संस्कृत व्याकरण के प्रमुख अव्यय
Dr.D K MISHRA, HOD SANSKRIT S K M UNIVERSITY DUMKA JHARKHAND भाषा और व्याकरण का सम्बन्ध शाश्वत है। व्याकरण के बिना भाषा का शुद्ध प्रयोग नहीं किया जा सकता। संस्कृत जैसी शास्त्रीय भाषा तो व्याकरण के रथ पर सवार होकर ही चलती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा की आत्मा उसके व्याकरण में निहित है। संस्कृत व्याकरण को शब्दानुशासन भी कहते हैं क्योंकि व्याकरण भाषा को अनुशासित करता है। अस्तु! संस्कृत भाषा में अव्यय उन शब्दों को कहते हैं जिनका रूप सातों विभक्तियों, तीनों कालों, तीनों वचनों और तीनों लिंगों में एक समान रहता है, कभी बदलता नहीं है - "सदृशं त्रिषु लिंगेषु, सर्वासु च विभक्तिषु। वचनेषु च सर्वेषु यन्नव्येति तदव्ययम्।। यहां हम कुछ ऐसे अव्ययों को अभी देखेंगे जिनका प्रयोग संस्कृत भाषा में आसानी से देखा जा सकता है - 1. अपि = भी 2. अथ = इसके बाद 3. अधुना = अभी 4. अद्य = आज 5. अद्यत्वे= आजकल 6. अकस्मात्= अचानक 7. अभित: = दोनों ओर 8. इतस्तत: = इधर - उधर 9. इव = तरह 10. ईषत् = कुछ 11. उभयत: = दोनों ओर 12. ऋते = विना 13. उच्चै: =...