नटराज : शिव का ब्रह्माण्डीय नर्तन*

 *नटराज : शिव का ब्रह्माण्डीय नर्तन*



प्रस्तुति: डॉ धनंजय कुमार मिश्र 

विभागाध्यक्ष संस्कृत 

सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका झारखंड 

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नटराज — यह केवल शिव का एक नाम नहीं, बल्कि ब्रह्माण्डीय चेतना का नाद है। यह वह दिव्य प्रतीक है, जो न केवल नृत्य की पराकाष्ठा को दर्शाता है, बल्कि जीवन के उद्गम, विस्तार और संहार का भी गूढ़ बिम्ब प्रस्तुत करता है। ‘नटराज’ शब्द में समाहित है – ‘नट’, अर्थात् कला का विस्तार, और ‘राज’, अर्थात् उसका अधिपति। जब शिव नटराज रूप में प्रकट होते हैं, तो वे स्वयं ब्रह्माण्ड के विराट रंगमंच पर नृत्य करते हुए समस्त सृष्टि को गति, दिशा और चेतना प्रदान करते हैं।

शिव का तांडव नृत्य दो स्वरूपों में प्रतिष्ठित है — रौद्र तांडव और आनन्द तांडव। पहला रूप, रौद्र तांडव, उनके प्रचंड क्रोध का प्रतीक है — जिसमें वे त्रिलोक में कंपन भरते हैं, यह संहार का नृत्य है, जिसमें समस्त जगत का विलय हो जाता है। इस रूप में वे रुद्र कहलाते हैं — वे जो रुला सकते हैं, हिला सकते हैं।

दूसरा स्वरूप है आनन्द तांडव — जो शिव का नटराज रूप है। यह नृत्य जीवन के प्रस्फुटन का प्रतीक है, सृजन की लय है, और नाद से नाभि तक फैलती दिव्यता है। प्राचीन आचार्यों के अनुसार, शिव के आनन्द तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव से सृष्टि का विसर्जन होता है। यह द्वैत नहीं, अपितु सृजन और संहार के मध्य संतुलन की अनुभूति है।

नटराज का रूप गति का प्रतीक है। नटराज की मूर्ति स्पष्टत: अग्नि-मंडल से घिरी, एक पाँव से अपस्मार (अज्ञान) को दबाते हुए, दूसरे को आकाश में उठाए, डमरु और अग्नि धारण किए, अभय और वरद मुद्रा में स्थित है। यह केवल सौन्दर्य नहीं, बल्कि ब्रह्म की भाषा है। डमरु से सृष्टि का नाद उत्पन्न होता है, अग्नि से संहार की चेतना जागृत होती है। उनका उठाया हुआ पाँव मोक्ष का प्रतीक है, और अपस्मार को दबाना अज्ञान का अंत।

शैव दर्शन के अनुसार, शिव के पाँच कार्य हैं — सृष्टि (उत्पत्ति), स्थिति, संहार, तिरोभाव (माया), और अनुग्रह। इन पाँचों क्रियाओं की समेकित छाया नटराज के नृत्य में प्रतिध्वनित होती है। यह केवल शारीरिक नृत्य नहीं, यह आत्मा का नर्तन है। रौद्र तांडव विनाशकारी नहीं, पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक है, और आनन्द तांडव चेतना को जाग्रत करने वाला, नव-सृजन का वंशीवादन है।

नटराज का रूप आज के भौतिक विज्ञान के लिए भी प्रेरणास्रोत बन चुका है। स्विट्जरलैंड के CERN (यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च) में नटराज की प्रतिमा स्थापित है — जहाँ वैज्ञानिकों ने उसे ऊर्जा, कंपन, क्वांटम फील्ड और नाद-सिद्धांत का प्रतीक माना है। उनका तांडव 'कणों की गति' का प्रतीक है — जो ब्रह्माण्ड को जीवंत बनाए रखती है।

 कला, चेतना और समरसता के आदि गुरु हैं नटराज। नटराज हमें यह सिखाते हैं कि कला केवल विलास नहीं, चेतना का परम स्वरूप है। जब व्यक्ति अपनी आन्तरिक अशान्ति, अज्ञान और मोह को पहचान कर उसे दबाता है, तभी वह मोक्ष के पथ पर अग्रसर होता है। नटराज का नृत्य सामाजिक जीवन में संतुलन, गति, विवेक और सौंदर्य का संदेश देता है।


भारतीय साहित्य और दर्शन में नटराज की महनीय स्थिति है।

भारतीय कवियों, शिल्पियों और दार्शनिकों ने नटराज को जीवन-नाटक का नायक माना है। अपारम्परिक दर्शन से लेकर छायावादी काव्य तक, नटराज की प्रतीकात्मकता बार-बार उभरती रही है।

“शिव का तांडव ब्रह्माण्ड का संगीत है,

जहाँ प्रत्येक स्पंदन में सृष्टि की ध्वनि है।”

अततः कहा जा सकता है कि नटराज — नृत्य नहीं, नवचेतना हैं।

नटराज शिव के अनन्त रूपों में वह रूप है, जो उन्हें सृजन के माध्यम से विश्व को रचने वाला ईश्वर सिद्ध करता है। उनका नृत्य, उनकी दृष्टि, उनकी मुद्रा — सब मिलकर एक ऐसा विराट संदेश देते हैं जो हमें यह सिखाता है कि ब्रह्माण्ड केवल पदार्थ नहीं, बल्कि चेतना का नर्तन है।

नटराज — वह देवता हैं, जिनके प्रत्येक पदाघात से सृजन गूँजता है, और जिनकी प्रत्येक मुद्रा से ज्ञान प्रकट होता है।

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