बाणभट्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व
संस्कृत गद्य-साहित्य में सर्वाधिक प्रतिभाशाली गद्यकार ‘बाण’ हैं। बाणभट्ट ने परम्परा से हटकर अपनी रचना में अपना पूर्ण परिचय दिया है। बाणभट्ट हर्षवर्द्धन के दरबार में रहते थे। अतः बाण का समय वही है जो इतिहास में हर्षवर्द्धन का अर्थात् 607ई0 से 648ई0। बाणभट्ट वात्स्यायन-गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम चित्रभानु था। विद्वान् परिवार में जन्म लेने के कारण इन्होंने सभी विद्याओं का अभ्यास किया। बचपन में ही अनाथ हो गए बाणभट्ट ने युवावस्था में मित्रों की मण्डली बनाकर पर्याप्त देशाटन किया। अनुभव सम्पन्न होकर अपने ग्राम ‘प्रीतिकूट’, शोण के तट पर लौटे। राजा हर्षवर्द्धन के बुलावे पर यह उनके दरबार में गए और उनकी कृपा से वहीं रहने लगे। बाणभट्ट ने दो गद्य-काव्यों की रचना की - हर्षचरितम् और कादम्बरी। हर्षचरितम् एक आख्यायिका है। यह आठ उच्छ्वासों में विभक्त है। प्रारंभिक दो - तीन उच्छ्वासों में बाण ने अपने वंश का एवं अपना परिचय दिया है। इसके बाद राजा हर्षवर्द्धन के पूर्वजों का वर्णन किया है। पुनः प्रभाकरवर्द्धन, राज्यवर्द्धन, हर्षवर्द्धन तथा राज्यश्री इन तीन भाई-बहन के जन्म का भी रोचक वृतान्त दिया है। प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु , राज्यश्री का विधवा होना, राज्यवर्द्धन की हत्या, राज्यश्री का विन्ध्याटवी में पलायन, हर्षवर्द्धन द्वारा उसकी रक्षा - ये सभी घटनाएँ क्रमशः वर्णित हैं। दिवाकर मित्र नामक बौद्ध संन्यासी के आश्रम में हर्षवर्द्धन व्रत लेता है कि दिग्विजय के बाद वह बौद्ध हो जाएगा। यहीं हर्षचरितम् की कथानक समाप्त हो जाता है।
विस्तृत-वर्णन सजीव-संवाद, सुन्दर-उपमाएँ, झंकार करती शब्दावली तथा रसों की स्पष्ट अभिव्यक्ति -ये सारी बातें बाण की गद्य शैली में प्रचूरता से मिलती है। कहीं आनन्द और उल्लास का सजीव वर्णन है तो कहीं मृत्यु का अत्यन्त मार्मिक रूप वर्णित है।
बाणभट्ट की दूसरी रचना कादम्बरी है। यह कवि-कल्पित कथानक पर आश्रित होने के कारण कथा नामक गद्य-काव्य है। इसमें अध्याय या उच्छ्वास आदि में विभाजन नहीं है। पूरी कथा का पचहत्तर प्रतिशत भाग ही बाणभट्ट ने लिखा है, शेष उनके पुत्र ने पूरा किया है। काव्यशास्त्र के सभी उपादानों रस, अलंकार, गुण, रीति आदि का औचित्यपूर्ण प्रयोग करने के कारण कादम्बरी बाण की उत्कृष्ट गद्य रचना है। विषय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वर्णन-शैली अपनाई गई है। इसे पाञ्चाली शैली कहा जाता है, जिसमें शब्द और अर्थ का समान गुम्फन है। पात्रों का सजीव निरूपण है। रस का समुचित परिपाक हुआ है। मानव जीवन के सभी पक्षों को दर्शाया गया है। आलोचकों ने मुक्त कण्ठ से इसकी प्रशंसा की है तथा कह दिया है कि बाण ने पूरे संसार को जूठा कर दिया है- ‘‘बाणोच्छिष्टं जगत्सर्वम्।’’ उनके वर्णन से कुछ भी बचा नही है।
निःसंदेह बाणभट्ट का हर्षचरितम् एवं कादम्बरी संस्कृत गद्य साहित्य के दो गगनचुम्बी ईमारत हैं जिसके शिखर तक पहुँचना आसान नहीं है।
इन दो गद्य रचनाओं के अतिरिक्त पार्वतीपरिणयम् नामक नाटक और चण्डीशतकम् नामक खंड काव्य भी बाणभट्ट की ही रचनाएं हैं। साहित्यिक दृष्टि से ये उतने सफल नहीं कहे जा सकते जितना हर्षचरितम् और कादम्बरी है।
बाणभट्ट यदि आज तक स्मरणीय व पठनीय हैं तो अपने कालजयी गद्य काव्यों के कारण। निश्चित रूप से बाणभट्ट भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्तम्भ हैं।
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