धनंजय कुमार मिश्र* संस्कृत गद्य का आरम्भ ब्राह्मण-ग्रन्थों और उपनिषदों के गद्य में देखा जा सकता है। बहुत दिनों तक सरल स्वाभाविक शैली में गद्य लिखने की परम्परा चलती रही। समय के साथ गद्य में भी काव्य के उपादानों को प्रविष्ट कराने की प्रवृत्ति पनपी। आरम्भिक शिलालेखों में गद्य-काव्य प्राप्त होते हैं। रूद्रदामन का गिरनार-शिलालेख (150 ई0) तथा हरिषेण रचित समुद्रगुप्त-प्रशस्ति (360 ई0) महत्वपूर्ण गद्य काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। संस्कृत में गद्य-काव्य की रचना बहुत कम हुई है। पद्य की अपेक्षा अधिक श्रम, आलोचकों की उपेक्षा तथा ऊँचा मानदण्ड ये तीन मुख्य कारण हैं जिसके चलते गद्य की ओर कवि अभिमुख नहीं होते थे। उपर्युक्त बातों को यह उक्त
संस्कृत भाषा के आदिकाव्य रामायण में आजकल एक प्रसिद्ध श्लोक नहीं मिलता है जिससे पाठकों व जिज्ञासुओं को लगने लगता है कि यह श्लोक रामायण का नहीं है । कुछ लोगों की धारणा बदलने लगती है। कुछ अन्य किसी कवि की रचना मान लेते हैं । आध्यात्म रामायण, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, महावीरचरितम्,उत्तररामचरितम् आदि ग्रन्थों का नाम लेने लगते हैं पर यह प्रसिद्ध श्लोक आर्षकाव्य रामायण का ही है। वाल्मीकि ही इसके रचयिता हैं । दो रूप में यह श्लोक है। *"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"*, एक प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक का अन्तिम आधा भाग है। यह नेपाल का राष्ट्रीय ध्येयवाक्य भी है। यह श्लोक वाल्मीकि रामायण के कुछ पाण्डुलिपियों में मिलता है, और दो रूपों में मिलता है।प्रथम रूप : निम्नलिखित श्लोक 'हिन्दी प्रचार सभा मद्रास' द्वारा १९३० में सम्पादित संस्करण में आया है। इसमें भारद्वाज, राम को सम्बोधित करते हुए कहते हैं- मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव । जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥ हिन्दी अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का
धनंजय कुमार मिश्र’ महाकवि कालिदास का नाम न केवल भारत में अपितु सम्पूर्ण धरातल पर इनकी महती प्रसिद्धि है। कविकुलगुरु के रूप में कालिदास सबके द्वारा स्वीकृत हैं। इंगलैण्ड के लोग उन्हें दूसरा ‘शैक्सपीयर’ कहते हैं। इटलीवासी इनकी तुलना अपने सर्वश्रेष्ठ कवियों ‘दान्ते’ एवं ‘वर्जिल’ से करते हैं परन्तु हम भारतीयों की तरह जर्मणीवासी उन्हें विश्वकवि कहकर उनके व्यक्तिŸव एवं कृतित्व की प्रशंसा करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य के सफलतम कवियों एवं नाटककारों में अग्रगण्य हैं। दीपशिखा कालिदास रचित सात रचनाएॅं - मेघदूतम्, ऋतुसंहारम्, रघुवंशम्, कुमारसंभवम्, मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् और अभिज्ञानशाकुन्तलम् विश्वप्रसिद्ध हैं। कालिदासीय सप्त ग्रन्थों में मेघदूतम् का अपना विशेष महŸव है। मेघदूतम् एक सफल एवं अपूर्व गीतिकाव्य है जिसकी गणना ‘लघुत्रयी’ में की जाती है। गीतिकाव्य खण्डकाव्य हीं होता है परन्तु इसमें
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