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Showing posts from December, 2024

संस्कृत व्याकरण के प्रमुख अव्यय

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Dr.D K MISHRA, HOD SANSKRIT  S K M UNIVERSITY DUMKA JHARKHAND  भाषा और व्याकरण का सम्बन्ध शाश्वत है। व्याकरण के बिना भाषा का शुद्ध प्रयोग नहीं किया जा सकता। संस्कृत जैसी शास्त्रीय भाषा तो व्याकरण के रथ पर सवार होकर ही चलती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा की आत्मा उसके व्याकरण में निहित है। संस्कृत व्याकरण को शब्दानुशासन भी कहते हैं क्योंकि व्याकरण भाषा को अनुशासित करता है। अस्तु! संस्कृत भाषा में अव्यय उन शब्दों को कहते हैं जिनका रूप सातों विभक्तियों, तीनों कालों, तीनों वचनों और तीनों लिंगों में एक समान रहता है, कभी बदलता नहीं है - "सदृशं त्रिषु लिंगेषु, सर्वासु च विभक्तिषु। वचनेषु च सर्वेषु यन्नव्येति तदव्ययम्।। यहां हम कुछ ऐसे अव्ययों को अभी देखेंगे जिनका प्रयोग संस्कृत भाषा में आसानी से देखा जा सकता है - 1. अपि = भी 2. अथ = इसके बाद  3. अधुना = अभी 4. अद्य = आज 5. अद्यत्वे= आजकल  6. अकस्मात्= अचानक  7. अभित: = दोनों ओर  8. इतस्तत: = इधर - उधर  9. इव = तरह  10. ईषत् = कुछ  11. उभयत: = दोनों ओर 12. ऋते = विना 13. उच्चै: =...

संस्कृत की कालजयी रचनाएं

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Dr. D K MISHRA   भारतीय साहित्य और संस्कृति में संस्कृत भाषा का अप्रतिम योगदान रहा है। ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में संस्कृत भाषा में अनेक कालजयी रचनाएं हैं, इन रचनाओं का महत्त्व बहुविध है। साहित्य , गणित, विज्ञान, दर्शन, धर्म ,अर्थ, काम आदि विषयों पर कुछ कालजयी ग्रन्थों और उनके रचनाकार के विषय में देखते हैं - 1. रामायण (आदि काव्य) - महर्षि वाल्मीकि  2. महाभारत - कृष्ण द्वैपायन व्यास  3. बुद्धचरितम् - अश्वघोष  4. अर्थशास्त्र - विष्णु गुप्त (कौटिल्य, चाणक्य) 5. मनुस्मृति - महर्षि मनु  6. अष्टाध्यायी - आचार्य पाणिनि  7. कामसूत्र - वात्स्यायन  8. योगसूत्र - पतंजलि  9. राजतरंगिणी - कल्हण  10. मेघदूतम् - कालिदास  11. अभिज्ञानशाकुन्तलम् - कालिदास  12. अमरकोश(नामलिंगानुशासनम्) - अमरसिंह  13.नाट्यशास्त्र - भरत मुनि 14. छ्न्द: सूत्र - आचार्य पिंगल  15. ज्योतिष शास्त्र - आचार्य लगध 16. आर्यभटीयम् - आर्यभट्ट  17. चरक संहिता - आचार्य चरक  18. सुश्रुत संहिता - आचार्य सुश्रुत  19. काव्य प्रकाश - आचार्य मम्मट...

रूपक और इसके भेद

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डॉ धनंजय कुमार मिश्र, विभागाध्यक्ष संस्कृत,  एस के एम विश्वविद्यालय दुमका, झारखंड                 संस्कृत साहित्य में दृश्यकाव्य के अन्तर्गत अभिनय का नट आदि में रामादि के स्वरूप का आरोप होने से दृश्यकाव्य को ही रूपक कहा जाता है। रूपक अभिनय के योग्य होता है। कहा भी गया है - ‘‘रूपारोपात्तुरूपकम्’       आचार्य धनंजय ने रूपक का विवेचन इस प्रकार किया है - ‘‘अवस्थानुकृतिर्नाट्यम् । रूपं दृश्यतोच्यते। रूपकं तत्समारोपात्।’’ अर्थात् अवस्था-अनुकरण नाट्य है। दृश्य काव्य के अन्तर्गत नाट्य आता है। अतः पात्रों को विभिन्न रंग-रूपों, भाव-भङ्गिमाओं आदि में देखा जाता है। चक्षुग्राह्य होने के कारण नाट्य ‘रूप’ नाम से भी जाना जाता है। मंचन के क्रम में पात्रों के विभिन्न भाव-भङ्गिमाओं, उनकी वेश-भूषादि का आरोप नट-नटी आदि में किया जाता है। अतएव नाट्य को ‘रूपक’ कहते हैं। तात्पर्य है - रूपक उसे कहते हैं जहाँ किसी चीज का आरोप किया जाय। नाट्य, रूप, रूपक - सभी एक ही अर्थ का द्योतन करते हैं। रूपक के मुख्यतः दस भेद हैं। कहा भी गया है - ‘‘नाटकं सप्रकरणं ...

भर्तृहरि का नीतिशतक

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         Dr. D.K.MISHRA,            HOD SANSKRIT,      S K M UNIVERSITY DUMKA, JHARKHAND  नीतिशतक संस्कृत साहित्य का एक अनुपम ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के रचयिता भर्तृहरि हैं। नीतिशतक जितना विख्यात और प्रचलित ग्रन्थ है इसके रचयिता भर्तृहरि का व्यक्तित्व उतना ही किंवदन्तियों से घिरा अप्रमाणिक और अपुष्ट है। दन्तकथा के अनुसार भर्तृहरि को राजा विक्रमादित्य का बड़ा भाई माना जाता है। कुछ लोग नीतिशतक के रचयिता भतृहरि और वाक्यपदीय के रचनाकार महावैयाकरण भर्तृहरि को एक मानते हैं तो कुछ लोग अलग। कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलने के कारण इस विषय पर अधिक कहा नहीं जा सकता है। इनके समय के बारे में भी स्पष्टतः कुछ कहा नहीं जा सकता। भतृहरि के सम्बन्ध में एक कथा प्रायः यह कही जाती है कि राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी के आचरण से रुष्ट होकर संन्यासी हो गये और अपना राजपाट अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंप दिया। नीतिशतककार भर्तृहरि ने तीन शतकग्रन्थों की रचना की है जो श्रृंगारशतक, वैराग्यशतक और नीतिशतक के नाम से प्रसिद्ध है। इनके शतकग्रन्थों के अध्ययन ...

जयदेव कृत गीतगोविन्दम्

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Dr. D K MISHRA  HOD SANSKRIT  S K M UNIVERSITY DUMKA                         संस्कृत-गीति काव्य की परम्परा में महाकवि जयदेव का विशिष्ट स्थान है। इन्होंने गीतगोविन्द काव्य की सृजना की है। कृष्णलीला पर रचित गीतगोविन्द एक मौलिक, ललित एवं गेय कृति है। यह जयदेव की लोकप्रिय रचना है। जयदेव बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन के आश्रित कवि थे। ये किन्दुबिल्व निवासी भोजदेव के पुत्र थे। इनकी माता का नाम रामादेवी था। महाकवि जयदेव राजा लक्ष्मणसेन की राजसभा के प्रमुख रत्न कहे जाते हैं। एक श्लोक इस बात को सिद्ध भी करता है- ‘‘ गोवर्द्धनश्च शरणो      जयदेव उमापतिः। कविराजश्च रत्नानि समितौ लक्ष्मणस्य च।। ’’ इतिहासकार ग्यारहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध जयदेव का समय निर्धारित करते हैं।               गीतगोविन्द में 12 सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग गीतों से समन्वित हैं। सर्गों को परस्पर मिलाने के लिए तथा कथा के सूत्र को बतलाने के लिए कतिपय...

पंचमहायज्ञ

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प्रस्तुति: डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका (झारखण्ड) ---------- वैदिक साहित्य की परम्परा में संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थों की रचना के बाद आरण्यकों की रचना हुई। ब्राह्मण साहित्य की रचना के बाद ये आरण्यक उनके पूरक के रूप में प्रस्तुत हुए। आरण्यकों के मुख्य प्रतिपाद्य विषय भी ब्राह्मणों की तरह यज्ञीय कर्मकाण्ड ही है। वर्तमान समय में उपलब्ध सात आरण्यकों में तैत्तिरीय आरण्यक एक महत्त्वपूर्ण आरण्यक है, जो कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा से सम्बन्धित है। इसके दश प्रपाठकों में दूसरा प्रपाठक सहवै प्रपाठक है, जिसमें पंच महायज्ञों का वर्णन है।    यज्ञ शब्द यज् धातु से निष्पन्न हुआ है, जो देव पूजा, संगतिकरण एवं दानार्थक है। देवों के प्रति श्रद्धा एवं पूजनीय भावना , यज्ञ काल में उनके निकटता का अनुभव तथा उनके लिए द्रव्य, मन एवं प्राण को समर्पित कर देना यज्ञ कहलाता है। भारतीय संस्कृति यज्ञ प्रधान थी। ऋग्वेद में भी कहा गया है - ‘‘यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवा तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।’’ अर्थात् यज्ञ से ही विश्व की उत्पत्ति हुई है, यही जगत...

वेदांग का सामान्य परिचय

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Dr. D.K.MISHRA HOD SANSKRIT  S K M UNIVERSITY DUMKA JHARKHAND 814110         विश्व की समस्त भाषाओं में संस्कृत अत्यन्त प्राचीन और समृद्ध भाषा है। प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अक्षुण्ण भण्डार इसी भाषा में निहित है। मुख्यतः यह भाषा दो रूपों में प्राप्त होती है - वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत। पाणिनि के व्याकरण से अनुशासित भाषा लौकिक संस्कृत है जबकि आर्ष परम्परा वैदिक भाषा में है। वैदिक भाषा में ऋक्, यजुः, साम व अथर्व चारों वेद, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद् निबद्ध हैं।      वैदिक वाङ्मय को समझने के लिए जिन ग्रन्थों की रचना की गई, वह वेदांग कहलाया। वेदांग वेद या वेद के भाग नहीं हैं अपितु वेदों के अर्थों के अनुशीलन में सहायक हैं। वस्तुतः वेदांग एक अलग शास्त्रीय परम्परा है, जिनकी छः धारााएँ हैं। इसके अन्तर्गत शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छन्द-शास्त्र का समावेश है- ‘‘शिक्षा कल्पोऽथ व्याकरणं निरूक्तं छन्दसा च यः। ज्योतिषामयनं चैव वेदाङ्गानि षडैव तु।।’’ इसे वेद पुरुष का अंग कहा गया है। इनमें वेद के पैर छन्द ...

रामायण - सामान्य परिचय

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Dr.D.K.MISHRA रामायण आदिकाव्य है। यह संस्कृत भाषा में रचित है। इसके रचयिता वाल्मीकि हैं।  कहा जाता है कि वाल्मीकि की करूणा एवं शोक ही श्लोक रूप में प्रस्फुटित होकर लौकिक छन्द में प्रवाहित हुआ - ‘‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी काममोहितम्।।’’                                     (वा0रा0 1/2/15) यह लौकिक साहित्य की प्रथम रचना है, इसलिए रामायण को ‘‘आदिकाव्य’’ कहते हैं और वाल्मीकि ‘आदिकवि’ कहे जाते हैं। विधा की दृष्टि से रामायण एक ‘‘महाकाव्य’’ है। इसमें 500 सर्ग हैं। इन सर्गों में श्रीराम की गाथा है। रामायण भारतीय सनातन संस्कृति की सुन्दर प्रस्तुति करता है, इसलिए यह एक धर्मग्रन्थ के रूप में भी जाना जाता है। ऋषि रचित होने के कारण रामायण एक ‘‘आर्ष काव्य’’ भी है।      रामायण में सात (07) काण्ड हैं। इन काण्डों में राम के सम्पूर्ण जीवन का सुन्दर विवरण है। ये काण्ड हैं - बालकाण्ड,  अयोध्याकाण्ड,  अरण्यकाण्ड,  किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरका...

संस्कृत भाषा में विभिन्न संस्थाओं के आदर्श वाक्य/ध्येय वाक्य

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 संस्कृत भाषा कम शब्दों में अधिक सारगर्भित बातों को कहने में सक्षम है। भारत सहित अनेक देशों में इस भाषा का सार्थक प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता रहा है। इस दृष्टि से संस्थाओं के आदर्श वाक्य प्रायः भारत में संस्कृत भाषा में ही लिखा गया है। यहां हम कुछ ऐसे आदर्श वाक्य को देखेंगे जो काफी प्रचलित हैं - 1. अहर्निशं सेवामहे - भारतीय डाक विभाग  डॉ धनंजय कुमार मिश्र  विभागाध्यक्ष संस्कृत, एस के एम यू, दुमका   2.योगक्षेमं वहाम्यहम् - भारतीय जीवन बीमा निगम  3. सत्यमेव जयते -  भारत सरकार  4. नीर-क्षीर विवेकिनी विद्या - सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका, झारखंड  5. तमसो मा ज्योतिर्गमय - नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय , मेदनी नगर, पलामू (झारखंड); बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय धनबाद (झारखंड); तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर, बिहार  6. नभ: स्पृशं दीप्तम् - भारतीय वायुसेना  7. यतो धर्म: ततो जय: - उच्चतम न्यायालय भारत सरकार  8. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् - अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान  9. सर्वजन हिताय सर्वजन...

संस्कृत साहित्य एक नज़र में

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  डॉ धनंजय कुमार मिश्र, एस के एम यू दुमका  भारतीय ज्ञानपरम्परा में संस्कृत साहित्य का महनीय योगदान है। प्राचीन भारत के अधिकांश साहित्य संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। यहां हम अति संक्षेप में संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को देखेंगे - 1. कालिदास की सर्वमान्य रचनाएं - 7 (ऋतुसंहारम्, मेघदूतम्, कुमारसंभवम्, रघुवंशम्, मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् और अभिज्ञानशाकुन्तलम्) 2. अश्वघोष की सर्वमान्य काव्य रचनाएं - 3 (बुद्धचरितम्, सौन्दरनन्दम् और शारिपुत्र प्रकरण) 3. कवि भारवि की एकमात्र रचना - किरातार्जुनीयम्। 4. कवि माघ की एकमात्र रचना - शिशुपालवधम् 5. भट्टि काव्य - रावणवधम् 6. भवभूति के तीन नाटक - मालतीमाधवम्, महावीरचरितम् और उत्तररामचरितम्। 7. विशाखदत्त का नाटक -  मुद्राराक्षसनाटकम्। 8. जानकीहरणम् महाकाव्य के रचयिता - कवि कुमारदास। 9. कश्मीर का ऐतिहासिक वर्णन करने वाला महाकाव्य - राजतरंगिणी (कवि कल्हण की रचना) 10. जयदेव कवि का गीतिकाव्य - गीतगोविन्दम्। 11. संस्कृत साहित्य का लघुत्रयी - मेघदूतम्, कुमारसंभवम् और रघुवंशम्। 12. संस्कृत साहित्य का वृहद्त्रयी - किरातार्जुनी...

बाणभट्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व

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 संस्कृत  गद्य-साहित्य में सर्वाधिक प्रतिभाशाली गद्यकार ‘बाण’ हैं। बाणभट्ट ने परम्परा से हटकर अपनी रचना में अपना पूर्ण परिचय दिया है। बाणभट्ट हर्षवर्द्धन के दरबार में रहते थे। अतः बाण का समय वही है जो इतिहास में हर्षवर्द्धन का अर्थात् 607ई0 से 648ई0। बाणभट्ट वात्स्यायन-गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम चित्रभानु था। विद्वान् परिवार में जन्म लेने के कारण इन्होंने सभी विद्याओं का अभ्यास किया। बचपन में ही अनाथ हो गए बाणभट्ट ने युवावस्था में मित्रों की मण्डली बनाकर पर्याप्त देशाटन किया। अनुभव सम्पन्न होकर अपने ग्राम ‘प्रीतिकूट’, शोण के तट पर लौटे। राजा हर्षवर्द्धन के बुलावे पर यह उनके दरबार में गए और उनकी कृपा से वहीं रहने लगे।                   बाणभट्ट ने दो गद्य-काव्यों की रचना की - हर्षचरितम् और कादम्बरी। हर्षचरितम् एक आख्यायिका है। यह आठ उच्छ्वासों में विभक्त है। प्रारंभिक दो - तीन उच्छ्वासों में बाण ने अपने वंश का एवं अपना परिचय दिया है। इसके बाद राजा हर्षवर्द्धन के पूर्वजों का वर्णन किया...

कालिदास व्यक्तित्व एवं कृतित्व

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     डॉ धनंजय कुमार मिश्र, विभागाध्यक्ष संस्कृत, एस के एम विश्वविद्यालय दुमका, झारखंड 814110 --------- महाकवि कालिदास ने केवल संस्कृत साहित्य के अपितु विश्व साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठित कवि व नाटककार हैं। अंग्रेजी साहित्य में जो स्थान शैक्सपीयर का है वही स्थान कालिदास का संस्कृत साहित्य में है। कालिदास की गणना विश्व कवि के रूप में की जाती है। इटली के लोग इनकी तुलना दान्ते और वर्जिल से करते हैं। जर्मनी के लोग इन्हें संसार का सर्वाधिक लोकप्रिय कवि मानते हैं। हम भारत वासियों के लिए तो कालिदास प्रकृति के सुकुमार कवि, दीप शिखा, कवि कुल गुरु, उपमा सम्राट आदि उपाधियां से विभूषित महाकवि हैं। इनकी तुलना इन्हीं से की जा सकती है। संस्कृत भाषा और साहित्य के देदीप्यमान नक्षत्र हैं।   महाकवि कालिदास का जन्म कब और कहां हुआ था, इस सन्दर्भ में अनेक किंवदन्तियां हैं। कुछ लोग इन्हें कश्मीर का निवासी मानते हैं तो कुछ बंगाल का। अनेक लोगों का मानना है कि कालिदास राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। एक जनश्रुति के अनुसार बाल्यकाल में कालिदास मन्द बुद्धि के थे। स्वयंवर में पराजित होने ...

महाभारत : एक दृष्टि

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  डॉ धनंजय कुमार मिश्र, विभागाध्यक्ष संस्कृत, एस के एम विश्वविद्यालय दुमका (झारखंड) 814101 -------- अखिल विश्व की भाषाओं में संस्कृत का स्थान अन्यतम है। इसका व्याकरण वैज्ञानिक है तो इसका साहित्य विपुल। संस्कृत साहित्य की परम्परा में रामायण के बाद महाभारत का विकास हुआ है। इसके रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास हैं, जिन्हें सामान्य रुप से हम सभी वेदव्यास के नाम से जानते हैं। व्यास जी ऋषि पराशर और निषाद कन्या सत्यवती की संतान थे। कहा जाता है कि व्यास जी ने साहित्य, धर्म, दर्शन, इतिहास और भक्ति का अद्भुत समन्वय अपने ग्रन्थ महाभारत में किया है। यह एक उपजीव्य काव्य के रूप में परवर्ती साहित्यकारों के लिए आज भी प्रासंगिक है। महाभारत एक विशालकाय ग्रन्थ है। इसमें एक लाख श्लोक हैं। इसलिए इसे शतसाहस्रीसंहिता भी कहते हैं। महाभारत में मूलतः कौरवों और पांडवों की कथा है। साथ ही इसमें अन्य प्रासंगिक कथाएं भी समाविष्ट हैं। इसमें कुल 18 पर्व हैं। पर्व अध्यायों में विभक्त हैं। प्रथम पर्व का नाम "आदि पर्व" है जबकि अन्तिम पर्व "स्वर्गारोहण" के नाम से जाना जाता है।  महाभारत के 18 पर्व इस क्रम स...

पुराण सामान्य अध्ययन

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डाॅ. धनंजय कुमार मिश्र, एस के एम विश्वविद्यालय दुमका (झारखंड) ________ संस्कृत साहित्य अपनी विविध विधाओं के लिए प्रसिद्ध है। एक ओर जहां विपुल वैदिक साहित्य है तो दूसरी ओर रामायण, महाभारत और पुराण जैसे लौकिक साहित्य। रामायण, महाभारत और पुराण परवर्ती कवियों की रचनाओं के आधार है इसलिए उपजीव्य काव्य के रूप में विख्यात हैं। पुराण वस्तुत: पुराने आख्यान हैं जिसमें भारतीय संस्कृति का गान है। इसमें जगत् की उत्पत्ति के रहस्य हैं, तो राजाओं के इतिहास भी हैं। यदि इनमें राम, कृष्ण जैसे देवताओं का चरित्र चित्रण है तो व्रत त्यौहार की महत्ता भी वर्णित है। भारत का ऐतिहासिक वर्णन है तो भौगोलिक और सांस्कृतिक विरासत का भी समावेश है। कहा तो यह भी जाता है कि वैदिक साहित्य के बीज का वृक्ष के रूप में प्रस्फुटित स्वरुप पुराण का है। इसमें साहित्य है तो दर्शन भी है। अतीत की कहानी है तो भविष्य की सुन्दर कल्पना भी है। धर्म और आस्था का गान है तो नीति और आचार का उपदेश भी है। यद्यपि पुराणों की संख्या पर विद्वानों में मतभेद है परन्तु 18 पुराण सर्वमान्य हैं। एक पद्य में इन पुराणों को इस प्रकार कहा गया है - "मद्वयं...

रामायण एक दृष्टि

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डाॅ. धनंजय कुमार मिश्र  एस के एम विश्वविद्यालय दुमका, झारखंड रामायण एक दृष्टि  रामायण -आदिकाव्य महर्षि वाल्मीकि रचित रचनाकाल -500ई.पू. लौकिक संस्कृत की प्रथम रचना  काण्ड -07 सर्ग -500 श्लोक संख्या -24000 रस -करुण नायक- राम नायिका- सीता प्रतिनायक  - रावण अन्य नाम - चतुर्विंशतिः साहस्रीसंहिता ऋषि प्रणीत होने के कारण- आर्ष काव्य  परवर्ती साहित्य के लिए कथा वस्तु आदि देने के कारण - उपजीव्य काव्य  काण्ड के नाम - बाल, अयोध्या, अरण्य, किष्किन्धा, सुन्दर, युद्ध और उत्तर। संदेश - आदर्शवादी चरित्र निर्माण   

संस्कृत सामान्य बोध

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 डॉ धनंजय कुमार मिश्र  एस के एम विश्वविद्यालय दुमका  ----------- 1.संस्कृत भाषा में कारकों की संख्या - छ: 2. संस्कृत में विभक्ति -सात 3.संस्कृत में पुरुष - तीन  4. संस्कृत में वचन - तीन 5. संस्कृत में लिंग -तीन 6. संस्कृत भाषा में संधि के भेद -तीन  7. संस्कृत भाषा में समास के मुख्य भेद - पांच 8. संस्कृत भाषा में वर्णों की संख्या - 63 9. मूल स्वर की संख्या -5 10. संस्कृत भाषा के भेद - 2 (वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत) 11. संस्कृत में स्वर वर्णों की संख्या - 13 12. संस्कृत भाषा में व्यंजन वर्णों की संख्या -33 13. संस्कृत में स्वर वर्ण को कहते हैं -अच् 14. संस्कृत में व्यंजन वर्णों को कहते हैं -हल् 15. संस्कृत में क्रिया के मूल रूप को कहते हैं - धातु  16. संस्कृत में काल - तीन  17.संस्कृत में लकार - दश 18. वर्तमान काल के लिए लकार - लट् ललकार 19. भविष्यत् काल के लिए लकार से - लृट् 20. संस्कृत भाषा का अन्य नाम - देवभाषा  21. संस्कृत भाषा का भाषा परिवार - भारोपीय भाषा परिवार  22. संस्कृत भाषा की लिपि - देवनागरी 23. संस्कृत व्याकरण का नाम -त्रिमुनि...

वैदिक साहित्य एक दृष्टि

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1. प्राचीनतम वेद का नाम - ऋग्वेद  2.अर्वाचीन वेद का नाम - अथर्ववेद  3. वैदिक संहिताओं की संख्या - चार  4. वेदत्रयी के अन्तर्गत वेद - ऋक्, यजु:, साम 5. पुरुषार्थ की संख्या - चार (धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष) 6.आश्रमों की संख्या- चार (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) 7. वर्णों की संख्या चार ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) 8. ऋग्वेद के प्रथम मंत्र के देवता -अग्नि 9.ऋग्वेद में मंडल - दश 10. प्रमाणिक उपनिषद् - तेरह 11. अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रन्थ - गोपथ ब्राह्मण  12. ऋग्वेद का ब्राह्मण - ऐतरेय और कौषीतकि  13. अथर्ववेद में काण्डों की संख्या - बीस 14. वेदों के अन्तिम भाग का नाम - उपनिषद् (वेदान्त) 15. वेदांग की संख्या - 6 (शिक्षा,कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छ्न्द और ज्योतिष ) 16.वेद का मुख - व्याकरण  17.वेद का पैर - छ्न्द 18.वेद का आंख - ज्योतिष् 19. वेद का कान- निरूक्त  20. वेद का हाथ - कल्प  21. वेद का घ्राण - शिक्षा  22. गायत्री छ्न्द में वर्णों की संख्या -24 23. वेदों में प्रयुक्त मुख्य छ्न्द - 7( गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पंक्त...

वैदिक साहित्य एक सामान्य परिचय

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 *वैदिक साहित्य एक सामान्य परिचय* डॉ धनंजय कुमार मिश्र  एस के एम यू दुमका  ___________ विश्व की प्राचीनतम संस्कृति में से एक वैदिक संस्कृति का विवेचन जिस साहित्य परम्परा में प्राप्त होता है, वह वैदिक साहित्य के नाम से जाना जाता है। मुख्यतः यह साहित्य भारतीय संस्कृति का आधार है। प्राचीन भारतीय ज्ञानपरम्परा को आर्ष परम्परा भी कहते हैं। आर्ष परम्परा का सर्वस्व वैदिक साहित्य में निहित है। वैदिक शब्द का अर्थ है - वेद से सम्बन्धित। वेद शब्द ज्ञान का वाचक होता है। प्राचीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जिस साहित्य को हम देखते हैं वह वैदिक साहित्य है। इसकी भाषा वैदिक संस्कृत है। विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद से प्रारंभ होकर उपनिषद तक की अविरल धारा वैदिक साहित्य के अंतर्गत प्राप्त होती है। प्राचीन भारतीय ऋषियों ने प्रकृति से साक्षात्कार कर उसके रहस्यों को जानना चाहा। ये प्राकृतिक रहस्य ही उनके कण्ठों से मन्त्र के रूप में प्रस्फुटित हुआ। ये मन्त्र पद्य, गद्य और गीत के रूप में प्रस्फुटित हुए जो क्रमशः ऋक्, यजु: और साम कहलाए। पद्यमयी मंत्रों का संग्रह ऋग्वेद  कहलाया। गद्य वाले ...