‘‘मनुस्मृति : सामान्य परिचय’’











                                                                       
                                                                             20190413_124949.jpg
                                                                          धनंजय कुमार मिश्र
                             सामान्य रूप से ‘श्रुति’ शब्द से वेद, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् आदि ग्रन्थों का बोध होता है। उसी प्रकार ‘स्मृति’ शब्द के अन्तर्गत षड् वेदाङ्ग,धर्मशास्त्र, इतिहास, पुराण, अर्थशास्त्र और नीति शास्त्र आदि विषयों का अन्तर्भाव हो जाता है।
                             विशिष्ट रूप से ‘स्मृति’ शब्द धर्मशास्त्र का पर्यायवाची माना जाने लगा है। धर्मशास्त्र उस शास्त्र को कहते हैं जिसमें राजा-प्रजा के अधिकार, कर्Ÿाव्य, सामाजिक आचार विचार, व्यवस्था, वर्णाश्रमधर्म, नीति, सदाचार और शासन सम्बन्धी नियमों की व्यवस्था का वर्णन होता है।
                           स्मृतियों की संख्या 18 मानी जाती है। समस्त स्मृतिग्रन्थ अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। ‘मनुस्मृति’ समस्त स्मृतिग्रन्थों में प्राचीन एवं प्रामाणिक है। यह धर्मशास्त्र का एक मुख्य ग्रन्थ है। वेदों में समाज के विभिन्न अंगों के जो कर्Ÿाव्य बताये गये हैं उनका विस्तार से एवं स्पष्ट रूप से वर्णन स्मृतियों में ही मिलता है।
                           मानव सृष्टि किस प्रकार आरम्भ हुई, इसका वर्णन करके स्मृतियाँ समाज को चार वर्गो में वर्गीकृत करती हैं - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यह चातुर्वण्र्यव्यवस्था भारतीय संस्कृति की प्राचीन समाजिक व्यवस्था है। इन चार वर्गो के कर्Ÿाव्य, उनके पालन की व्यवस्था तथा उनके उल्लंघन करने पर दण्ड का विधान आदि स्मृतियों की मुख्य विषय-वस्तु है। जिस प्रकार चार वर्णो में सारा समाज वर्गीकृत किया गया है, उसी प्रकार समाज के एक व्यक्ति का जीवन चार आश्रमों में विभक्त किया गया है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। वर्णो और आश्रमों की इस सामाजिक व्यवस्था को हीं ‘वर्णाश्रमधर्म’ के नाम से पुकारा जाता है। इन सब के कर्Ÿाव्यों के साथ हीं राजा के कर्Ÿाव्य, सम्पŸिा के बँठवारे और उŸाराधिकार के नियम, कर-ग्रहण तथा मालगुजारी के कानून आदि भी स्मृतियों में स्पष्ट रूप से निर्धारित हैं।
                           स्मृतियों में सबसे प्राचीन और श्रद्धेय मनुस्मृति मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि मनु द्वारा बनाया गया धर्मशास्त्र लगभग उतना ही पुराना है जितना वेद। वेदों में जो कर्Ÿाव्य सूत्र रूप से संकेतित हैं, उन्हें प्राचीन काल में मनु ने सूचीबद्ध किया था और उसी के आधार पर भारत का राज्य-शासन वर्षो तक चलाया गया। मनु के विधान को भृगु नामक ऋषि ने श्लोकबद्ध किया। यही श्लोकबद्ध ग्रन्थ आज-कल ‘मनुस्मृति’ के रूप में उपलब्ध है।
      विद्वानों की मान्यता है कि  इस स्मृति की रचना ईसापूर्व व बाद की दो शताब्दियों अर्थात् 200 ई0पूर्व से 200 ई0 तक चार सौ वर्षो में  पूरी हुई। शुंग वंश के राजाओं के समय इसका वर्Ÿामान रूप विकसित हुआा।
‘मनुस्मृति’ में बारह अध्यााय और दो हजार सात सौ श्लोक हैं। पहले अध्याय में सृष्टि का आरम्भ वर्णित है। इसके बाद चारो वर्णो एवं चारो आश्रमों के कर्Ÿाव्य बताये गये हैं। यथा -  लोकानां तु विवृद्ध्यर्थं मुखबाहूरूपादतः।
ब्राह्ममणं क्षत्रियं वैश्यं शूद्रं च निरवर्Ÿायत्।। (1/31)
अध्यापनमध्ययनं          यजनं  याजनं तथा।
  दानं प्रतिग्रहं चैव     ब्राह्मणानामकल्पयत्।।  (1/88)

 द्वितीय अध्याय में जातकर्मादि संस्कारविधि, ब्रह्मचर्य व्रतविधि, गुरूजों के अभिवादन की विधि कादि का वर्णन प्राप्त होता है। यथा -
वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः।
एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम्।।  (2/12)
गर्भाष्टमेऽब्दे कुर्वीत ब्राह्मणस्योपनायनम्।
गर्भादेकादशे राज्ञो गर्भाŸाु द्वादशे विशः।।  (2/36)
वैवाहिको विधिः स्त्रीणा। संस्कारो वैदिकः स्मृतिः।
पतिसेवा गुरौ वासो गृहार्थोऽनिपरिक्रमा।।  (2/67)

तृतीय अध्याय में ब्रह्मचर्यव्रत की समाप्ति के बाद समावर्तनसंस्कारविधि,  पंचमहायज्ञ और नित्य श्राद्धविधि का वर्णन मिलता है। यथा -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
      यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाक्रियाः।।  (3/56)

चतुर्थ अध्याय में ऋत-प्रभृत आदि जीविकाओं के लक्षण तथा स्नातक (गृहस्थ) के लक्षण का विवेचन है। यथा -
सन्तोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतोभवेत्।
          सन्तोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।  (4/12)

पंचम अध्याय में दुग्ध-दधि धृत आदि भक्ष्य पदार्थो तथा लहसुन आदि अभक्ष्य पदार्थो, दशाहादि के द्वारा जनन-मरणाशौच में ब्राह्मणादि द्विजातियों की तथा मिट्टी, पानी आदि के द्वारा द्रव्य एवं वर्तनों की शुद्धि का और रूत्रीधर्म का विवेचन किया गया है। यथा -
दधि भक्ष्यं च शुक्तेषु सर्वं च दधिसंभवम्।
        यानि चैवाथ्भषूयन्ते पुष्पमूलफलैः शुभैः।।  (5/10)

षष्ठ अध्याय में वानप्रस्थ तथा सन्यास आश्रम का विवरण मिलता है। यथा -
अग्निहोत्रं समादाय गृह्यं चाग्निपरिच्छदम्।
ग्रामादरण्यं निःसुत्य निवसेन्नियतेन्द्रियः।। (6/4)

सप्तम अध्याय में व्यवहार (मुकदमों) के निर्णय तथा कर-ग्रहणादि रातधर्म का वर्णन प्राप्त होता है। यथा -
सांवत्सरिकमाप्तैश्च राष्ट्रदाहारयेद् बलिम्।
        स्याच्चाम्नायपरो लोको वर्तेत हितवन्नृषु।। (7/80)

 अष्टम अध्याय में साथियों से प्रश्नविधि का वर्णन है। नवम अध्याय में साथ रहने तथा पृथक् रहने पर स्त्री-पुरूष के धर्म, धन आदि सम्पŸिा का विभाजन, द्यूतविधि, चैरादि निवारण तथा वैश्य एवं शूद्र के अपने-अपने धर्म के अनुष्ठान का वर्णन है।
कुलजे वृŸासंपन्ने धर्मज्ञे सत्यवादिनि।
           महापक्षे धनिन्यार्थे निक्षेपंनिक्षिपेद् बुधः।। (8/179)
पिताऽऽचार्यः सुहृन्माता भार्या पुत्रः पुरोहितः।
           नादण्डयो नाम राज्ञोऽस्ति यः स्वधर्मे न तिष्ठति।।(8/335)

भ्रातुज्र्येष्ठस्य भार्या या गुरूपत्न्यनुजस्य सा।
          यवीयसस्तु या भार्या स्नुषाज्येष्ठस्य सा स्मृता।। (9/57)

दशम अध्याय में अम्बष्ठ आदि अनुलोमज तथा मृतमागधवैदेह आदि प्रतिलोमज पातियों की उत्पŸिा और आपŸिाकाल में कर्Ÿाव्यधर्म का वर्णन है।
धर्मेत्सवस्तु धर्मज्ञाः सतां वृŸामनुष्ठिताः।
            मन्त्रवज्र्यं न दुष्यन्ति प्रशंसां प्राप्नुवन्ति च।।(10/27)

एकादश अध्याय में पाप निवृŸिा के लिए कच्छ्रसान्तापनचान्द्रायणादि प्रायश्चित विधियों का वर्णन है।
                        अकामतः कृतं पापं वेदाभ्यासेन शुध्यति।
              कामस्तु कृतं मोहात्प्रायश्चिŸौः पृथग्विधैः।। (11/46)

द्वादश अध्याय में कर्मानुसार उŸाम, मध्यम, अधम त्रिविध सांसारिक गतियों का वर्णन, मोक्षप्रद, आत्मज्ञान विहित एवं निषिद्ध गुण दोषों की परीक्षा, देश-धर्म, जाति-धर्म तथा पाखण्ड धर्मादि का वर्णन है।
तमसो लक्षणं कामो रजसस्त्वर्थं उच्यते।
          सŸवस्य लक्षणं धर्मः श्रेष्ठ्यमेषां यथोŸारम्।। (12/38)
मनुस्मृति के वण्र्य विषय से स्पष्ट है कि यह धर्मशास्त्र की आचार-व्यवस्था का महŸवपूर्ण ग्रन्थ है। इसका व्यापक प्रचार भारत में ही नही, दक्षिण-पूर्व एशिया के उन सभी प्रान्तों में हुआ जिसमें भारतीय-संस्कृति का प्रभाव आज देखने को मिलता है। कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा, माॅरिशस आदि देशों में भी जो भारतीय रहते हैं उनकी सामाजिक व्यवस्था मनुस्मृति के अनुसार हीं चलती है। स्वतंत्र भारत में भी संविधान के अन्तर्गत हिन्इु पैनल कोड का आधार मनुस्मृति हीं है।
         निःसंदेह यह हमारे लिए आदरणीय और ग्राह्य है।
-------------इतिशुभम्----------------
( प्रस्तुति: धनंजय कुमार मिश्र, अध्यक्ष संस्कृत विभाग, संताल परगना महाविद्यालय, दुमका।)

Comments

Popular posts from this blog

संस्कृत साहित्य में गद्य विकास की रूप रेखा

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

गीतिकाव्य मेघदूतम्