गंगा
पारुल प्यारी अन्धी गुड़िया
चोगा चोली चंगा।
पापहारिणी प्राणदायिनी
है जी हमारी गंगा।।
विपदा के इस कठिन काल में
कठपुतली बना जो बंदा।
देख रहे उसके कर्मों को
तारे सूरज चन्दा।।
क्या चाहे तू राष्ट्र पुरुष से
हमको भी बतला जा।
सूर्पनखा सी भोली मत बन
जाने सब रघुलाला।।
सैंतालिस भूली चौरासी भूली
भूली खून की होली।
भूल गयी रे हाय वावरी
गोधरा की गलियारी।।
माना नाच रहा है काल
पर कैसी यह अभिव्यक्ति ।
सत्तालोलुप बहुरूपिये से
मत कर इतनी प्रीति।।
साहेब तुझको जाने प्यारी,
जाने ट्वीटबाजों से यारी,
तेरे मर्ज की दवा भी जाने,
गद्दारों की जाने गद्दारी।।
कुमति छोड़ विकराल काल
मत कर जननी को नंगा
पापहारिणी प्राणदायिनी
है जी हमारी गंगा ।।
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