भवान्यष्टक का पाठ खोलता है सिद्धि का मार्ग

 *आदिगुरु शंकराचार्य कृत भवान्यष्टक का पाठ खोलता है सिद्धि का मार्ग*



नवरात्रि में आदिगुरु शंकराचार्य कृत भवान्यष्टक माता रानी के सम्मुख विनम्र भाव से स्तुति करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। भक्तों को चाहिए कि वह माता के सम्मुख भवान्यष्टक स्तुति रुप में करें।

भवान्यष्टक में आठ मंत्र हैं। इसमें कहा गया है कि हे माता! आपके अतिरिक्त मेरा कोई नहीं है। एकमात्र आप ही मेरी गति हैं। हे भवानि! मैं भवसागर में पड़ा हुआ, दु:खों से भयभीत, सांसारिक बंधनों में बंधा हूं, कोई पुण्य संचय नहीं किया है, सदैव कुलाचारहीन तथा कदाचारलीन रहने से अनाथ दरिद्र जरारोगयुक्त हूं। आप मेरी रक्षा करें।

मंत्र इस प्रकार है -


न तातो न माता न बन्धुर्न दाता 

न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ 


 भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः

पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।

 कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं । 

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।


 न जानामि दानं न च ध्यानयोगं

न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।

 न जानामि पूजां न च न्यासयोगं ।

 गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।


न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं 

न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।

न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मात:।

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।



  कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदास:

 कुलाचारहीनः कदाचारलीन:।

कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्धः  सदाहं ।

 गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।


प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं 

दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।

 न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये ।

 गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।



 विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे 

जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये | 

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि ।

 गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।


अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो

महाक्षीणदीन: सदा जाड्यवक्त्र:।

विपत्तौ प्रविष्ट: प्रणष्ट: सदाहं।

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।


माता रानी अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखें।

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