नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ एवं श्रवण मनोवांछित फलप्रदायी
डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र
‘दुर्गाा सप्तशती ’ हिन्दु-धर्म का सर्वमान्य, सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक ग्रन्थ है। यह श्रीमद्भगवद्गीता की भाँति कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी बहाने वाला अमूल्य ग्रन्थ-रत्न है। यद्यपि भक्त इसका पाठ वर्ष -भर करते हैं, नित्य करते हैं तथापि नवरात्रि में ‘दुर्गाा सप्तशती ’ का पाठ एवं श्रवण समस्त मनोवांछित फल को प्रदान करने वाला है। सकाम भक्त मनोवांछित दुर्लभतम वस्तु एवं स्थिति को सहज ही प्राप्त कर सकते हैं और निष्काम भक्त भगवती की कृपा से दुर्लभ मोक्ष को पाकर जन्म-जन्मान्तर के बन्धन से छूट कर कृताथ होते हैं।
जिस प्रकार ‘गीता’ महाभारत का अंश है उसी प्रकार ‘दुर्गाासप्तशती’ मार्कण्डेय पुराण का अंश है। इसमें कुल 700 श्लोक मन्त्र के रूप में विद्यमान हैं। ये मन्त्र आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु एवं प्रेमी भक्तों को अपना मनोरथ सफल कराने वाले सोपान हैं।
‘दुर्गाासप्तशती’ में कुल तेरह अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में मेधा ऋषि का राजा सुरथ और समाधि को भगवती दुर्गाा की महिमा बताते हुए मधु-कैटभ वध का प्रसंग सुनाना वर्णित है। इस अध्याय में 104 श्लोक मन्त्र रूप में हैं। द्वितीय अध्याय में देवताओं के तेज से देवी के प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध वर्णित है। इसमें कुल 69 मन्त्र हैं। तृतीय अध्याय में सेनापतियों सहित महिषासुर का वध वर्णित है। इसमें मन्त्रों की संख्या 44 है। चतुर्थ अध्याय में इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति 42 मन्त्रों में निहित है। पंचम अध्याय में 129 मन्त्र हैं जिनमें देवताओं द्वारा देवी की स्तुति, चण्ड-मुण्ड के मुख से अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना वर्णित है। षष्ठ अध्याय में धुम्रलोचन का वध वर्णित है जिसमें 24 श्लोक हैं। सप्तम अध्याय में 27 श्लोकों के द्वारा चण्ड-मुण्ड वध वर्णित है। अष्टम अध्याय में रक्तबीज वध, नवम अध्याय में निशुम्भ वध एवं दशम अध्याय में शुम्भ वध क्रमशः 63, 41 एवं 32 श्लोकों में वर्णित है। एकादशवें अध्याय में 55 मन्त्रों द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान प्रस्तुत किया गया है। बारहवें अध्याय में देवी चरित्रों के पाठ का माहात्म्य 41 मन्त्रों में वर्णित है तथा तेरहवें एवं अन्तिम अध्याय में 29 मन्त्रों के द्वारा सुरथ एवं वैश्य को देवी का वरदान प्राप्त हुआ है। इस प्रकार सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती में 700 मन्त्र हैं जो सदैव उपादेय एवं स्मरणीय हैं।
सम्पूर्ण दुर्गाासप्तशती में भगवती के तीन चरित्रों - प्रथम, मध्यम एवं उत्तर चरित्र का वर्णन है। अतएव तीन विनियोग होता है। प्रथम चरित्र के ऋषि ब्रह्मा, देवता महाकाली, छन्द गायत्री, शक्ति नन्दा, बीज रक्तदन्तिका, तत्त्व अग्नि, स्वरूप ऋग्वेद है। यह प्रथम अध्याय है। मध्यम चरित्र द्वितीय अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक कुल तीन अध्यायों में है। इस मध्यम चरित्र के ऋषि विष्णु, देवता महालक्ष्मी, छन्द उष्णिक्, शक्ति शाकम्भरी, बीज दुर्गा, तत्त्व वायु और स्वरूप यजुर्वेद है। उत्तर चरित्र का वर्णन पंचम से अंतिम अर्थात् तेरहवें अध्याय तक कुल नौ अध्यायों में वर्णित है। इस उत्तर चरित्र के ऋषि रूद्र, देवता सरस्वती, छन्द अनुष्टुप्, शक्ति भीमा, बीज भ्रामरी, तत्त्व सूर्य एवं स्वरूप सामवेद का है।
सम्पूर्ण तेरहों अध्याय में ध्यान के लिए एक-एक मन्त्र हैं। अर्थात् ध्यान के कुल 13 मन्त्र हैं।
साधक को चाहिए कि माँ भगवती दुर्गा की प्रीति के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ अवश्य करें। भक्तों को चाहिए कि कम से कम इसका श्रवण अवश्य करें। माँ की कृपा निराली होती है। उनके आशीर्वाद से और भक्त की सच्ची भक्ति एवं निष्ठापूर्वक स्वकर्म से हर मुश्किल आसान हो जाती है, ऐसी मान्यता आदि काल से चली आ रही है जो सर्वथा उचित है।
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अध्यक्ष-संस्कृत विभाग, संताल परगना महाविद्यालय, दुमका 814101
समीर कुमार मंडल
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