महाभारत : एक दृष्टि

 

डॉ धनंजय कुमार मिश्र, विभागाध्यक्ष संस्कृत, एस के एम विश्वविद्यालय दुमका (झारखंड) 814101

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अखिल विश्व की भाषाओं में संस्कृत का स्थान अन्यतम है। इसका व्याकरण वैज्ञानिक है तो इसका साहित्य विपुल। संस्कृत साहित्य की परम्परा में रामायण के बाद महाभारत का विकास हुआ है। इसके रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास हैं, जिन्हें सामान्य रुप से हम सभी वेदव्यास के नाम से जानते हैं। व्यास जी ऋषि पराशर और निषाद कन्या सत्यवती की संतान थे। कहा जाता है कि व्यास जी ने साहित्य, धर्म, दर्शन, इतिहास और भक्ति का अद्भुत समन्वय अपने ग्रन्थ महाभारत में किया है। यह एक उपजीव्य काव्य के रूप में परवर्ती साहित्यकारों के लिए आज भी प्रासंगिक है।

महाभारत एक विशालकाय ग्रन्थ है। इसमें एक लाख श्लोक हैं। इसलिए इसे शतसाहस्रीसंहिता भी कहते हैं। महाभारत में मूलतः कौरवों और पांडवों की कथा है। साथ ही इसमें अन्य प्रासंगिक कथाएं भी समाविष्ट हैं। इसमें कुल 18 पर्व हैं। पर्व अध्यायों में विभक्त हैं। प्रथम पर्व का नाम "आदि पर्व" है जबकि अन्तिम पर्व "स्वर्गारोहण" के नाम से जाना जाता है। 

महाभारत के 18 पर्व इस क्रम से हैं - आदि, सभा, वन, विराट,  उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, अनुशासन, आश्रमवासिक, मौसल, आश्वमेधिक, महाप्रस्थानिक और स्वर्गारोहण।

विश्वप्रसिद्ध भगवद्गीता महाभारत का ही अंश है, जो इसके भीष्म पर्व में स्थित है। इसी प्रकार महाभारत का अनुशासन पर्व भी अत्यंत महनीय है। 

महाभारत की रचना का क्रम तीन स्तरीय है। प्रथम स्तरीय रचना का नाम जय संहिता है, जिसमें 8800 श्लोक हैं। द्वितीय स्तर पर भारत संहिता लिखी गई, जिसमें 24000 श्लोक हैं। अन्त में तीसरे स्तर पर एक लाख श्लोकों से युक्त महाभारत की रचना हुई।

महाभारत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का सुन्दर निरुपण किया गया है। इसके पात्र विविध प्रकार के हैं। इसमें यदि कृष्ण जैसे अवतारी महापुरुष हैं तो अर्जुन जैसा उद्भट योद्धा भी है। कर्ण जैसा दानवीर है तो दुर्योधन जैसा स्वार्थी भी। भीष्म पितामह जैसा व्यक्तित्व है तो द्रोण जैसे आचार्य भी। विदुर जैसा नीतिज्ञ है तो शकुनि जैसा कपटी भी। द्रौपदी और कुन्ती जैसी नारी शक्तियां हैं तो हिडिंबा और सुभद्रा जैसी वीर प्रसूता जननी भी।

निश्चित रूप से महाभारत "यदि हास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्" का सनातन स्वरूप है। यह भारतीय मेधा का अनुपम उद्घोष है। हमारी संस्कृति का सुन्दर उदाहरण है। भारतीय इतिहास को प्रस्तुत करने वाला कालजयी अद्भुत ग्रन्थ है।

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