सुभाषितानि
*सुभाषितानि* सम्पादक: - डॉ धनंजय कुमार मिश्र:, संताल परगना महाविद्यालय दुमका (झारखण्ड) (1) *बन्धाय विषयासङ्गः* *मुक्त्यै निर्विषयं मनः।* *मन एव मनुष्याणां* *कारणं बन्धमोक्षयोः॥* अर्थात- बुराइयों में मन को लगाना ही बन्धन है और इनसे मन को हटा लेना ही मोक्ष का मार्ग दिखता है । इस प्रकार यह मन ही बन्धन या मोक्ष को देनेवाला है। (2) *शुन: पुच्छमिव व्यर्थं,* *जीवितं विद्यया विना।* *न गुह्यगोपेन शक्तं,* *न च दंशनिवारणे॥* अर्थात- विद्या के बिना मनुष्य-जीवन कुत्ते की पूंछ के समान व्यर्थ है। जैसे कुत्ते की पूंछ से न तो उसके गुप्त अंग छिपते है न वह मच्छरों को काटने से रोक सकती है, वैसे ही विद्या के बिना जीवन व्यर्थ हैl (3) *सुभाषितमयैर्द्रव्यैः* *सङ्ग्रहं न करोति यः।* *सो$पि प्रस्तावयज्ञेषु* *कां प्रदास्यति दक्षिणाम्।।* अर्थात- सुन्दर वचनरूपी सम्पदा का जो संग्रह नहीं करता वह सत्संग एवम जीवनोपयोगी दिव्य चर्चारुपी यज्ञ में भला क्या दक्षिणा...