वैदिक साहित्य एक सामान्य परिचय

 *वैदिक साहित्य एक सामान्य परिचय*

डॉ धनंजय कुमार मिश्र 

एस के एम यू दुमका 

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विश्व की प्राचीनतम संस्कृति में से एक वैदिक संस्कृति का विवेचन जिस साहित्य परम्परा में प्राप्त होता है, वह वैदिक साहित्य के नाम से जाना जाता है। मुख्यतः यह साहित्य भारतीय संस्कृति का आधार है। प्राचीन भारतीय ज्ञानपरम्परा को आर्ष परम्परा भी कहते हैं। आर्ष परम्परा का सर्वस्व वैदिक साहित्य में निहित है।

वैदिक शब्द का अर्थ है - वेद से सम्बन्धित। वेद शब्द ज्ञान का वाचक होता है। प्राचीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जिस साहित्य को हम देखते हैं वह वैदिक साहित्य है। इसकी भाषा वैदिक संस्कृत है। विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद से प्रारंभ होकर उपनिषद तक की अविरल धारा वैदिक साहित्य के अंतर्गत प्राप्त होती है।

प्राचीन भारतीय ऋषियों ने प्रकृति से साक्षात्कार कर उसके रहस्यों को जानना चाहा। ये प्राकृतिक रहस्य ही उनके कण्ठों से मन्त्र के रूप में प्रस्फुटित हुआ। ये मन्त्र पद्य, गद्य और गीत के रूप में प्रस्फुटित हुए जो क्रमशः ऋक्, यजु: और साम कहलाए। पद्यमयी मंत्रों का संग्रह ऋग्वेद  कहलाया। गद्य वाले मंत्रों का संग्रह यजुर्वेद और गेयात्मक मन्त्रों का समूह सामवेद के रूप में प्राप्त हुआ। कालक्रम में वेदों के तीन रूप ऋक्, यजु: और साम वेदत्रयी के रूप में प्रसिद्ध हुए। संख्यात्मक दृष्टि से वेद चार हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इन्हें चार संहिताओं के रूप में जाना जाता है। प्राचीनतम वेद ऋग्वेद तथा अर्वाचीन वेद अथर्ववेद है। इनकी कई शाखाएं प्रचलित हैं।

वैदिक मंत्रों की व्याख्या के लिए जिन ग्रंथों की रचना हुई वे ब्राह्मण ग्रन्थ कहे गए। गृहस्थों के लिए ये ब्राह्मण ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध हुए। वानप्रस्थियों और संन्यासियों के लिए आरण्यक ग्रन्थों की रचना हुई। इन आरण्यक ग्रन्थों की रचना वनों में हुई। चारों वेदों के अलग-अलग ब्राह्मण एवं आरण्यक ग्रन्थ अभी भी प्राप्त होते हैं। जैसे -

ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं - ऐतरेय और कौषीतकि।

शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण और

कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ तैत्तिरीय ब्राह्मण है। सामवेद के कई ब्राह्मण ग्रन्थ मिलते हैं। जैसे - ताण्ड्य, षड्विंश, जैमिनीय आदि जबकि अथर्ववेद का एकमात्र ब्राह्मण ग्रन्थ गोपथ ब्राह्मण उपलब्ध है।

इसी प्रकार आरण्यक ग्रन्थ भी अलग-अलग वेदों के लिए मिलते हैं। ऋग्वेद का आरण्यक ऐतरेय और कौषीतकि, शुक्ल यजुर्वेद का वृहदारण्यक, तैत्तिरीय और मैत्रायणी आरण्यक है। सामवेद का जैमिनीय और छान्दोग्य आरण्यक  ग्रन्थ है। अथर्ववेद का कोई भी आरण्यक ग्रन्थ नहीं मिलता है।

वैदिक साहित्य का अन्तिम भाग उपनिषद् है जिसे वेदान्त भी कहते हैं। इसमें दार्शनिक विचारों का प्रस्तुतिकरण है। मूलतः 13 उपनिषद् सर्वमान्य हैं। इनका सम्बन्ध भी वेदों  से  है। ऋग्वेद से सम्बंधित उपनिषद् ऐतरेय और कौषीतकि है। कृष्ण यजुर्वेद का उपनिषद् कठ, श्वेताश्वतर, मैत्रायणी और तैत्तिरीय है जबकि शुक्ल यजुर्वेद से सम्बंधित उपनिषद् ईश और वृहदारण्यक है। छान्दोग्य उपनिषद् और केनोपनिषद सामवेद से सम्बंधित उपनिषद् हैं। अथर्ववेद के तीन उपनिषद् हैं - प्रश्न, मुण्डक और माण्डूक्य।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि चारों संहिताओं, उनके ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषदों को वैदिक साहित्य के अंतर्गत रखा जाता है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान के आदि स्रोत के रूप में इन्हें मान्यता प्राप्त है। वैदिक साहित्य अपनी विशालता और गंभीरता के लिए जगत्प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण वैदिक साहित्य की भाषा वैदिक संस्कृत है।

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