एकादश रुद्र : भगवान शिव के ग्यारह अद्भुत रूप
*एकादश रुद्र : भगवान शिव के ग्यारह अद्भुत रूप*
प्रस्तुति: डॉ धनंजय कुमार मिश्र
विभागाध्यक्ष संस्कृत
सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका, झारखंड
"ॐ नमो भगवते रुद्राय"
जब वेद की ऋचाओं में ‘रुद्र’ का आह्वान होता है, तब वह केवल किसी एक देवता का नाम नहीं होता, वरन् वह विराट ब्रह्म की उन शक्तियों की पुकार होती है, जो सृष्टि को संचालित करती हैं — आश्रय देती हैं, शुद्ध करती हैं और अज्ञान का संहार कर आत्मबोध की ओर ले जाती हैं। इन्हीं दिव्य शक्तियों का नाम है — एकादश रुद्र।
एकादश रुद्र शिव की महाशक्ति के अंश हैं।
‘रुद्र’ नाम का प्रथम उल्लेख वेदों में आता है — वह तेजस्वी, उग्र, किन्तु करुणामय रूप जो चिकित्सा का अधिपति भी है और विध्वंस का कारण भी। पुराणों ने इस रुद्र रूप को विस्तार देते हुए शिव के ग्यारह रूपों की कल्पना की, जो शिव के ही विभिन्न आयाम हैं। ये एक ओर जहाँ संहार के प्रतीक हैं, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक चेतना और कल्याणकारी ऊर्जा के भी अधिष्ठाता हैं।
शिवपुराण में वर्णित एकादश रुद्र निम्नलिखित हैं —
1. कपाली — मुण्डमालाधारी, मृत्यु और मोक्ष के पारदर्शक।
2. पिंगल — तामस प्रकृति के रक्षक, तप और अग्नि के समान उष्ण।
3. भीम — महाक्रोधी, किन्तु धर्म की रक्षा हेतु संहारक।
4. विरूपाक्ष — त्रिनयनधारी, जो तीनों लोकों को एकसाथ देख सकते हैं।
5. विलोहित — रक्तवर्णी, युद्ध के देवता, शक्ति के संचालक।
6. शास्ता — नीति और न्याय के संरक्षक।
7. अजपाद — निर्विकार, अजन्मा, सबका आधार।
8. अहिर्बुध्न्य — अनन्त जल के अधिष्ठाता, नागतत्त्व के प्रतीक।
9. शंभु — कल्याणस्वरूप, सौम्य और करुणामयी सत्ता।
10. चण्ड — उग्र रूप, अधर्म के विनाशक।
11. भव — सृजन के आधार, भूतमात्र के स्वामी।
इन नामों में छिपी है शिव के विराट व्यक्तित्व की विविधता — एक ओर करुणा और सौम्यता, दूसरी ओर तीव्रता और विनाश, तीसरी ओर सृजन और दिव्यता।
शैवागम ग्रंथों में एकादश रुद्रों के नाम इस प्रकार हैं —
1. शंभु
2. पिनाकी
3. गिरीश
4. स्थाणु
5. भर्ग
6. सदाशिव
7. शिव
8. हर
9. शर्व
10. कपाली
11. भव
इनमें शिव के योगमय, सौम्य, और तपस्वी रूपों का प्रधानता से उल्लेख हुआ है। यहाँ शिव न केवल संहारक हैं, बल्कि वे ध्यान, समाधि, धर्म और तत्त्वज्ञान के स्तम्भ भी हैं। कुछ पुराणों में एकादश रुद्रों के अन्य रूप भी प्राप्त होते हैं, जो उनके तत्वदर्शन के व्यापक स्वरूप को प्रकट करते हैं- अज,एकपाद,अहिर्बुध्न्य,
त्वष्टा, रुद्र, हर,शम्भू, त्र्यम्बक अपराजिता, ईशान,त्रिभुवन
यहाँ ‘एकपाद’ का अर्थ है — एकमात्र परमपद प्राप्त तत्त्व, और ‘त्र्यम्बक’ वह रूप जो तीनों कालों का द्रष्टा है।
एकादश रुद्रों की उपासना का महत्त्व सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है।
एकादश रुद्रों की उपासना वैदिक और आगमिक परम्पराओं में विशेष स्थान रखती है। रुद्राभिषेक एवं लघुरुद्र जैसे अनुष्ठानों में इन 11 रुद्रों का आह्वान करके जल, दूध, घृत, मधु मिश्रित पंचामृत से अभिषेक किया जाता है।
इस उपासना का फल कहा गया है - शत्रुओं से रक्षा, अशुभ ग्रहों का निवारण, स्वास्थ्य लाभ, धन-धान्य में वृद्धि, और अंततः आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आध्यात्मिक दृष्टि एकादश रुद्र गूढ़ रहस्य हैं। मानव शरीर में भी एकादश रुद्रों का प्रतीकात्मक निवास माना गया है — इन्द्रियों, प्राणों, चक्रों और नाड़ियों के रूप में। इनकी साधना से योगी आत्मतत्त्व को साक्षात् अनुभव करता है। यही कारण है कि भगवान शिव को योगेश्वर और रुद्रेश्वर कहा गया है।
एकादश रुद्र, भगवान शिव की गूढ़, रहस्यमयी और बहुआयामी सत्ता के परिचायक हैं। ये न केवल देवत्व के विभिन्न आयाम हैं, अपितु जीवन के विविध संघर्षों में मार्गदर्शक भी हैं। इनकी उपासना केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, अपितु आत्मिक विकास की एक पावन साधना है।
"ॐ नमो भगवते रुद्राय" — यह मंत्र हर भक्त के हृदय में शिव के ग्यारहों रूपों की शक्ति का आह्वान है। सचमुच -
शिवः सर्वत्र प्रतिष्ठितः।
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