार बनाकर प्रायः अधिकांश विद्वान इनका समय प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व ही स्वीकार करते हैं।

कालिदास की रचनाओं में प्रेम, विरह, प्रकृति का मानवीकरण, भारतीय संस्कृति और आदर्शों का सुन्दर निरुपण हुआ है। कल्पना, भावना और संगीत इनके काव्यों में स्पष्ट दिखाई देता है। श्रृंगार रस, वैदर्भी रीति, प्रसाद गुण, उपमा अलंकार, सरल भाषा, व्यंजना शैली कालिदास के काव्यों में सहज दर्शनीय हैं।

निश्चित रूप से कालिदास एक सफल कवि हैं और इनकी रचनाएं सार्वकालिक व सार्वभौमिक हैं।



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