सांख्य दर्शन

सांख्य दर्शन भारत का सबसे प्राचीन और व्यापक दर्शन माना जाता है। इस दर्शन के बीज उपनिषदों मेें मिलते हैं। वाल्मीकि, व्यास, कालिदास आदि ने अपनी रचनाओं की आधार भूमि के रूप में इसी को अपनाया है। स्मृति तथा पौराणिक साहित्य इसी को आधार मानकर चलते हैं। सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल माने जाते हैं। सांख्य-दर्शन का आशय है सम्यक् ज्ञान। यह दर्शन मोक्ष-प्राप्ति के लिए जड़ और चेतन अर्थात् प्रकृति और पुरूष के भेद-ज्ञान पर जोड़ देता है। योग दर्शन इसका सहयोगी है। सांख्य का बल तŸव-ज्ञान पर है। सांख्य शब्द की व्युत्पŸिा संख्या से भी की जाती है। इसका अर्थ है - गणना। सांख्य दर्शन ने सबो पहले पच्चीस (25) तŸव गिनाकर विश्व के स्वरूप का प्रतिपादन किया। सांख्य दर्शन वैदिक दर्शन है। यह वेद को प्रमाण मानता है। वेद को प्रामाण्य मानने के कारण यह आस्तिक दर्शन है। भारतीय षड् दर्शनों में आस्तिक दर्शन के रूप में सांख्य की गणना होती है जबकि यह दर्शन ईश्वर को नहीं मानता है। समस्त भारतीय दर्शन की भाँति इस दर्शन का लक्ष्य मुख्य रूप से दुःखों से छुटकारा है। सांख्य दर्शन के ...